Jun १८, २०१९ १४:४१ Asia/Kolkata

आपको अवश्य याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में हमने उन बच्चों की चर्चा की थी जो विशेष परिस्थिति में होते हैं और उन पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होती है और उन पर ध्यान देना समाज के समस्त लोगों और सरकारों की ज़िम्मेदारी होती है।

जिन बच्चों पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है उनमें बेघर होने वाले बच्चे हैं।

दुनिया में जितने लोग बेघर हैं उनमें आधी जनसंख्या बच्चों की है। इस जनसंख्या में वे बच्चे शामिल हैं जिनके शरणार्थी होने की स्थिति की आधारिक रूप से पुष्टि की गयी है या बेघर की स्थिति में पड़े हुए हैं। बच्चों के बेघर होने के विभिन्न कारण हैं। जैसे युद्ध, आंतरिक विवाद, पर्यावरण संकट, निर्धनता, भूखमरी और विषम आर्थिक परिस्थिति आदि। बेघर होने वाले बच्चों में बहुत से बच्चे एसे होते हैं जिनके पास किसी प्रकार का कानूनी दस्तावेज़ नहीं होता है। एसे बच्चों के शोषण की संभावना अधिक रहती। यद्पि बहुत से समाजों ने इस प्रकार के बेघर होने वाले बच्चों के  अपने 2 देशों में आगमन का स्वागत किया है परंतु उनको और उनके परिजनों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं एवं भेदभाव का सामना है और रहने के लिए उन्हें और उनके परिजनों को नगर के किनारे डाल दिया गया है। यही नहीं जो बच्चे बेघर हो गये हैं वे पढ़ाई- लिखाई, स्वास्थ्य, चिकित्सा और सामाजिक सेवाओं वंचित हो गये हैं।

यूनिसेफ ने घोषणा की है कि दुनिया में बेघर होने वाले बच्चों की संख्या में गत 5 वर्षों में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट में आया है कि इस समय दुनिया में बेघर होने वाले जो लोग हैं उनमें आधे से अधिक केवल बच्चे हैं। पूरी दुनिया में जो बेघर बच्चे हैं उनमें आधे केवल अफगानिस्तान और सीरिया के हैं जिन्हें शरणार्थी उच्चायोग का समर्थन प्राप्त है और लगभग तीन चौथाई शरणार्थी बच्चे विश्व के 10 देशों के हैं। लड़ाई और युद्ध का आरंभ हो जाना और उनका जारी रहना बेघर हो जाने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि का कारण बना है। इसका नतीजा यह निकला है कि इन बच्चों को मानव तस्करी और दूसरे प्रकार के शोषण के खतरे का सामना है। यूनिसेफ की रिपोर्ट में आया है कि पूरी दुनिया में लगभग पांच करोड़ बच्चे पलायन करने पर बाध्य हुए हैं या अपने ही देशों में वे बेघर हुए हैं। इनमें से दो करोड़ 80 लाख बच्चे युद्ध के कारण भागने पर बुरा मजबूर हुए हैं।

जैसाकि कहा गया कि दुनिया में जो बेघर होने वाले बच्चे हैं उन्हें विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना है और कुछ एसे भी कारण हैं जो इन खतरों को और अधिक कर देते हैं। क्योंकि वे अपने व्यक्तित्व के गठन और उसकी परिपूर्णता के आरंभिक काल में हैं और अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। एसे समय में बेघर होने, पलायन करने और समस्याओं का सामना होने से उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।

बड़ी उम्र के बेघर होने वाले लोगों की तुलना में बेघर होने वाले बच्चों को अधिक शारीरिक व मानसिक ख़तरों का सामना होता है इसलिए उन्हें विशेष समर्थन की आवश्यकता होती है। खाद्य पदार्थों में कमी, आवास, छुआछूत एवं गैर छुआछूत की बीमारी, परिवार से अलग होना, मजबूरन मिलिट्री ट्रेनिंग लेना, यौन शोषण और पढ़ाई- लिखाई का बंद हो जाना वे चीज़ें हैं जिनके कारण बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है यहां तक  कि शरणार्थी शिविरों की अच्छी स्थिति न होने और इन शिविरों में रहने वालों की सांस्कृतिक दूरी के कारण बच्चों की प्राकृतिक स्थिति और उनके स्वभाव पर काफी प्रभाव पड़ता है। कुल मिलाकर बच्चों के पलायन के कारण उनके शरीर और आत्मा पर जो प्रभाव पड़ता है उसके अलावा प्रशिक्षा के क्षेत्र में भी काफी प्रभाव पड़ता है। इस संबंध में कहा जा सकता है कि शिक्षा व प्रशिक्षा में वे पिछड़ जाते हैं यहां तक कि उनमें से बहुत से बच्चे एसे भी हैं जिनके अंदर पढ़ाई- लिखाई की रुचि ही खत्म हो जाती है।

बेघर होने वाले बच्चों के लिए बजट कम विशेष किये गये हैं जिससे उनको पहुंचने वाली क्षति गम्भीर हो गयी है। इसके अलावा बेघर होने वाले बच्चों की आवश्यकता खाने- पीने से अधिक है। जो बच्चे हिंसा से भागते हैं उन्हें गम्भीर समस्याओं व चुनौतियों का सामना होता है। अगर उनका समर्थन नहीं किया गया तो लंबे समय तक उन्हें समस्याओं का सामना रहेगा। बेघर होने वाले बच्चों को अवसाद और तनाव जैसी विभिन्न प्रकार की बीमारियों का सामना होता है। इस प्रकार की बीमारियां बेघर होने वाले या अपने माता- पिता से दूर हो जाने वाले बच्चों में अधिक होती हैं।

16 दिसंबर 1926 को जनेवा घोषणा पत्र शीर्षक के अंतर्गत बच्चों के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र का पहला प्रस्ताव पारित किया गया। उसकी भूमिका और पांच प्रस्तावों में बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक समर्थन पर बहुत बल दिया गया है। इसके बाद 10 दिसंबर 1948 में मानवाधिकार का जो अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्र पारित किया गया उसमें बच्चों सहित बेघर होने वाले सभी लोगों के अधिकारों पर ध्यान दिया गया है। उसके बाद वर्ष 1949 में उन बच्चों के अधिकारों को संकलित किया गया जो सशस्त्र लड़ाइयों व युद्धों में भेंट चढ़ जाते हैं। 20 नवंबर 1959 को राष्ट्रसंघ की निगरानी में बालाधिकार घोषणापत्र पारित किया गया जिसमें जनेवा कन्वेशन पर बल दिया गया। बेघर होने वाले बच्चों के अधिकारों के संबंध में अनुच्छेद 22 में आया है कि जो बच्चे बेघर हुए हैं और वे शरण चाहते हैं चाहे वे बच्चे अपने माता- पिता के साथ हों या किसी और के साथ तो कंवेन्शन के सदस्य देश इस बात के प्रति कटिबद्ध हैं कि वे उनके साथ स्थानीय, अंतरराष्ट्रीय या दूसरे मानवता प्रेमी कानूनों के अनुसार व्यवहार करें।

इसी प्रकार कंवेन्शन के सदस्य देशों को चाहिये कि लापता हुए मां- बाप या परिवार के दूसरे सदस्यों को ढूंढ़ने में राष्ट्रसंघ, दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों व संस्थाओं या उन गैर सरकारी संगठनों व संस्थाओं के साथ सहकारिता करें जो शरण चाहने वाले बच्चों के माता- पिता या परिवार के सदस्यों के बारे में जानकारी एकत्रित कर रहे हैं। इसी प्रकार इस कंवेन्शन में आया है कि कंवेन्शन के सदस्य देशों को चाहिये कि शरण चाहने वाले बच्चों के साथ परिवार के बच्चों की तरह व्यवहार किया जाए चाहे वे जिस कारण से अपने परिवार से वंचित हों गये हों।  

इस कंवेन्शन में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख किया गया है। पहली बात यह है कि कंवेन्शन के इस अनुच्छेद में शरण चाहने वाले बच्चों के मामले पर ध्यान दिया गया है वह बच्चा अपने मां- बाप के साथ हो या किसी दूसरे व्यक्ति के साथ। इसी प्रकार कंवेन्शन के सदस्य देशों का आह्वान किया गया है कि वे मानवता प्रेमी या मानवाधिकार के दूसरे कानूनों के अनुसार अमल करें। इसी प्रकार कंवेन्शन के इस अनुच्छेद में सदस्य देशों का आह्वान किया गया है कि वे शरणार्थी बच्चों के माता - पिता या परिवार के दूसरे सदस्यों को ढूंढ़ने का प्रयास करें और माता- पिता या परिवार के सदस्यों के न मिलने की स्थिति में भी उनसे साथ परिवार जैसा ही व्यवहार करें।

कंवेन्शन के इस अनुच्छेद में एक रोचक बात यह है कि इसमें शरणार्थी और शरण लेने की स्थिति को परिभाषित नहीं किया गया है और यह बात स्पष्ट नहीं है कि किस व्यक्ति को शरणार्थी कहा जाता है और शरणार्थी के रूप में उसका समर्थन किया गया है। शरणार्थी बच्चे का कोई स्पष्ट मापदंड या उसकी कोई परिभाषा पेश नहीं की गयी है। दूसरी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से शरण लेने के कुछ विशेष कानून हैं। शरणार्थी बच्चे के अधिकारों को सुनिश्चित बनाया गया है चाहे वह अपने माता -पिता के साथ हो या किसी और के साथ।

जो लोग बेघर हो जाते हैं आमतौर पर वे अपनी समस्त पूंजी से हाथ धो बैठते हैं और अपने परिवार के सदस्यों से अलग हो जाते हैं। इनमें बहुत से बच्चे होते हैं। बेघर होने वालों के लिए राष्ट्रसंघ के पास एक कार्यक्रम है जिसके परिप्रेक्ष्य में वह पूरी दुनिया में बेघर होने वाले व्यक्तियों व बच्चों के लिए कार्य करता है। देशों को चाहिये कि वे शरणार्थी बच्चों का समर्थन करें और उनकी सहायता को सुनिश्चित बनायें और इसमें वे बच्चे शामिल हैं जो अकेले रहते हैं और वे बच्चे भी शामिल हैं जो अपने माता- पिता या परिवार के किसी अन्य सदस्य के साथ रहते हैं।

शरणार्थी लोगों और बच्चों को स्वीकार करने वाले देशों को चाहिये कि उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने, हिंसा को रोकने, लोगों का सम्मान करने और उनके सुकून व आराम  के लिए मानसिक केन्द्रों का गठन करना चाहिये। इस प्रकार के केन्द्रों के गठन में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों को ध्यान में रखना चाहिये।

 

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