Nov ०३, २०१९ १६:४५ Asia/Kolkata

ईरान में इस्लाम के आगमन के बाद सामानी शासन काल को फ़ारसी साहित्व व शायरी के फलने फूलने का दौर कहा जा सकता है।

सामानी शासन श्रंख्ला के उदय से फ़ारसी साहित्य के विकास की पृष्ठभूमि मुहैया हुयी। चूंकि सामानी परिवार मूल रूप से ईरानी परिवार था इसलिए इस परिवार ने ईरानी संस्कृति के कीर्तिगान और फ़ारसी भाषा के प्रचार के लिए अधिक कोशिश की और इस मार्ग में वे शायरों, लेखकों और अनुवादकों को प्रेरित करते थे।

विचारों व रुझानों में विविधता और उच्च शिक्षा व संस्कृति वाले शासकों व दरबारियों की मौजूदगी से सामानी शासन काल में स्वतंत्र रूप से चिंतन मनन और सहिष्णुता का माहौल मुहैया हुआ। ऐसे माहौल में ज्ञान व शोध में रूचि रखने वाले बिना किसी भय के तर्क व विचार के आधार पर बहस व शोध करते थे, जिसके नतीजे में फ़ाराबी, बीरूनी, इबने सीना, रूदकी और फ़िरदोसी जैसे विद्वान प्रकट हुए।

ईरान के मामलों के रूसी माहिर आरान्सकी का मानना है कि शेर वह पहला क्षेत्र था जिसके सामने अरबी भाषा को पीछे हटना पड़ा, क्योंकि ईरानी जनता और बादशाह सभी सांस्कृतिक स्रोतों को फ़ारसी भाषा में लाने में रूचि रखते थे। सामानी शासन काल में साहित्य, धर्म और विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सी किताबें लिखी गयीं या उनका अनुवाद हुआ। सामानी शासन की सांस्कृतिक गतिविधियों में कलीले व दिमने किताब का फ़ारसी भाषा में अनुवाद उल्लेखनीय है। इस किताब का पहलवी भाषा से अरबी भाषा में अनुवाद हुआ था। फिर इस किताब का नस्र बिन अहमद सामानी के आदेश से फ़ारसी भाषा में अनुवाद हुआ और फिर कुछ समय बाद रूदकी ने इसे पद्य का रूप दिया। फ़ारसी साहित्य के क्षेत्र में सामानियों का एक और काम इतिहासकार तबरी की इतिहास और पवित्र क़ुरआन की व्याख्या पर आधारित किताब का फ़ारसी में अनुवाद है। आज भी ये दोनों किताबें फ़ारसी साहित्य की मूल्यवान धरोहर समझी जाती हैं।        

सामानी शासन काल ईरान में साहित्य का सबसे अहम दौर समझा जाता है, क्योंकि इस दौर के आरंभ में फ़ारसी शायरी के जनक रूदकी जीवित थे जबकि इस दौर के अंतिम चरण में फ़िरदोसी और उन्सुरी जैसे फ़ारसी शायर के महाकवि भी जीवित थे। इस दौर के गुज़रे शायर में हर एक की फ़ारसी साहित्य के इतिहास में विशेष अहमियत है। ऐतिहासिक दस्तावेज़ के अनुसार, कुछ सामानी शासक और अधिकारी स्वयं भी शायर या लेखक थे। जैसे अबुल फ़ज़्ल बलअमी और शम्सुल मोआली क़ाबूस।

शोधकर्ताओं व विद्वानों का मानना है कि फ़ारसी साहित्य के चरणों में शायद ही कोई चरण होगा जिसमें इतनी संख्या में शायरों और शिक्षकों ने जीवन बिताया है।

ईरानी इतिहास और ईरानियों की राष्ट्रीय कहानियों का फ़ारसी भाषा में संकलन सामानी शासन काल की अहम घटनाएं हैं। चौथी हिजरी क़मरी बराबर दसवीं ईसवी शताब्दी में जो किताबें लिखी गयीं उनमें आम तौर पर प्राचीन ईरान के विस्तृत इतिहास या पहलवानों की विस्तृत कहानियों पर आधारित होती थीं। इनमें से हर एक का स्रोत प्राचीन पहलवी या पहलवी से अरबी में अनुवादित हुयी किताबें हैं।

इसी दौर की किताबों में अबुल मोअय्यद बल्ख़ी का शाहनामा भी है। इस किताब में इस्लाम पूर्व से लेकर ईरान में इस्लाम के आगमन के समय तक के इतिहास और शौर्यगाथाओं का वर्णन है।

इस दौर की दूसरी साहित्यिक रचनाओं में अबू मंसूरी के शाहनामे का उल्लेख कर सकते हैं। यह शाहनामा चौथी हिजरी के पहले अर्ध के अंतिम वर्षों में संकलित हुआ। यह किताब स्रोत और विषयवस्तु की दृष्टि से चौथी हिजरी का गद्य रूपी बेहतरीन शाहनामा समझा जाता है। इस किताब की अहमियत की वजह इसकी उपयोगिता है। अबू मंसूरी के शाहनामे को पहली बार सामानी शासन काल के महाकवि दक़ीक़ी ने पद्य का रूप दिया लेकिन अफ़सोस की वह जवानी में चल बसे इसलिए उनका शाहनामा अधूरा रह गया।            

चौथी हिजरी के अंतिम वर्षों में फ़िरदोसी ने अपनी अमर किताब शाहनामे की रचना के लिए दक़ीक़ी और अबू मंसूरी के शाहनामे से बहुत मदद ली जिसके बारे में कार्यक्रम की किसी कड़ी में चर्चा करेंगे। सामानी शासन काल में राष्ट्रीय नायकों और शौर्यगाथाओं पर आधारित एक और किताब आज़ाद सर्व की है जिसका शीर्षक है अख़बारे रुस्तम। इस किताब से फ़िरदोसी ने भी मदद ली है जिससे इसकी अहमियत का पता चलता है।

फ़िरदोसी जिस दौर में जी रहे थे उस समय ईरान के इतिहास पर आधारित कहानियों और उपन्यासों का बहुत चलन था। उस समय आम लोग पौराणिक कथाओं और यादगार ऐतिहासिक घटनाओं को एक दूसरे से ज़बानी वर्णन कर, विगत की भव्य यादों से मन को सुकून देते थे। ठंडक की लंबी रातों में कल्पित कहानियां कहने वालों की बड़ी मांग थी। सभाओं में क़व्वाल और गवैये पौराणिक गाना गाकर लोगों के मन में जोश भरते थे। रुस्तम की पहलवानी की कहानियां लोगों के मन में आशा पैदा करती थी। सियावश, फ़ुरूद और इस्फ़न्दयार की दुखद कहानियां सुन कर लोग दुखी होते और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते थे।                 

बुख़ारा के इतिहास नामक किताब में आया हैः "बुख़ारा के लोग सियावश की हत्या से दुखी है। जैसा कि सभी राज्यों में मशहूर है। वादकों ने गाने गए हैं और कहते भें कि क़व्वाल उससे मुग़ान कबीले के लोगों को रुलाते थे।" इसी तरह बुख़ारा के इतिहास नामक किताब में एक जगह लिखा है, "बुख़ारा के लोगों ने सियावश की हत्या पर अजीब तरह का गान तय्यार किया है। वादक इसे कीने सियावश अर्थात सियावश का तान कहते हैं।" संगीत में बार्बद संगीतकार से जुड़े तीस तानों में एक तान का नाम कीने सियावश है। यहां तक कि ईरान से बाहर इस्लाम के आरंभ में नस्र बिन हारिस नामक अरब व्यक्ति रुस्तम और इस्फ़न्दयार की कहानियां मेसोपोटामिया के लोगों को सुनाता था। ये सब कहानियां, यादगार बातें, दुख व पछतावे पर आधारित घटनाएं, फ़िरदोसी के शाहनामे में संकलित होकर अमर हो गयीं।    

मौखिक कहानियों के अलावा लिखित रूप में भी कहानियों व घटनाओं का वर्णन मौजूद था। बहुत से कलाकारों ने इसे संकलित और इनका वर्णन करने की कोशिश की जिनमें से कुछ अभी भी मौजूद हैं। ज़रीर की यादगार कहानियों, अर्दशीर बाबकान के कारनामे, बहराम चूबीन नामे सहित दूसरी किताबें मौजूद हैं।

फ़िरदोसी ने शाहनामे के संकलन के लिए सभी मौजूदा स्रोतों चाहे वे मौखिक या लिखित रहे हों, लाभ उठाया और उपन्यासों, कहानियों, वृत्तांतों और दुखों पर आधारित कहानियों को संयुक्त राष्ट्रीय यादगार के रूप में शाहनामे में संकलित किया।

 

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