Aug ०४, २०१९ १६:२१ Asia/Kolkata

डील आफ़ सेन्चुरी के हवाले से पिछले कार्यक्रम में हमने आपको बताया था कि फ़िलिस्तीनियों से सांठ गांठ करने के लिए कई समझौते हुए किन्तु उनमें से कोई एक भी समझौता सफल नहीं हो सका।

13 सितम्बर 1993 में विश्व की तीन हज़ार हस्तियों की उपस्थिति में ज़ायोनी शासन और फ़िलिस्तीनी प्रशासन के बीच अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के सामने ओस्लो समझौता हुआ। उसके बाद वर्ष 1999 में एहूद बराक के सत्ता में पहुंचने के बाद मिस्र के शहर शरमुश्शैख़ में फ़िलिस्तीनी प्रशासन और ज़ायोनी शासन के बीच वाय रीवर-2 या शरमुश्शैख़ समझौते पर हस्ताक्षर हुए। यह दोनों समझौते भी सफल नहीं हो सके।

जहां एक ओर फ़िलिस्तीन पर सौदे बाज़ी पे सौदेबाज़ी हो रही है वहीं फ़िलिस्तीन की जनता पूरी ताक़त के साथ इसे नकार रही है। फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के एक वरिष्ठ नेता ने ज़ायोनी षड्यंत्रों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि फ़िलिस्तीन का सौदा करने वाले यहीं पर ख़ामोश नहीं बैठे उन्होंने सन 2000 में कैंप डेविड में मध्यपूर्व की तथाकथित शांति वार्ता का क्रम जारी रखा। इस वार्ता में अमरीका के तत्वकालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, ज़ायोनी शासन के तत्कालीन प्रधानमंत्री एहूद बराक और फ़िलिस्तीनी प्रशासन के मुखिया यासिर अराफ़ात ने भाग लिया। बैतुल मुक़द्दस पर मालेकाना हक़ और इस महत्वपूर्ण शहर को अपनी अपनी राजधानी बनाने के लिए फ़िलिस्तीनी और ज़ायोनी दोनों ही प्रतिनिधि मंडलों के प्रयास, यही वह विषय था जिस पर दोनों पक्षों ने कैंप डेविड में अधिकतर चर्चा की। इस बैठक में फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख यासिर आराफ़ात ने बैतुल मुक़द्दस की राजधानी वाले एक स्वतंत्रत फ़िलिस्तीनी देश के गठन का अपना संकल्प दोहराया था। उन्होंने कैंप डेविड में अमरीकी राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए कहा था कि फ़िलिस्तीन के उस नेता ने अभी अपनी मां की कोख से जन्म नहीं लिया जो बैतुल मुक़द्दस को भूल जाए।

रोचक बात यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, ज़ायोनी प्रधानमंत्री एहूद बराक और फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख यासिर आराफ़ात जब कांफ़्रेस रूम में जा रहे थे तो उन्होंने पत्रकारों को एक ग्रुप फ़ोटो दी और पत्रकारों ने उनसे सवाल किया। यहां पर ज़ायोनी प्रधानमंत्री और फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख यासिर आराफ़ात ख़ामोश रहे किन्तु बिल क्लिंटन ने इन दोनों की ओर से कहा कि हमें अभी कुछ नहीं कहना है, हम वार्ता के लिए जा रहे हैं और वार्ता में जो फ़ैसला होगा उससे आप लोगों को अवगत कराया जाएगा।

यहां पर बात ख़त्म हो गयी और तीनों नेता कांफ़्रेंस रूम की ओर बढ़े, सबसे पहले अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन कमरे में दाख़िल हुए और उसके बाद फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख यासिर आराफ़ात और ज़ायोनी प्रधानमंत्री एहूद बराक में पहले आप, पहले आप का जो सिलसिला शुरु हुआ वह काफ़ी देर तक चलता रहा।

यह सिक्के का दूसरा रुख़ था। इतिहास गवाह है कि ईरान में जब इस्लामी क्रांति सफल हुई और इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी ने फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख यासिर अराफ़ात को ईरान का न्योता दिया। ईरान में यासिर आराफ़ात का भरपूर स्वागत हुआ और उन्होंने इस अवसर पर पत्रकारों से बात करते हुए ईरान और इमाम ख़ुमैनी की सराहना की।

बहरहाल कैंप डेविड बैठक हुई और आख़िरकार अमरीकी अधिकारियों ने आधिकारिक रूप से इस वार्ता की विफल की स्वीकारोक्ति की, यह बैठक दो सप्ताह तक परिणामहीन उठा पटख के बाद आख़िरकार समाप्त हो गयी और इसने सिद्ध कर दिया कि ज़ायोनी शासन अपनी नीतियों से पीछे हटने को तैयार नहीं है और यहां तक कि पूर्वी बैतुल मुक़द्दस को भी स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी देश की राजधानी स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इस्राईल और फ़िलिस्तीनियो के बीच निरंतर तथाकथित शांति समझौते को नकाराते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा था कि यह सुलह नहीं बल्कि कलंक है।

कैंप डेविड वार्ता की विफलता के बाद मार्च 2002 में अरब संघ के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक लेबनान की राजधानी बैरूत में आयोजित हुई। इस बैठक में फ़िलिस्तीनियों और ज़ायोनियों के बीच झड़पें समाप्त करने की योजना पेश की गयी। इस योजना को फ़िलिस्तीनी प्रशासन के तत्कालीन प्रमुख यासिर आराफ़ात की अनुपस्थिति में पास कर लिया गया। इस योजना के अनुसार ज़ायोनी शासन को 1967 की सीमाओं तक पीछे हटना होगा और इसके मुक़ाबले में अरब जगत भी इसको आधिकारिक रूप से देश का दर्जा देंगे किन्तु ज़ायोनी शासन ने वर्ष 1967 की सीमाओं से पीछे हटने से इनकार कर दिया और कहा कि वह फ़िलिस्तीनी विस्थापितों की वापसी के हक़ को आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं करेंगा। या यूं कहा जाए कि इस्राईल ने अरबों की योजना का पूरी तरह से विरोध कर दिया।

मामला यहीं पर नहीं रुका, शांति के लिए रोडमैप नामक षड्यंत्रकारी योजना वर्ष 2002 में अमरीका, यूरोपीय संघ, रूस और संयुक्त राष्ट्र संघ के सुझाव पर पेश की गयी। इसका लक्ष्य, फ़िलिस्तीन और इस्राईल दो देशों का एक साथ गठन है। इस योजना में फ़िलिस्तीनी गुटों का निरस्त्रीकरण तथा बंदियों की आज़ादी भी शामिल थी, इस योजना को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पास किया गया। इन प्रयासों का परिणाम जेनेवा संधि के रूप में सामने आया। 50 पृष्ठों पर आधारित यह ढाई वर्षों की गुप्त वार्ताओं का परिणाम था। इन वार्ताओं में इस्राईल की ओर से ज़ायोनी शासन के पूर्व न्यायमंत्री यूसी बेलिन ने जबकि फ़िलिस्तीनी प्रशासन की ओर से फ़िलिस्तीन के पूर्व ख़ुफ़िया विभाग के मंत्री यासिर अब्दो रब्बो ने भाग लिया था। पहली दिसम्बर 2003 को दोनों पक्षों ने जेनेवा में समझौते पर हस्ताक्षर किए किन्तु ज़ायोनी शासन ने कुछ समय बाद जेनेवा योजना को पूरी तरह रद्द कर दिया और इस योजना को इस्राईल को कमज़ोर करने का प्रयास क़रार दिया।

बहरहाल वर्तमान समय में इस्लाम के विरुद्ध अमरीका और ज़ायोनी शासन के षड्यंत्रों का क्रम जारी है इसीलिए पूरी दुनिया के मुसलमानों को एकजुट हो जाना चाहिए।  

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