Jul १३, २०२० १५:४३ Asia/Kolkata
  • नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी - 3

नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नवीं नवीं हिजरी क़मरी के मशहूर शायर, लेखक व आत्मज्ञानी है।

वह ८१७ हिजरी क़मरी बराबर १४१४ ईसवी में ख़ुरासान प्रांत के जाम ज़िले में पैदा हुए। उनके बाप दादा इस्फ़हान  में रहते थे लेकिन जब तुर्कों की लूटमार शुरु हुयी तो वे ख़ुरासान पलायन कर गए और ख़ुरासान के जाम ज़िले के खुर्जद्र इलाके में रहने लगे।

एसे हेरात शहर में जो अपनी शान में डूबा हुआ था, जामी अध्यात्मिक दृष्टि से बादशाह समझे जाते थे। बादशाह, मंत्री, कुलीन वर्ग और विभिन्न सामाजिक वर्ग में उनका सम्मान था।

 

जामी के समाज का जीवन तनाव, गहरे विरोधाभास, सतही विचार, दिखावा, अंधविश्वास व पथभ्रष्टता में डूबा हुआ था। सांप्रदायिक अकराव और भेदभाव की वजह से तर्क का सोता सूख गया था। इस बीच शिया और सुन्नी संप्रदाय क दूसरे को नीचा दिखाने में पूरी ताक़त लगाए हुए थे। एसे समाज में जीवन और इन दो में से एक मत से जुड़े होने की वजह से जामी भी कभार धार्मिक विवाद में घिरते और लोगों की आलोचना का शाना बनते थे।

समकालीन साहित्य के समीक्षक ज़बीहुल्लाह सफ़ा का मानना है कि जामी चूंकि नक़्शबिंया सूफ़ी मत से जुड़े हुए थे इसलिए उनके सुन्नी होने पर किसी प्रकार का शक नहीं रह जाता । दूसरे संप्रदाय के विचारों व आस्थाओं का इंकार उनकी इस निर्भरता की स्वाभाविक प्रतिक्रिया लगती है।

जामी के दौर की एक त्रासदी सतही व सांप्रदायिक सोच थी। यह वह ख़तरनाक चीज़ थी जिसकी वजह से इस्लामी जगत को पूरे इतिहास में बहुत सी तबाही का सामना करना पड़ा।

जिस तरह जामी ने वर्णन किया है, जामी का दौर व समाज एसे त्रासदीपूर्ण माहौल में ग्रस्त था। एसे दौर में सांप्रदायिकता और सभी धार्मिक आयाम में रूढ़ीवाद को भी अस्ल धर्म समझ कर बढ़ावा दिया जाता है। धर्म का विदित आयाम चिंतन मनन का स्थान ले लेता है। मिसाल के तौर पर पवित्र क़ुरआन की आयतों में चिंतन मनन और उसके अर्थ को समझने के बजाए सारी ऊर्जा व बहस शब्द को बयान करने के तरीक़े पर केन्द्रित होती है। जामी बहुत से शेर में इसी बात की ओर इशास किया है और इस तरह उन्होंने अपने दौर के हालात का चित्रण किया है।

 

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