Jul ०८, २०२० १९:०३ Asia/Kolkata

वरिष्ठ नेता अपने कई भाषणों में इस विषय की ओर संकेत कर चुके हैं।

उन्होंने पिछले कई वर्षों के दौरान इस बारे में कई बार बात की है। वरिष्ठ नेता का मानना है कि पश्चिमी जीवन शैली के दुष्प्रभाव नैतिक , आर्थिक , राजनैतिक और धार्मिक जीवन पर ऐसे पड़ते हैं जिनकी क्षतिपूर्ति बड़ी मुश्किल से होती है।

 

वर्तमान शहरीकरण या शहरों की ओर पलायन की प्रक्रिया, औद्योगिक क्रांति के पश्चात आरंभ हुई है। औद्योगिक क्रांति , पुनर्जागरणकाल के बाद अस्तित्व में आई। औद्योगिक क्रांति से पहले तक शहरों का नियंत्रण धार्मिक केन्दरों जैसे चर्च के हाथों में हुआ करता था। बाद में पूंजीवादी व्यवस्था के अस्तित्व में आने के बाद शहरों के नियंत्रण, आर्थिक एवं व्यापारिक केन्द्रों के हाथों में चले गए।

यदि हम पश्चिमी महानगरों में रहने वालों पर उनकी जीवनशैली के प्रभाव की गहन समीक्षा करें तो पाएंगे कि इन नगरों में रहने वाले सामान्यतः अपने जीवन से सुखी नहीं हैं बल्कि वे तनाव का शिकार हैं।

 

पश्चिम के महानगरों में शोर– शराबा, बेचैनी का माहौल, तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी और इसीस प्रकार की बातें देखी जा सकता हैं। तथाकथित आधुनिक संसार में किसी बैठक में देर से पहुंचना, हवाई जहाज़ की उड़ान के बाद हवाई अडडे पहुंचना, कार्यालय या स्कूल में पहुंचने में देरी, नो पार्किंग के स्थान पर वाहन पार्क करना और इस जैसी बहुत सी बातें मनुष्य के भीतर चिंता को बढ़ाती हैं। ऐसा लगता है कि सइ प्रकार की चिंताएं, पश्चिमी मनुष्य की जीवनशैली का भाग हो गई हैं।

वर्तमान समय में महानगरों में बहुत बड़ी संख्या में लोग ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं जबकि साठ साल पहले विश्व की एक तिहाई आबादी ही महानगरों में रहा करती थी। इस समय संसार की लगभग आधी आबादी शहरों में रह रही है।

आधुनिक तकनीक की एक बुराई यह है कि इसका अधिक प्रयोग करने वाले एक दूसरे से कम ही मिलते हैं। पश्चिमी मनुष्य की एक सबसे बड़ी बुराई यह है कि जहां पर उसके पास संसार की अत्याधनुनिक तकनीक है वहीं पर वह बहुत ही अकेला है।

अब एसा हो रहा है कि लोग एक क्लिक से ख़रीदारी कर लेते हैं। वे बड़े बड़े सौदे इंअरनेट से ही ख़रीद रहे हैं। ख़रीदार से मिले बिना ही वे अपनी वे संपर्क में हैं किंतु विडंबना यह है कि एसा व्यक्ति किसी से मिल नहीं रहा है। वह सबकुछ करने के बावजूद भी अकेला है।

द मेंटल हेल्थ आफ़ ब्रिटिश पीपल्स नामक संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि तकनीक कभी भी लोगों के बीच संपर्क का विकल्प नहीं बन सकती। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ब्रिटेन में हर दस लोगों में से एक व्यक्ति तनहाई का आभास करता है। वहां पर इस प्रकार के लोगों की संख्या में बहुत तेज़ी से वृद्धि हो रही है जो लंबे समय तक काम करते हैं और लोगों से मुलाक़ात नहीं करते।

अकेलेपन के कुछ नकारात्मक प्रभाव होते हैं। अमरीकी शोधसंस्था गैलप के अनुसार सन २०१८ में अमरीकी जनसंख्या में से आधे लोग प्रतिदिन एंगज़ाइटी का शिकार रहे।

पश्चिमी जीवनशैली में तनाव एक आम समस्या बन चुका है। संसार में लगभग हर तीसरा व्यक्ति इसका शिकार है। तनाव, दबाव से शुरू होता है जिसमें मनुष्य अधिकतर नकारात्मक रूप से सोचने लगता है। यह समस्या शारीरिक रूप से भी मनुष्य को कमज़ोर कर देती है और वह भावनात्मक रूप से भी आहत हो जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति में कभी कभी जीने की चाहत भी समाप्त होने लगती है।

सामान्यतः तनाव, चिंता का कारण बनता है। तनाव एसी स्थिति है जो मनुष्य की मनोदशा को प्रभावित करती है। आज पश्चिमी समाज ही नहीं बल्कि अन्य समाजों में  भी तनाव के कारण लोग मानोरोग का शिकार हो रहे हैं जिससे सामाजिक दबाव बढ़ रहा है।

वर्तमान समय में लोगों के भीतर जो बीमारियां जन्म ले रही हैं उनका मुख्य कारण उचित जीवन शैली से दूरी , शारीरिक गतिविधियां का कम अंजाम देना और अस्वस्थ्य खाद्य पदार्थों का सेवन है। ईरान के एक मनोचिकित्सक डाक्टर सैयद मसूद नबवी का मानना है कि शहरीकरण में जिन बीमारियों ने जन्म लिया है उनमें से एक एमएस है। वे कहते हैं कि यह बीमारी, आधुनिक जीवनशैली की ही देन है। मनुष्य के जीवन का जितना भी मशीनीकरण होता जाता है उसी अनुपात में वह तकनीक का प्रयोग करके कई प्रकार की बीमारियों में ग्रस्त होता जाता है।  

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