Aug १०, २०१९ १६:३९ Asia/Kolkata

अमरीका में अल्पसंख्यकों विशेषकर रेड इन्डियन्स के विरुद्ध इस देश की पुलिस और सेना की हिंसा उतनी ही पुरानी है जितना इस देश का इतिहास। 

एसे में यह कहा जा सकता है कि अमरीकी पुलिस अपने गठन के समय से ही यहा रहने वाले अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसक मनोवृत्ति रखती है।  अमरीका के गठन के समय से ही इस देश की पुलिस, रेड इन्डियन्स के विरुद्ध हिंसक व्यवहार अपनाती आई है।  पुलिस का यह हिंसक व्यवहार अब भी जारी है।  वर्तमान समय में रेड इन्डियन्स, न केवल अमरीकी पुलिस की हिंसा की ज़द में हैं बल्कि उनको प्रयोगशाला के चूहों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।  सीएनएन ने 2014 में अपनी एक रिपोर्ट में यह रहस्योद्घाटन किया था कि अमरीकी सरकार ने बहुत से रेड इन्डियन्स पर प्रयोगशाला के चूहों की भांति रेडियोएक्टिव का प्रयोग किया था।  इसी प्रकार "राजर कैन" ने अपनी पुस्तक "बेनक़ाब अमरीका" में इस ओर संकेत किया है कि अमरीकी सरकार ने रेड इन्डियन्स के संबन्ध में बहुत से समझौतों पर अमल ही नहीं किया।  जब से संयुक्त राज्य अमरीका का गठन हुआ है तब से रेड इन्डियन्स के साथ अमरीकी सरकार 400 से अधिक समझौते कर चुकी है।  विशेष बात यह है कि अमरीकी सरकार ने इनमे से किसी एक समझौते पर भी अमल नहीं किया है।

जैसाकि हम पहले के कार्यक्रमों में बता चुके हैं कि अमरीकी महाद्वीप के मुख्य नागरिक रेड इन्डियन्स ही हैं।  अतिक्रमणकारी श्वेत चमड़ी वालों विशेषकर अंग्रेज़ो ने रेड इन्डियन्स की मातृभूमि पर अधिकार जमा लिया।  इस प्रकार यह रेंड इन्डियन, अपने मूल स्थल अर्थात पूर्वोत्तरी अमरीका से दक्षिण व दक्षिण पश्चिमी अमरीका कूच करने पर विवश हुए।  कूच पर इस प्रकार से विवश किये जाने के कारण रेड इन्डियन्स की अपनी पहचान के लिए गंभीर ख़तरे पैदा हो गए।  आज वे लोग अपनी मूल क़बाएली ज़िंदगी से पूरी तरह से वंचित हो चुके हैं।  इस समय बहुत से अमरीकी रेड इन्डियन्स को अपने ही देश में कई प्रकार की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का सामना है।  इनमें से अधिकांश को बेरोज़गारी और घर न होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।  इसके अतिरिक्त रेड इन्डियन्स को अमरीकी पुलिस की बरबर्ता का भी सामना करना पड़ रहा है जिसमे उनकी हत्याएं भी शामिल हैं।  उदाहरण के लिए "थामस केली" की निर्मम हत्या का उल्लेख किया जा सकता है।  थामस केली, केलथफ़ोर्निया के Fullerton नगर की सड़कों पर जीवन गुज़ारता था।  5 जूलाई 2011 को फूलेरटन पुलिस के हाथों उसकी हत्या कर दी गई।  उस दिन फूलेरटन नगर की पुलिस ने यह कहकर उसपर शाकर से हमला किया कि गिरफ़्तार किये जाते समय वह बच निकलने का प्रयास कर रहा था हालांकि उसको छह पुलिसकर्मियों ने घेर रखा था।  शाकर का प्रयोग करने के बाद पुलिस ने थामस केली को ठोकरों से बुरी तरह मारापीटा था।

इस घटना से संबन्धित वीडियो में दिखाया गया है कि छह पुलिसकर्मी थामस केली पर हमला कर रहे हैं।  थामस केवल ज़मीन पर पड़ा हुआ है और अमरीकी पुलिसकर्मी उसपर शाकर से लगातार वार कर रहे हैं।  थामस को 5 बार शाकर से शाक लगाए गए।  साथ ही बहुत ही बुरी तरह से उसकी पिटाई भी की गई।  पुलिस की निर्मम पिटाई के कारण थामस केली कोमा में चला गया जिसके वाद वह कभी भी कोमा से वापस नहीं आ सका।

रेड इन्डियन्स पर श्वेत अमरीकी पुलिस के हमले की एक और कहानी 30 अगस्त 2010 की है जब "इयान बिर्क" नामक श्वेत पुलिसकर्मी ने जान विलयम्स नामस उस बहरे रेड इन्डियन को गोली मार दी जो सड़को पर पेंटिंग बेचकर अपना ख़र्च चलाता था।  यह घटना अमरीकी नगर सियाटेल की है।  अमरीका के क़ानून के अनुसार जब कोई व्यक्ति सड़क पर हथियार लेकर चले और राहगीरों के लिए ख़तरे पैदा करने लगे तो पुलिस को यह अधिकार है कि वह उस व्यक्ति को हथियार ज़मीन पर रखने की चेतावनी तीन बार दे।  जब तीन चेतावनी सुनने के बाद भी वह व्यक्ति अपना हथियार नहीं रखता को पुलिस उसपर गोली चला सकती है।

जान विलयम का मामला यह है कि वह सड़क के किनारे बैठकर पारंपरिक पेंटिग्स बेचा करता था।  उसके पास एक छोटा सा चाक़ू था जिससे वह पेंटिंग के फ्रेम की लकड़िया काटकर ठीक करता था।  30 अगस्त को भी वह सड़के किनारे बैठा हुआ यही काम कर रहा था।  वह बहरा भी था जिसके कारण उसके लिए सुनना कठिन था।  इसी बीच पुलिस ने उसपर गोली चला दी।  पुलिस ने अपनी कार्यकवाही के लिए यह तर्क पेश किया कि जान विलयम ने पुलिस की तीनों चेतावनियों को अनदेखा किया था जिसके कारण उसे विवश होकर गोली चलानी पड़ी।

शोध यह बताते हैं कि अमरीकी सरकार की ओर से इस देश में हिंसा में मरने वालों की जो संख्या आधिकारिक रूप में पेश की जाती है वह वास्तविक संख्या से बहुत भिन्न होती है।  इन घटनाओं में मरने वाले रेड इन्डियन्स की संख्या श्वेत अमरीकियों की तुलना में बहुत अधिक रहती है।  एसी घटनाओं में रेड इन्डियन और अश्वेत अधिक मारे जाते हैं।  वाशिग्टन के कोर्नेल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों तथा शोधकर्ताओं की टीम का संयुक्त अध्ययन बताता है कि अमरीकी पुलिस के हाथों प्रतिदिन कम से कम 3 लोग मारे जाते हैं।  इस प्रकार अमरीकी पुलिस के हाथों मारे जाने वाले लोगों की प्रतिवर्ष संख्या 1000 से अधिक है।  इस अध्ययन के अनुसार अमरीका में गोलीबारी में मारे जाने वालों से संबन्धित सरकारी आंकड़ों की तुलना में वास्वतिक आंकड़े लगभग दो बराबर हैं।

पुलिस वाएलेंस मैपिंग की रिपोर्ट के अनुसार सन 2017 में अमरीका में पुलिस की गोलियों से मरने वालों में 13 प्रतिशत लैटिन मूल के लोग थे।  यह संख्या, लैटिन अमरीकी मूल के निवासियों के प्रति अमरीकी पुलिस की बढ़ती क्रूरता को दर्शाती है।  वर्तमान समय में लैटिन अमरीकी मूल के लोग, अमरीका के सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं।  अफ्रीकी मूल के लोग इनके बाद आते हैं।  कहा जा रहा है कि सन 2050 तक अमरीका में रहने वाले लैटिन अमरीकी मूल के निवासियों की संख्या सबसे अधिक होगी और वे बहुसंख्यक हो जाएंगे।  इस प्रकार से अमरीकी समाज और राजनीति में उनकी सक्रिय भूमिका होनी चाहिए लेकिन वास्तव में एसा कुछ नहीं है।  अपने पूर्वजों की ही भांति लैटिन अमरीकी पलायनकर्ताओं ने सुखद जीवन की तलाश में अमरीका का रुख़ किया था।  आज भी लैटिन अमरीकियों की बड़ी संख्या भरपूर प्रयासों के बावजूद अमरीका में निर्धन्ता में जीवन गुज़ार रहे हैं।  यह लोग निचले स्तर के या ख़तरों से भरे कामों के लिए चुने जाते हैं।

लैटिन अमरीकी मूल के अधिकांश लोग मज़दूरी, चौकीदारी, सफ़ाई का काम करने, रेस्टोरेंट में वेटर का काम करने, गगनचुंबी इमारतों के शीशे साफ करने, वाहनों की सफाई और धुलाई जैसे कामों में व्यस्त दिखाई देंगे।  यह लोग शहर के उस क्षेत्र में रहते हैं जहां पर निर्धन वर्ग के लोग विषम परिस्थितियों में ज़िंदगी गुज़ारते हैं।  लैटिन अमरीकी मूल के वे निवासी जो ग़ैर क़ानूनी ढंग से अमरीका में प्रविष्ट हो जाते हैं वे सामान्यः उन क्षेत्रों में रहने लगते हैं जहां पर अधिकतर अपराधी रहते हैं।  एसे क्षेत्र में रहने के कारण पुलिस उनको अपराधी की दृष्टि से देखती है।  इन सारी बातों के दृष्टिगत अमरीका में रहने वाले लैटिन अमरीकी मूल के निवासी सदैव ही पुलिस की हिंसा का शिकार बनते हैं।

सन 1999 में कुछ अमरीकी पुलिस अधिकारियों ने टेक्सास में मेक्सिकी मूल के एक परिवार के घर पर हमला करके इस परिवार के एक सदस्य की गोली मारकर हत्या कर दी।  पुलिस का आरोप था कि इस घर में मादक पदार्थ मौजूद थे।  जबकि छानबीन के बाद पता चला कि वहां पर मादक पदार्थ नामकी कोई चीज़ नहीं थी।  इस घटना के विरोध में अमरीका के कई नगरों में लैटिन अमरीकी मूल के लोगों ने प्रदर्शन किये।  उनके प्रदर्शनों के कारण अमरीकी न्यायालय, इस केस में लिप्त पुलिसकर्मियों को निष्कासित करने का आदेश जारी करने पर विवश हुआ।

सन 2007 में लैटिन अमरीकी मूल के लोगों के विरोध प्रदर्शनों के समय लास एंजलिस के एक क्षेत्र में जो लैटिन अमरीकी बाहुल्य क्षेत्र है, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध कड़ी हिंसा अपनाई।  पुलिस को यह ज्ञात था कि वहां पर रहने वाल प्रदर्शनकारियों में बहुत से एसे थे जिनको अंग्रेज़ी नहीं आती थी और वे अंग्रेज़ी नहीं समझ पाते थे।  पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को अंग्रेज़ी में वारनिंग दी और उसे न सुने जाने पर उनके विरुद्ध बल प्रयोग किया।  अमरीकी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध खौलते हुए पानी, आंसू गैस, प्लास्टिक की गोलियों और इसी प्रकार की चीज़ों का प्रयोग किया।  प्रदर्शनकारियों में बहुत बड़ी संख्या बच्चों और महिलाओं की थी।

अमरीका में रहने वाले अफ्रीकी मूल के लोगों, रेड इन्डियन्स, लैटिन अमरीकी मूल तथा अन्य अल्पसंख्यकों के विरुद्ध इस देश की पुलिस का हिंसक व्यवहार इस दृष्टिकोण की पुष्टि करता है कि अमरीका के भीतर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध पुलिस की हिंसा कोई एसा विषय नहीं है जो केवल पुलिस तक सीमित है बल्कि यह सोच पूरी व्यवस्था के भीतर पाई जाती है।

 

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