Jun १७, २०१९ १३:३८ Asia/Kolkata

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं" तुम्हारा किसी से खुले दिल से मिलना तुम्हारी पहली नेकी है और वह तुम्हारे बड़प्पन को दर्शाती है।"

तो कितना अच्छा हो कि इंसान सूर्योदय के बाद अपने परिवार के सदस्यों से दिल खोलकर मिले और उन्हें खुशी और प्रफुल्लता का आभास कराये।

अगर आपके परिवार के समस्त सदस्य टीवी देखते हैं या किताब पढ़ते हैं तो वास्तव में इससे दिनचर्या के कामों के साथ उनका पूरा समय गुज़र जाता है। आज हम आपसे कुछ अनुशंसा करना चाहेंगे जिन्हें दष्टि में रखकर शरीर के वज़न में वृद्धि जैसी बहुत सी बीमारियों से अपने परिवार को न केवल बचा सकते हैं बल्कि परिवार में खुशी और प्रफुल्लता का माहौल भी पैदा कर सकते हैं।

पहला यह कि प्रतियोगिता करायें और परिवार के समस्त सदस्यों का आह्वान करें कि वे उसमें भाग लें। दूसरा यह कि प्रतिदिन 10 मिनट तक व्यायाम करें।

तीसरे यह कि जो शेर आपको पसंद हो उसे अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर पढ़ें, परिवार के सदस्यों को चुटकुले सुनाइये और पहेली बुझाइये और प्रतियोगिता जीतने वाले को पुरस्कार से सम्मानित कीजिये।

अगर मौका है और उचित अवसर है तो परिवार के सदस्यों के साथ पार्क जाइये या पर्वतारोहण कीजिये। वर्षा के समय पैदल चलिये और अगर बर्फ पड़ी हो तो उससे खेलिये। सादा व्यंजन तैयार कीजिये और पाकृतिक स्थल पर जाकर उसे सबके साथ मिलकर खाइये। सब मिलकर घर की सफाई करें सबको एक एक ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिये। व्यंजन बनाने की प्रतियोगिता कराइये और परिवार के समस्त सदस्यों विशेषकर बच्चों को व्यंजन बनाने का अवसर दीजिये। अलबत्ता यह सब बड़ों की निगरानी में होना चाहिये। श्रोताओ कार्यक्रम के इस भाग में हम आपको उस परिवार से परिचित कराने जा रहे हैं जिसे पवित्र कुरआन में सर्वोत्तम परिवार के रूप में याद किया गया है। जिन परिवारों की पवित्र कुरआन ने प्रशंसा की है उनमें से एक हज़रत अली अलैहिस्सलाम और जनाबे फातेमा ज़हरा सलामुल्ला अलैहा का परिवार है और यह दोनों हस्तियां पति-पत्नी अच्छाइयों, समरसता और सदगुणों के प्रतीक हैं। इस परिवार में पैग़म्बरे इस्लाम, इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नाना थे और हज़रत अली और जनाब फातेमा ज़हरा उनके माता- पिता थे। इस परिवार में हज़रत फातेमा ज़हरा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। घर का सारा काम करने के अलावा हज़रत फातेमा ज़हरा राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी भाग लेती थीं जबकि घर में उनकी केन्द्रीय भूमिका थी। इस परिवार में हर सदस्य दूसरे सदस्य के लिए किसी प्रकार की समस्या व विघ्न उत्पन्न किये बिना सामूहिक कार्यों में भाग लेता था। इस परिवार में पत्नी का अपने बाप और बच्चों की सेवा किसी प्रकार अपने जीवनसाथी के अधिकारों पर ध्यान देने से विरोधाभास नहीं रखती। इस परिवार में धर्मपरायणता और दिनचर्या के कार्यों पर ध्यान देने में किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं था। इसी प्रकार बच्चे को जन्म देने और प्रेम के मध्य किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं है। हज़रत अली और जनाबे फातेमा ज़हरा ने बहुत ही सादा जीवन आरंभ किया। यह सादा जीवन इतना प्रभावी है कि उसकी याद सदा के लिए इतिहास में अमर हो गयी है। हज़रत अली और जनाबे फातेमा ज़हरा ने अपने प्रेम से छोटे से मिट्टी के घर को निष्ठा, प्रेम और सच्चाई का सर्वोत्तम आदर्श बना दिया। हज़रत अली और जनाब फातेमा ज़हरा के परिवार के समस्त सदस्य महान ईश्वर के प्रेमी थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जब भी ईश्वर अपने बंदे को इज़्ज़त देना चाहता है तो उसे अपना प्रेमी बना देता है।“

महान ईश्वर से प्रेम की ज्वाला ने उस घर को प्रकाशित कर रखा था और उसके सदस्य महान ईश्वर के प्रेम में डूबे हुए थे। अतः हज़रत अली और जनाबे फातेमा ज़हरा भी ईश्वरीय प्रेम में डूबे हुए थे। हज़रत फातेमा ज़हरा अपने जीवन के यादगार क्षण में भी महान ईश्वर की याद को सर्वोपरि रखती थीं।

एक बार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पूछा कि अपनी पत्नी को कैसा पाया? तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने तुरंत जवाब में फरमाया “ईश्वर की उपासना और बंदगी में बेहतरीन सहायक।“

जनाब फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने अपने छोटे से घर को इस्लामी शिक्षाओं के केन्द्र में परिवर्तित कर दिया था। इस घर से बच्चों और लोगों का धार्मिक प्रशिक्षण करती थीं। उन्होंने अपने धार्मिक प्रशिक्षण से स्वस्थ, अच्छे, सफल और प्रभावी जीवन की शैली को दर्शा दिया।

पवित्र कुरआन के सूरे दहर के नाज़िल होने पर एक दृष्टि डालते हैं। इस सूरे को सूरे इंसान भी कहा जाता है। परित्याग और महान ईश्वर की प्रसन्नता के मार्ग में खर्च हज़रत अली और हज़रत फातेमा ज़हरा के घर की महत्वपूर्ण विशेषता है। पवित्र कुरआन के बहुत से शीया और सुन्नी व्याख्याकारों का मानना है कि सूरे दहर या इंसान पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के बारे में नाज़िल हुआ है। इस्लामी रवायतों में आया है कि एक बार  इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम बीमार हो गये।  पैग़म्बरे इस्लाम अपने कुछ साथियों के साथ उन्हें देखने के लिए आये तो उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि अपने बच्चों के ठीक होने के लिए मन्नत मांगो। इसके बाद हज़रत अली और जनाब फातेमा ज़हरा ने नज़्र किया कि अगर इमाम हसन और इमाम हुसैन ठीक हो गये तो वे तीन दिन तक रोज़ा रखेंगे। उसके कुछ दिनों के बाद इमाम हसन और इमाम हुसैन बीमारी से ठीक हो गये तो परिवार के समस्त सदस्यों ने रोज़ा रखा। हज़रत फातेमा ज़हरा ने थोड़ा गेहूं पीसा और उसकी रोटी पकाई। जब इफ्तार यानी रोज़ा खोलने का समय आया तो एक भिखारी उनके दरवाज़े पर आया उसने कहा हे पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन आप पर सलाम हो। मैं एक असहाय मुसलमान हूं। मुझे खाना दीजिये। ईश्वर आपको स्वर्ग का खाना खिलाये। सबने भिखारी को स्वयं पर प्राथमिकता दी और सबने अपनी- अपनी रोटी भिखारी को दे दी और स्वयं केवल पानी से इफ्तार कर लिया। दूसरे दिन सबने रोज़ा रखा और जब रोज़ा इफ्तार का समय आया तो मांगने वाला उनके दरवाज़े पर आया और कहा कि मैं एक अनाथ हूं मैं भूखा हूं मुझे खाना दीजिये तो सबने अपनी- अपनी रोटी उसे दे दी और पानी पीकर रात गुज़ार दी और तीसरे दिन भी कुछ खाये बिना रोज़ा रख लिया। तीसरे दिन शाम को जब रोज़ा खोलने का समय आया तो हज़रत अली और जनाबे फातेमा ज़हरा के दरवाज़े पर एक बंदी आया और उसने खाना मांगा तो सबने अपने- अपने हिस्से की रोटी मांगने वाले को दे दी। जब पैग़म्बरे इस्लाम अपने पवित्र परिजनों के पास आये और उन्होंने अपने परिजनों को भूख की हालत में देखा तो रोहांसे हो गये। इस दौरान पवित्र कुरआन के सूरे इंसान की 5 से लेकर 9 तक कि आयतें उनके बारे में नाज़िल हुईं।

"निश्चित रूप से वफादार व भले लोग एसे जाम पियेंगे जिसमें काफूर का मिश्रण होगा उस सोते व चश्मे का क्या कहना जिस पर बैठकर अल्लाह के बंदे पियेंगे इस तरह कि उसे जहां चाहेंगे बहा ले जायेंगे। वे मन्नत पूरी करते हैं और उस दिन से डरते हैं जिसका प्रकोप बहुत भयानक व प्रलयकारी होगा और वे मोहताज, अनाथ और बंदी को खाना खिलाते हैं जबकि उन्हें उस खाने की ज़रूरत होती है। (वे कहते हैं) हम तो केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए तुम्हें खाना खिलाते हैं हमें न तो तुमसे इसका बदला चाहिये और न ही तुम्हारा शुक्रिया चाहिये।"

पवित्र कुरआन के अनुसार महान ईश्वर की राह में खर्च करना मूल्यवान और अच्छी चीज़ है और महान ईश्वर इस चीज़ की गणना सदाचारी लोगों की विशेषताओं में करता है और उसे मुक्ति व कल्याण का कारण समझता है। इस संबंध में हज़रत अली और जनाब फातेमा का परिवार सबसे आगे था। अगर किसी परिवार की ओर से महान ईश्वर की राह में खर्च करने की उपेक्षा कर दी जाये तो कभी यह कार्य परिवार से ईश्वरीय अनुकंपाओं के समाप्त होने का कारण बनता है।

           

जब बाग़े फदक हज़रत फातेमा के पास था तो कुछ रवायतों के अनुसार उसकी वार्षिक आमदनी 70 हज़ार से लेकर एक लाख बीस हज़ार सोने के सिक्के तक थी। बागे फेदक से होने वाली सारी आमदनी हज़रत फातेमा ज़हरा की सेवा में पेश की जाती थी। हज़रत फातेमा ज़हरा उसमें से अपनी ज़रुरत भर का ले लेती थीं और बाकी सारी आमदनी गरीबों, निर्धनों और मदीना के दरिद्रों में बांट देती थीं। इस प्रकार जिस दिन बाग़े फेदक की मासिक आमदनी हज़रत फातेमा ज़हरा की सेवा में पेश की जाती थी तो मदीना के गरीबों, निर्धनों और भिखारियों की ईद हो जाती थी।

                       

मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री प्रोफेसर मोहम्मद हुसैन फरजाद परिवार के संबंधों को चार भागों में बांटते हैं प्रेमपूर्ण संबंध, संतुलित संबंध, सामान्य संबंध और निरर्थक संबंध। वह कहते हैं" आरंभिक दो प्रकार के परिवारों के सदस्य एक दूसरे के साथ बहुत अच्छी तरह से रह सकते हैं परंतु अध्ययनों ने दर्शा दिया है कि भागे हुए बच्चे विशेषकर लड़कियों का संबंध अंतिम दो प्रकार के परिवारों से होता है। इस प्रकार के परिवारों के सदस्यों को दूसरों के छलावे और बहकावे में आने का ख़तरा अधिक रहता है। प्रोफेसर फरजाद लड़कियों की संवेदनशील भावनाओं को दृष्टि में रखते हुए कहते हैं" आमतौर पर बाप अपनी बेटियों की सहायता करते हैं ताकि उनकी बेटियां समस्याओं का सामना कर सकें, दुनिया का भ्रमण करें। जिस बाप के पास समय हो उसे चाहिये कि वह अपनी बेटी के साथ रास्ता चले, वह अपनी बेटी का पथप्रदर्शन करे, प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरे, उसकी बातों को सुने और उसे आराम व सुकून का आभास कराये, अगर ऐसा करता है तो उसे अपने जीवन का मूल्यवान उपहार देता है।"

अध्ययन इस बात के सूचक हैं कि वे लड़कियां बेहतर ढंग से काम करती हैं और उनका आत्म विश्वास अधिक होता है जिनके बाप उनकी सहायता इसलिए करते हैं ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हो जायें और स्वतंत्र ढंग से काम कर सकें। इस प्रकार की लड़कियों का आत्म विश्वास अधिक होने के अलावा वे अपने बच्चों के लिए अधिक अच्छे ढंग से मां की भूमिका निभा सकती हैं।

जो इंसान अपनी लड़की की ज़िन्दगी में अच्छे बाप की भूमिका निभाना चाहता है उसे कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है। जिन बिन्दुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है उनमें से एक यह है कि जहां तक संभव हो सके इंसान को चाहिये कि अपनी लड़की के स्कूल के कामों की निगरानी करे और अगर यह कार्य उसके लिए संभव नहीं है तो उसे इस बात का विश्वास नहीं रखना चाहिये कि इस संबंध में उसकी पत्नी समस्त आवश्यक कार्यों को अंजाम देगी।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” बाप के अच्छे होने के कारण संतान गुमराही से बची रहती है।“

बेहतर है कि इंसान एक समय निर्धारित करे और हर हफ्तो अपनी लड़की की सहेली से मुलाकात करे। जब इंसान अपनी लड़की की सहेली से मुलाकात करेगा और उसे पहचानेगा तो उसके लिए इस बात की संभावना उत्पन्न हो जायेगी कि वह अपनी लड़की से उन मामलों के बारे में बात कर सकता है जिनके बारे में उसकी लड़की को अपनी सहलियों से समस्या व मतभेद होता है।

जो इंसान अपनी लड़की की ज़िन्दगी में अच्छी भूमिका निभाना चाहता है उसे चाहिये कि वह अपनी लड़की का प्रोत्साहन आध्यात्मिक कार्यों के लिए भी करे। बहुत से आध्यात्मिक सभाओं में भाग लेने से आपकी लड़की अपने लिए अच्छी सहेलियों का चयन कर सकती है।

इसी तरह हर इंसान की लड़की बेहतरीन मां की भूमिका निभा सकती है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर इंसान अपनी लड़की को अच्छी माता की भूमिका नहीं सिखा सकता तो आध्यात्मिक विकास में उसने उसकी कोई विशेष सहायता नहीं की है। इंसान की लड़कियों के लिए ज़रूरी है कि वे प्रेम और सुरक्षा की छत्रछाया में पले- बढें और पूरिपूर्ण महिला बनें। यह इंसानों की लड़कियों के अधिकार हैं और वे इस अधिकार को प्राप्त करने की पात्र हैं।

 

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