Aug ३१, २०१९ १४:०८ Asia/Kolkata

बीसवीं शताब्दी में दुनिया भर से बड़ी संख्या में पलायलकर्ताओं ने अमरीका का रुख़ किया था। 

अमरीका आने वाले इन पलायनकर्ताओं में पूर्वी एशिया के देशों के पलायनकर्ता भी शामिल थे।  जाति या वर्ण के हिसाब से इनका संबन्ध पीतवर्ण या पीले रंग से था।  यह लोग सामान्यतः चीन, थाईलैण्ड और वियतनाम के रहने वाले थे।  इन पलायनकर्ताओं में बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएं सब ही शामिल थे।  अमरीका पलायन से इनका उद्देश्य, रोज़गार की तलाश थी।  वर्तमान समय में अमरीका में जो पीतवर्ण या पीलेवर्ण के लोग रह रहे हैं वे वास्तव में उन लोगों की ही संताने हैं जो बीसवीं शताब्दी के आरंभ में रोज़गार के लिए यहां आए थे।  यह लोग आज भी अमरीका में रोज़गार के लिए बहुत अधिक परिश्रम करते हैं और इस परिश्रम के बदले उन्हें मज़दूरी बहुत कम मिलती है।  हालांकि अमरीका के विकास में इन लोगों की भी भूमिका है किंतु कम आय के कारण यह लोग निर्धन क्षेत्रों में जीवन गुज़ारने पर विवश हैं।  निर्धन क्षेत्र में जीवन गुज़ारना स्वयं में भेदभाव पूर्व व्यवहार और पुलिस से रोज़-रोज़ की मुलाक़ात की भूमिका बनता है।

 

सन 1999 में अमरीकी पुलिस ने पीतवर्ण की एक ऐसी महिला की गोली मार कर हत्या कर दी जिसका मानसिक संतुलन सही नहीं था।  वह कोई अपराधी नहीं थी।  उसने तो कोई अपराध किया ही नहीं था।  केलिफ़ोर्निया के कर्न नगर में अमरीकी पुलिस ने "डैनी डन" नामक इस महिला की निर्मम हत्या कर दी।  यह घटना इस प्रकार है कि तीन अमरीकी पुलिसकर्मियों ने मानसिक संतुलन खो चुकी इस महिला को पकड़कर हवालात में बंद कर दिया।  हवालात में पहले इस महिला पर चिली स्प्रे डालकर उसकी आंखें ख़राब कर दी गईं।  बाद में इस अबला के दोनो हाथों को पीछे से बांधकर पुलिस ने उसकी ख़ूब पिटाई की।  पीलेवर्ण की इस महिला को इतना मारा गया कि वह घायल होकर बेहोश हो गई।  पुलिस जब उसे घायल अवस्था में अस्पताल ले गई तो वहां पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।  महिला की पोस्मार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण शरीर के भीतर रक्त का बहना और किडनी एवं यकृत का प्रभावित होना बताया गया था।  इन बातों के बावजूद अमरीकी न्यायालय ने इस घटना को एक्सीडेंटेल घटना बताते हुए इसमें लिप्त तीनो पुलिस अधिकारियों को क्लीन चिट देदी।

पीले वर्ण की महिला के विरुद्ध हिंसा की यह कोई पहली घटना नहीं थी।  13 जूलाई सन 2003 को इससे भी अधिक भयावह हिंसा की घटना घटी।  अमरीकी पुलिस की हिंसा एवं बर कार्यवाही में इस महिला की मृत्यु हो गई जिसका अमरीका मे रहने वाले एशियाई मूल के लोगों ने घोर विरोध किया।  यह घटना इस प्रकार है कि 25 वर्षीय "काऊथी बिचथ्रान" का संबन्ध वियतनाम से था।  यह महिला दो छोटे बच्चों की मां थी।  वियतनाम मूल की यह महिला अपने ही घर में एक अमरीकी सैन्य अधिकारी के हाथों गोली से मारी गई।

यह घटना इस प्रकार आरंभ होती है कि कैलिफोर्निया के सेंट जोन्स नगर में एक अमरीकी ने पुलिस से अपने पड़ोसी की यह शिकायत की थी कि पड़ोसी के नवजात के रोने से उन्हें असुविया का सामना करना पड़ता है।  इस शिकायत के बाद दो श्वेत पुलिस अधिकारी बिना पूर्व सूचना के "काऊथी बिचथ्रान" के घर में प्रविष्ट हुए।  जैसे ही पुलिसवाले बिना बताए उनके घर में पहुंचे वह घबरा गई।  उसने टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में अमरीकी पुलिस वालों से कहा कि वे उसके घर से बाहर जाएं।  इतना कहने के बाद इस महिला ने मेज़ पर रखी हुई प्लेट की ओर जैसे ही हाथ बढ़ाया, "चैड मार्शल" नामक पुलिस अधिकारी ने उसपर गोली चला दी।  जब यह निहत्थी महिला गोली खाकर ज़मीन पर गिरी तो पुलिसकर्मी ने कई और गोलियां उसके सीने में उतार दीं।  गोली मारने वाले पुलिस अधिकारी ने अपने बचाव में कहा था कि महिला द्वारा मेज़ से प्लेट उठाने पर उसे ख़तरे का एहसास हो गया था इसीलिए उसने अपने बचाव में गोली चलाई।

 

इस घटना को सुनकर यह कहा जा सकता है कि वियतनामी मूल की यह महिला अपने नवजात के रोने के कारण अमरीकी पुलिस की गोलियों का निशाना बनीं।  इस घटना के बाद अमरीका में व्यापक स्तर पर लोगों ने विरोध प्रदर्शन किये।  इस विरोध के बावजूद अमरीकी पुलिस ने इस देश में रहने वाले पीले वर्ण के लोगों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाहियों में कोई कमी नहीं आने दी बल्कि कहा तो यह जाता है कि उसके बाद पीले वर्ण के लोगों के विरुद्ध हिंसा में अधिक वृद्धि हुई।  उदाहरण स्वरूप 20 मई सन 2017 को 84 वर्ष के पीले वर्ण के "कैंग चूनवांग" को पुलिस ने उस समय गोली मार दी जब वे न्यूयार्क के मैनहटन की सड़क से गुज़र रहे थे।  उन्होंने किसी भी प्रकार का कोई अपराध नहीं किया था।  अमरीका में रहने वाले अल्पसंख्यकों के विरुद्ध इस देश की पुलिस की हिंसक कार्यवाहियां का जारी रहना यह बताता है कि अमरीकी समाज विशेषकर वहां के पुलिस विभाग में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध द्वेष पाया जाता है।  सन 2013 में सीएनएन की ओर से कराए गए सर्वेक्षणों के अनुसार लगभग 83 प्रतिशत अमरीकी, आज भी अपने समाज में जातिवाद को सबसे बड़ी सामाजिक समस्या के रूप में देखते हैं।

अध्धयनों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अमरीका में रहने वाले अल्पसंख्यकों को बहुत अधिक पुलिस की हिंसा का सामना करना पड़ता है।  अमरीकी समाज के हर वर्ग में अलग-अलग जातियों या अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा को बहुत ही स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है।  इस प्रकार की घटनाएं सड़को, सिनेमाहालों, स्टेडियमों, स्कूलों, सरकारी कार्यालयों यहां तक कि न्यायालयों के भीतर देखी जा सकती हैं।

अमरीकी न्याय व्यवस्था की ओर से विभिन्न जातियों के विरुद्ध पुलिस की हिंसा को सार्वजनिक होने से रोकने के प्रयासों के बावजूद अमरीकी पुलिस की हिंसा से बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक या तो मारे जाते हैं या फिर वे अपंग हो जाते हैं जबकि हिंसा के शिकार कुछ लोगों का मानसिक संतुलन तक बिगड़ जाता है।  वर्तमान समय में इस प्रकार की घटनाओं को सोशल मीडिया पर सरलता से देखा जा सकता है।  सितंबर 2018 में अमरीका में हज़ारों लोगों ने जातिवाद विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया।  जातिवाद विरोधी इस प्रदर्शन में सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत बड़ी संख्या में लोग वाशिग्टन में एकत्रित हुए।  इस अभूतपूर्व प्रदर्शन को संचार माध्यमों में व्यापक कवरेज दिया गया।

 

अमरीका में रहने वाले अल्पसंख्यकों के बीच यहूदी अल्पसंख्यकों की स्थिति बिल्कुल ही भिन्न है।  अमरीका में रहने वाले बहुत से बड़े-बड़े पूंजी निवेशक और व्यापारी यहूदी हैं।  इस अल्पसंख्यक गुट ने अमरीकी सत्ता के भीतर प्रभाव बनाकर इस बात का प्रयास किया कि वहां के रहने वालों के बीच यहूदियों की छवि को अच्छा करके प्रस्तुत किया जाए।  यहूदी अल्पसंख्यक समुदाय केवल उन यहूदियों का ही समर्थन करता है जो खुलकर इस्राईल की नीतियों के पक्षधर हैं जबकि उन यहूदियों को यहूदी लाबी कोई महत्व नहीं देती जो ज़ायोनी शासन की ग़लत नीतियों का विरोध करते हैं।  अमरीका में रहने वाले उन यहूदियों को अमरीकी पुलिस और व्यवस्था के कोप का पात्र बनना पड़ता है जो इस्राईल की जातिवादी नीतियों के समर्थक नहीं हैं।

ज़ायोनी विचारधारा का विरोध करने वाले अमरीकी यहूदियों के विरुद्ध पुलिस की हिंसा की एक घटना 2012 में हुई थी।  इस घटना पर संचार माध्यमों ने व्यापक प्रतिक्रियाएं जताईं।  "एलिज़बेथ फोल्क" ने इस संबन्ध में अपनी रिपोर्ट में यूएस न्यूज़ में लिखा था कि यहूदियों ने वाशिंग्टन में एपेक सम्मेलन का विरोध करते हुए प्रदर्शन किये थे।  इन यहूदी प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध अमरीकी पुलिस ने हिंसा का प्रयोग किया था।  हांलाकि ज़ायोनी विचारधारा का विरोध करने वाले इन यहूदियों का प्रदर्शन पूर्ण रूप से शांतिपूर्ण था किंतु पुलिस ने उनके विरुद्ध हिंसा का प्रयोग किया।  यह प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे कि ज़ायोनी शासन वही काम कर रहा है जो हिटलर और नाज़ियों ने अपने समय ने किया था।  इन यहूदियों ने अमरीकी नीतियों पर यूहदी लाबी के प्रभाव का भी विरोध किया था।  इस विरोध प्रदर्शन में एक सक्रिय यहूदी मानवाधिकार कार्यकर्ता "माइकल बिनज़िकरी" ने अतिवादी यहूदियों और ज़ायतनियों को संबोधित करते हुए कहा था कि तुम इस समय के हिटलर हो।  उन्होंने फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध ज़ायोनियों के अपराधों की निंदा की।  इस प्रकार के यहूदियों ने जो स्वयं को सच्चे यहूदी बताते हैं, मध्यपूर्व से अवैध ज़ायोनी के समापन की मांग की।  एक यहूदी धर्मगुरू "यिसराइल डेविड वीसिस" ने अमरीकी पुलिस की हिंसा का विरोध करते हुए कहा था कि जिस प्रकार से हिटलर, यहूदियों की समाप्ति का इच्छुक था उसी प्रकार से वर्तमान समय में ज़ायोनियों ने ऐसी नीति अपनाई है जिसका परिणाम, सारे यहूदियों का अंत होगा।

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