Jun १६, २०१९ १६:३९ Asia/Kolkata

हमने व्यक्ति एवं सामाज के भविष्य के निर्धारण में परिवार की भूमिका और परिवार को मज़बूत करने या उसके विघटन के कारणों का उल्लेख किया था।

इस क्षेत्र में सबसे अधिक प्रभाव आदर्शों का हो सकता है। इस्लाम ने भी आदर्श के रूप में विशिष्ट हस्तियों को पेश किया है और परिवार के गठन के लिए मापदंड निर्धारित किए हैं। परिवार का गठन जितना अधिक उन मापदंडों के अनुसार होगा, परिवार भी उतना ही अधिक मज़बूत होगा।

क़ुराने मजीद ने पुरुषों और महिलाओं की विशेषताओं का उल्लेख किया है। परिवार की विशिष्टता से तात्पर्य मानवीय गुणों एवं इस्लामी मूल्यों में विशिष्टता है, जिससे विशिष्ट एवं प्रभावशाली बच्चें बाहर निकलें और एक आदर्श समाज का गठन करें। क़ुराने मजीद ने इन परिवारों का परिचय इस प्रकार से करवाया है। 1. ऐसा परिवार जिसमें पति और पत्नी समान विचारधारा के हों और उनके बीच पूर्ण रूप से समन्वय पाया जाता हो। उदाहरण स्वरूप, हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातेमा (ज़)। 2. ऐसा परिवार जिसमें पति और पत्नी बुराईयों और ग़लत कार्यों में पूर्ण सहयोगी व समान विचार वाले हों, जैसे कि अबू लहब और उसकी पत्नी। 3. ऐसा परिवार जिसमें पति अच्छा और पत्नी बुरी हो। जैसे कि हज़रत लूत और नूह की पत्नियां। 4. ऐसा परिवार जिसमें पति बुरा लेकिन पत्नी अच्छी होती है। उदाहरण स्वरूप फ़िरऔन और उसकी पत्नी।

इस कार्यक्रम में हम एक ऐसे परिवार का उदाहरण दे रहे हैं, जिसमें पत्नी एक आध्यात्मिक और धार्मिक शख़्सियत है, लेकिन पति एक अधर्मी और दुष्ट व्यक्ति था। आसिया फ़िरऔन की पत्नी थीं, जो क़बतियान नाम के एक गुट का सरग़ना और मिस्र का राजा था। आसिया एक सुन्दर और प्रसिद्ध महिला थीं, इसलिए फ़िरऔन ने उनसे शादी कर ली। फ़िरऔन के महल में पहुंचने के बाद आसिया ने आम लोगों की सेना करना शुरू कर दी।

आसिया को अपने अत्याचारी एवं अंहकारी पति फ़िरऔन की संगत पसंद नहीं थी, लेकिन उसके सुधार की उम्मीद के कारण उसकी बुराईयों को सहन कर रही थीं। विशेष मौक़ों पर वे उसका मार्गदर्शन करके उसे भटकने से बचा लेती थीं। जब उन्होंने देखा कि फ़िरऔन की चकाचौंध करने वाली और भौतिक जीवन शैली से संतुष्टि नहीं हो पा रही है तो उन्होंने अपने ईमान की रक्षा और ईश्वर के अनुसरण के लिए कमर कस ली।

ईश्वरीय दूत हज़रत मूसा (अ) पर ईमान लाने वाले पहले व्यक्तियों में से एक आसिया थीं। फ़िरऔन ने अपनी रानी को मूसा पर ईमान लाने से रोकने का काफ़ी प्रयास किया। उसने हर प्रयास किया और यहां तक कि लालच और फिर धमकियां भी दीं। लेकिन जब उसके प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकला तो उसने उन्हें मूर्ख घोषित कर दिया। आसिया ने कहा, मैं मूर्ख नहीं हूं। मेरा, तुम्हारा और सबका ईश्वर वह है, जिसने संसार की रचना की है।

आसिया का ईश्वर पर ईमान था और वे अध्यात्म एवं उत्कृष्टता के उच्च दर्जे पर थीं। सामान्य रूप से धर्म और अध्यात्म से इंसान जीवन का अर्थ समझ जाता है। आज के आधुनिक ज़माने में भी हम आध्यात्मिक एवं धार्मिक लोगों को देखते हैं कि वे अन्य लोगों की तुलना में अधिक स्वस्थ हैं। इसलिए कि वे जीवन में सही मार्ग का चयन करते हैं। अध्यात्म के विभिन्न आयाम होते हैं, जैसे निष्ठा, बलिदान, तपस्या, इच्छाओं पर निंयत्रण और दूसरों की मदद।

अंहकारी फ़िरऔन इतना भ्रष्ट एवं अत्याचारी हो गया था कि आसिया जैसे उसके सबसे निकटवर्ती लोग भी उसके अत्याचार से सुरक्षित नहीं थे। उसने आसिया को सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया और कहा कि अगर वह अपने ईमान से हाथ उठा लें तो फिर से महल में वापस लौट सकती हैं। लेकिन आसिया का अपने ईश्वर पर ईमान इतना मज़बूत था कि उन्होंने फ़िरऔन के महल में जीवन बिताने से मौत को गले लगाना अधिक उचित समझा। उन्होंने फ़िरऔन और उसके अनुयाईयों की निंदा की और अपने ईमान पर डटी रहीं।

ईश्वर ने क़ुराने मजीद के सूरए तहरीम की 11वीं आयत में इस महान महिला की प्रशंसा की है और उनकी इन विशेषताओं के कारण उन्हें ईमान वालों के लिए एक आदर्श क़रार दिया है। क़ुरान कहता है, जो लोग ईमान लाए हैं, उनके लिए ईश्वर फ़िरऔन की पत्नी का उदाहरण देता है, जब उसने कहा, हे ईश्वर स्वर्ग में मेरे लिए एक घर बना दे और मुझे फ़िरऔन और उसके व्यवहार से मुक्ति दिला दे और मुझे अत्याचारियों से सुरक्षित रख।

इस तरह से आसिया ने साबित कर दिया कि पारिवारिक रिश्तों की एक सीमा होती है और अगर परिवार ग़लत रास्ते पर जा रहा है तो इंसान को अपना रास्ता अलग कर लेना चाहिए। आसिया ने मां की ममता और लाड प्यार के साथ बचपने में मूसा को मुक्ति दिलाई। अपने बेटे की तरह उनका पालन पोषण किया। उसके बाद उन पर ईमान लेकर आईं और स्वयं भी एकेश्वरवाद का प्रचार किया।

एक दूसरा परिवार जिसका क़ुरान ने परिचय करवाया है, ऐसा परिवार है, जिसमें पति ईश्वरीय दूत है और अध्यात्म के शिखर पर है, तो उसकी तुलना में पत्नी ईश्वर पर ईमान नहीं लाती है और अपने अधर्मी होने पर डटी रहती है। हज़रत नूह और हज़रत लूत का परिवार ऐसा ही था। सूरए तहरीम में उल्लेख है, जो लोग काफ़िर हो गए हैं, ईश्वर उनके लिए नूह और लूत की पत्नियों का  उदाहरण पेश करता है। वे दोनों हमारे दो नेक बंदों की सरपरस्ती में थीं, लेकिन उन दोनों ने ही विद्रोह किया और इन दोनों के साथ उनके संबंध का कोई लाभ नहीं था, उनसे कहा गया, आग में चली जाओ उन लोगों के साथ जो आग में जायेंगे।

विवाह इंसान की ज़िंदगी की किताब का सबसे महूत्वपूर्ण अध्याय है। इसीलिए पत्नी का चयन बहुत ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए। जो व्यक्ति अपना घर बसाना चाहता है, उसे कुछ मापदंडों का पालन करना चाहिए। पत्नी के चयन में सबसे अहम मापदंड उसका ईश्वर पर ईमान और उसकी सच्चाई है। यह मापदंड इतना महत्वपूर्ण है कि अयोग्य लोग भी इस मापदंड को पसंद करते हैं। इसके बावजूद हम इतिहास में देखते हैं कि कुछ ईश्वरीय दूतों की पत्नियां अपने पतियों के विपरीत विश्वास रखती थीं और उनका विरोध करती थीं। उनका स्पष्ट उदाहरण नूह और लूत की पत्नियां हैं। इन दोनों ने ही अपने पतियों को धोखा दिया और काफ़िर हो गईं। वे अपने पतियों के रहस्यों का पर्दाफ़ाश कर दिया करती थीं। हज़रत नूह की पत्नी लोगों से कहती थी कि नूह दीवाने हो गए हैं, जो कोई भी नूह की बातों पर ईमान लाता था, वह तुरंत इसकी सूचना अनेकेश्वरवादियों के सरग़नाओं को दे दिया करती थी, वे ईमान लाने वालों पर अत्याचार करते थे। हज़रत नूह को केवल अपनी नादान क़ौम से ही ख़तरा नहीं था, बल्कि घर में भी उन्हें ख़तरे और विरोध का सामना था।

हज़रत लूत की पत्नी ने भी कुछ ऐसा ही व्यवहार किया था। हज़रत लूत को अपनी क़ौम के ग़लत रास्ते पर जाने का बहुत दुख था। उनकी पत्नी भी ऐसे ही लोगों से प्रभावित थी, हालांकि वह स्वयं बदलचन नहीं थी, लेकिन ईश्वरीय दूत का सम्मान नहीं करती थी और उन पर अत्याचार करती थी। घर के माहौल को उसने ख़राब करके रख दिया था। यह दोनों महिलाएं दो सज्जन पुरुषों की पत्नियां थीं। लेकिन अनुचित व्यवहार के कारण ईश्वरीय प्रकोप में ग्रस्त हो गईं। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर परिवार का कोई एक सदस्य ग़लत व्यवहार करता है तो उसका नुक़सान पूरे परिवार को पहुंचता है। इसीलिए उनका अंजाम अच्छा नहीं हुआ। ईश्वर ने स्पष्ट कर दिया कि ईश्वरीय दूत की पत्नी होने का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। इंसान के कर्मों का उसे फल मिलता है।

 

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