Sep १५, २०१९ १६:१७ Asia/Kolkata

ज़मीन पर रहने वाले समस्त इंसानों की इच्छा बेहतर जीवन है यानी समस्त इंसान अच्छा जीवन जीने की कामना करते हैं किन्तु अच्छा जीवन जीने के लिए कुछ सकारात्मक परिवर्तन की आवश्यकता होती है और इन परिवर्तनों का आरंभ हमारे अंदर से होना चाहिये।

जब हम अपने दृष्टिकोणों को परिवर्तित कर लेंगे, अपने अंदर से अवगुणों को दूर कर लेंगे, बुरी आदतों को छोड़ देंगे और महान ईश्वर पर भरोसा करके आगे बढ़ेंगे तो जीवन को अच्छा, स्फूर्ति से भरा और शांतिदायक बना सकते हैं।

हमने पारिवारिक जीवन में सच बोलने के महत्व के बारे में कुछ बातें बयान की थीं। इस कार्यक्रम में हम समाज और जीवन में सच के कुछ प्रभावों व परिणामों को बयान करेंगे। आशा है हमारा यह प्रयास भी आपको पसंद आयेगा।

 

सच बोलना और सच्चा होना ऐसी चीज़ है जिसकी भूमिका से मानवीय जीवन में इंकार नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दों में सही सामाजिक जीवन का आधार ही सच होता है। जिस संबंध का आधार सच्चाई नहीं होती है वह वास्तव में संबंध नहीं बल्कि दिखावे का संबंध होता है। सच्चाई की जो भूमिका है उसे शायद न तो देखा जा सकता है और न ही सुना जा सकता है परंतु सच्चाई के जो सामाजिक परिणाम हैं वे बहुत गहरे होते हैं और जीवन के हर क्षेत्र में उसके सुपरिणामों को देखा जा सकता है। जिस संबंध का आधार सच्चाई नहीं होती है वह संबंध या तो टूट जाता है या दिखावटी व बेजान संबंध के रूप में बाकी रहता है। जब कोई व्यक्ति अपनी बातों को सच्चाई के साथ सही तरह से बयान न कर सके तो वह झूठ बोलने लगता है और सामने वाला पक्ष भ्रांति का शिकार हो जाता है और वह वास्तविकता से दूर हो जाता है। मानवीय संबंधों में सच्चाई का न होना बहुत सी व्यक्तिगत व सामाजिक बुराइयों व समस्याओं का कारण बनता है।

खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि सच बोलना केवल एक नैतिक बात है और सामाजिक मामलों की समीक्षा में वे इस विषय की उपेक्षा कर देते हैं किन्तु सच्चाई जहां बहुत सी अच्छाइयों की कुंजी है वहीं झूठ समस्त बुराइयों की जड़ है।

हम जो अधिकांश एक दूसरे से संबंध स्थापित करते हैं तो उसकी वजह यह होती है कि हम चाहते हैं कि दूसरों से संबंध के कारण समस्याओं के समाधान में हमें सहायता मिले और हमारा सामाजिक लेन- देन बेहतर हो सके परंतु अगर संबंधों की बुनियाद झूठ पर होगी तो हमने सामाजिक संबंधों के जिन उद्देश्यों को बयान किया है उनमें से कोई भी उद्देश्य व्यवहारिक नहीं होगा।

जिस समाज या परिवार में झूठ का बोलबाला होगा वहां अविश्वास की जड़ें फैलेंगी और संबंध, संदिग्ध दोस्ती में बदल जायेंगे। इस प्रकार के संदिग्ध संबंधों के परिणामों व प्रभावों को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है। मिसाल के तौर पर आप एक ऐसे कार्यालय को दृष्टि में रखें जहां पर हर व्यक्ति अर्थात प्रबंधक से लेकर कर्मचारी तक सभी सच बोलने से भागते हैं और झूठ बोलने को एक प्रकार की चालाकी समझते हैं तो आप सोचिये कि वहां क्या होगा? पहले चरण में समस्त कर्मचारियों के अंदर से आंतरिक व आत्मिक शांति समाप्त हो जायेगी क्योंकि वे अपने सहकर्मियों के प्रति अच्छी भावना व अच्छा विचार नहीं रखते। इसी प्रकार इस कार्यालय के कर्मचारियों के मध्य दूसरों की बुराई, चाटुकारिता, अतिशयोक्ति, धूर्धतता और पाखंड जैसी दसियों बुराइयां अस्तित्व में आयेंगी। इन समस्त बुराइयों का आधार झूठ है जो समस्त मानवीय व नैतिक मूल्यों को तबाह कर देगा।

जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी के महाप्रबंधक जैक वेल्च कहते हैं" हमारे मूल्य हमारे सिद्धांत हैं। जिन मूल्यों को हमने बताया वे इस प्रकार हैं। सच्चाई, सम्मान, टीम वर्क और सामूहिक सहकारिता। इनमें से हर एक मूल्य उस तकनीक के हर अंश की भांति है जिसे हम विकसित कर रहे हैं और हमारी कंपनी के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार वे कहते हैं" जो नैतिक मूल्य व सिद्धांत निदेशक मंडल में हैं वही मूल्य कर्मचारियों के लिए भी होने चाहिये और उनमें किसी प्रकार का अंतर नहीं होना चाहिये। उपर से लेकर नीचे तक सबके लिए मूल्य व कानून समान होने चाहिये। यही नहीं ये विशेषताएं न केवल कर्मचारियों बल्कि शेयर धारकों, ग्राहकों और समाज के लिए भी मूल्यवान होनी चाहिये।"

जी हां किसी ऐसे सरकारी या ग़ैर सरकारी संगठन की कल्पना ही नहीं की जा सकती जिसमें नैतिक सिद्धांत विशेषकर सच्चाई न हो।

 

जैक वेल्च के अनुसार कर्मचारी का नैतिक व्यवहार दो चीज़ों से संबंधित है एक व्यक्तिगत और दूसरे उस संगठन से जिसमें वह काम करता है। मिसाल के तौर पर जिस संगठन में इंसान काम करता है और वह संगठन झूठ बोलने वालों या अनैतिक कार्य करने वालों को पदोन्नति दे या उनकी प्रशंसा करे तो इससे निष्कर्ष निकलता है कि यहां अनैतिक कार्य ही महत्व रखते हैं। उस वक्त उस संगठन में अनैतिक मूल्य जड़ पकड़ेंगे और सच व सच्चाई का महत्व कम होने लगेगा।

नियूरो सर्जनों का मानना है कि सच्चाई का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मनोचिकित्सक कहते हैं" इंसान जितना कम झूठ बोलता है उसे उतनी अधिक आत्मिक व शारीरिक शांति प्राप्त होगी।"

यह जानना उचित होगा कि चिकित्सकों ने बड़े पैमाने पर अध्ययन व शोध करके यह पाया कि जिस तरह से इंसान फल और सब्ज़ी खाता है और इंसान के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में इनकी प्रभावी भूमिका होती है उसी तरह जब इंसान झूठ बोलने से अपनी ज़बान को नियंत्रित रखता है और झूठ नहीं बोलता तो इसका प्रभाव शरीर के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। दूसरे शब्दों में जो लोग अपनी दिनचर्या में जिस सीमा तक झूठ बोलने से परहेज़ करते हैं उतना ही वे शारीरिक व मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रहते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने घोषणा की है कि उन्होंने स्वेच्छा से जिन 110 व्यक्तियों पर अध्ययन किये हैं वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने किसी प्रकार का झूठ नहीं बोला है उन्हें उन लोगों की अपेक्षा कम सिरदर्द, गले का दर्द, व्याकुलता और दूसरे प्रकार की शारीरिक व मानसिक बीमारी का सामना होता है जो  बड़ी सरलता से झूठ बोलते हैं। इसी प्रकार ये विशेषज्ञ बल देकर कहते हैं कि झूठ बोलने से शारीरिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है क्योंकि इंसान का दिमाग़ हर बार बहुत अधिक डेटा प्रोसेसिन्ग की क्षमता रखता है और झूठ बोलना एसा कार्य है जो दिमाग़ को थका देता है। झूठ बोलने वाला हर बार कुछ न कुछ झूठी कहानी बनाता व गढ़ता है पर अधिक समय तक वह यह काम नहीं कर सकता और न ही अपने दिमाग़ से गढ़ी हुई बातों को मिटा सकता है। नतीजा यह होगा कि इंसान का दिमाग़ हर वक्त बहुत व्यस्त रहेगा।

जो राष्ट्रों के शासक होते हैं उनका व्यवहार भी ऐसा ही है। अगर शासक और ज़िम्मेदार अपने लोगों के साथ सच बोलें और सच्चाई के आधार पर उनसे व्यवहार करें तो पारदर्शी वातावरण उत्पन्न होगा और यह सच्चाई लोगों के बीच भी प्रचलित होगी।

जो एतिहासिक साक्ष्य हैं वे अतीत के समाज के अंजाम को भली-भांति बयान करते हैं। वे इस बात के सूचक हैं कि अतीत के समाजों के अंजाम में बहुत से पाठ नीहित हैं। अतीत के समाजों का अध्ययन करने से इस बात का पता चलता है कि अविश्वास, सच न बोलने, सामूहिक हितों पर व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता देने और नैतिक मूल्यों के मार्ग से हट जाने के कारण अतीत के समाजों का बुरा अंजाम हुआ। अतीत के समाजों ने झूठ बोलने को न केवल ग़लत नहीं समझा बल्कि वे इतना आगे बढ़ गये कि सामाज में शांति स्थापित करने के लिए सच्चाई जैसी अच्छी चीज़ को आधार बनाने का मौक़ा ही नहीं छोड़ा और उन्होंने समाज को इस प्रकार बना दिया कि जब तक झूठ, मक्कारी, धोखा जैसी अनैतिक चीज़ों का समाज और सामाजिक संबंधों में बोलबाला रहेगा तब तक नैतिक मूल्यों को महत्व ही नहीं दिया जायेगा और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सुधार की अपेक्षा करना ही व्यर्थ है।

इस समय भी हम देखकते हैं कि बहुत से समाजों के ज़िम्मेदार, लोगों से बड़ी सरलता से झूठ बोलते हैं और मानव समाज को समाज बनाने वाले मूल्यों को बड़ी आसानी से खत्म कर रहे हैं जबकि सच्चाई एसी चीज़ है जिसकी आर्थिक, व्यापारिक, सरकार के संचालन और लोगों के साथ लेन- देन में जो रचनात्मक भूमिका है उसका उल्लेख ही नहीं किया जा सकता।

अगर कोई समाज सच्चाई और पारदर्शिता से दूरी कर लेता है तो उस समाज को विभिन्न प्रकार की समस्याओं व चुनौतियों का सामना होगा। इंसान के जीवन की वास्तविकताएं और एतिहासिक अनुभव इस बात के सूचक हैं कि जब भी समाज और सामाजिक संबंधों में सच्चाई जैसे नैतिक मूल्यों पर अमल होगा तो उस समाज का हर व्यक्ति शांति व सुरक्षा का आभास करेगा और सभी का जीवन सुखमय होगा।

लोगों का एक दूसरे पर पक्का भरोसा और इसी प्रकार शासकों का जनता पर और जनता का शासकों पर भरोसे से सच्चाई का बहुत अच्छा आधार अस्तित्व में आयेगा। इस प्रकार के समाज में हर इंसान शांति व सुरक्षा के साथ रहेगा और उनके अंदर शांति व सुरक्षा की जो भावना है उसकी वजह से वह ऊंचे मनोबल के साथ सामाजिक व ग़ैर सामाजिक गतिविधियों में भाग लेंगे। इस प्रकार के लोग सामाजिक हितों को व्यक्तिगत हितों पर प्राथमिकता देंगे। इस प्रकार के समाज में लोगों और शासकों के मध्य सच्चाई का बोलबाला होगा जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। अंत में कहा जा सकता है कि सच्चाई वह इत्र है जब उसकी सुगंध समाज में फैलेगी तो सभी शांति, सुरक्षा और सुखमय जीवन का अनुभव करेंगे। प्रिय श्रोताओ आज के कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है। अगले कार्यक्रम तक के लिए हमें अनुमति दें।            

 

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