Aug २२, २०२० १७:०२ Asia/Kolkata

कार्यक्रम में ईरान के कुछ महशूर पुल के बारे में चर्चा करेंगे ।

ईरान में पुल ऐसी वास्तुकला का प्रतीक है जो प्राचीन काल से सामाजिक व सांस्कृतिक परंपराओं के साथ साथ दूसरों के साथ भलाई जैसे उद्देश्य को प्रतिबिंबित करती है। ईरान के सामाजिक इतिहास में पुल, हम्माम, स्कूल और मस्जिद जैसी इमारतों के निर्माण का, जिससे आम लोगों को फ़ायदा पहुंचता है, बहुत रवाज रहा है और जब भी सामाजिक सुरक्षा क़ायम रही इस तरह की इमारतों के निर्माण का रवाज भी बढ़ा।

प्राचीन काल से पुलि निर्माण की प्रक्रिया तरक़्क़ी करती गयी और इसने विभिन्न काल में तरक़्क़ी के चरण तय किए। चौथी और ग्यारहवीं हिजरी ईरान के मुसलमान वास्तुकारों की कला के प्रदर्शन का शानदार दौर रहा है। सफ़वी शासन काल में राजधानी को सुंदर बनाने पर बहुत अधिक अहमियत दी गयी जिससे इस्फ़हान शहर की काया पलट गयी और वह ईरान में इस्लामी शासन काल का नमूना शहर बन गया। इस दौर की वास्तुकला का जलवा इस्फ़हान की ज़्यादातर इमारतों ख़ास तौर पर ज़ायंदे रूद नदी पर बने पुलों में नज़र आता है। ये पुल इस्फ़हान की चहार बाग़ सड़क जैसे साफ़ सुथरे होने के साथ साथ आली क़ापू और नक़्शे जहान के महलों की सुदंर इमारतों की तरह सुंदर बने हैं। यह पुल सिर्फ़ ज़ायंदे रूद से लोगों के गुज़रने के लिए नहीं बनाए गए हैं बल्कि लोग इस पुल पर रुक कर सुकून की सांस ले सकते हैं और जीवन के बारे में चिंतन मनन कर सकते हैं।

उस दौर के वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों में शामिल ख़ाजू पुल भी है।  ख़ाजू पुल अपनी वास्तुकला और टाइल के काम की वजह से ज़ायंदे रूद नदी पर बने दूसरे पुल की तुलना में अधिक मशहूर है। यह पुल सफ़वी शासन काल में बांध के उद्देश्य से बनाया गया। इसी तरह यह पुल शाही पुल, बाबा रुकनुद्दीन पुलिस और हसन आबाद पुल के नाम से भी मशहूर है। ख़ाजू पुल का नाम ख़ाजा शब्द से निकला है जो सफ़वी शासन के दरबारियों व हस्तियों की उपाधि होती थी।

सफ़वी शासन शाह अब्बास द्वितीय ने 1060 हिजरी क़मरी में ख़ाजू पुल के निर्माण का आदेश दिया। यह पुल 132 मीटर लंबा, 12 मीटर चौड़ा और 10 मीटर ऊंचा है। इसके हर खंबे की चौड़ाई 2 मीटर है। ख़ाजू पुल में पानी की निकासी के लिए विभिन्न आकार के 21 दहाने बने हुए हैं। ये दहाने तराशे हुए पत्थर के बने हैं। पुल के बीच में बने हुए दहाने लकड़ी के पट से बंद होते हैं। इस तरह ज़ायंदे रूद नदी के पानी को रोका जाता है। पुल के खंबे पत्थर के बने हैं जबकि मुसाफ़िरों के चलने के लिए विशेष रास्ते ईंट के बने हैं। संगीत

ख़ाजू पुल कई उद्देश्य के लिए बना है। लोगों के गुज़रने के लिए, इसके गलियारों व ताक़ की तरह नज़र आने वाली जगहों में बैठ कर आनंद उठाने, नदी के पानी को बंद कर, उसे गर्मी के मौसम के लिए इकट्ठा करने और पर्यटकों को आकर्षित करने वाले सुंदर दृष्य मुहैया करने के लिए बना है। यह पुल चार मंज़िला है। इस पुल के दोनों ओर 51 छोटे बड़े कमरे बने हैं। पुल के बीचोबीच एक इमारत है जो राजा और राजकुमारों के आराम के लिए बनी थी। यह इमारत टाइल के सुंदर काम और दीवारों से विशेष चित्रों से सजी हुयी है।

पुल के दोनों ओर पत्थर का शेर बना हुआ है। पत्थर की सीढ़ियों के पास पत्थर के बने ये शेर पुल की शोभा बढ़ाते हैं। पुल के बीच में ज़ीने बने हुए हैं जिनसे नीचे वाली मंज़िल पर बनी केन्द्रीय इमारत में आते जाते थे।

ख़ाजू पुल के आस-पास बहार व गर्मी के मौसम और छुट्टियों के दिनों और ज़्यादातर रात में लोगों के आनंद के लिए मनोरंजन स्थल बने हुए हैं। शहर निर्माण और ज़ायंदे रूद नदी के दोनों छोर पर बनायी गयी हरियाली से पुल के निकट बहुत ही सुंदर पर्यटन स्थल बन गया है।

मोहम्मद ताहिर वहीद क़ज़्वीनी की किताब अब्बासनामे में ख़ाजू पुल का विस्तार से वर्णन हुआ है। इस पुल पर उद्घाटन समारोह और विभिन्न प्रकार के जश्न के आयोजन के बारे में बहुत सी घटनाओं का वर्णन हुआ है। पुल के खंबों के बीच में बहुत चौड़े चौड़े चौखटें बनी हुयी हैं जिनसे पुल का निचला भाग पूरा दिखाई देता है। इन चौखटों के पास पत्थर के ज़ीने बने हैं जिनसे नदी में उतर सकते हैं।

ख़ाजू पुल के वास्तुकार ने पुल को एक आयाम से ऐसा बनाया है कि वह जलती हुयी मोमबत्ती की तस्वीर लगता है। यह मोमबत्ती पुल के दो वृत्त खंड में चार आयाम से नज़र आती है। यह मोमबत्ती भीतर और बाहर से नज़र आती है। दो चौखटों के बीच की ख़ाली जगह दिखने में जलती हुयी मोमबत्ती लगती है।          

इस्फ़हान शहर सहित ईरान में अनेक इलाक़ों में सफ़वी शासन काल में बहुत से पुल का निर्माण हुआ कि उनके नामों के उल्लेख में ही बहुत लंबा समय लग जाएगा। सफ़वी शासन काल के बाद क़ाजारी शासन काल में शहर निर्माण पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया लेकिन फिर  भी पुलों का निर्माण हुआ और वे पुल भी विगत के पुल की तरह बहुत ही सुंदर व शानदार बने हुए हैं। निर्माण के क्षेत्र में नए नए मसालों का इस्तेमाल और नई शैलियों की खोज की वजह से पुल निर्माण के क्षेत्र में भी बहुत बदलाव आए। इस वजह से पुल निर्माण की पारंपरिक शैली धीरे धीरे पीछे छूटती गयी और उसके स्थान पर लोहे के उपकरण तथा खड़िया, चूने और गारे की जगह मज़बूत कंक्रीट ने ले ली। पिछले 100 साल में पुल विविधतापूर्ण तरीक़ों से बने हैं जिन्हें कई वर्गों में बांटा जा सकता है। फ़्लोटिंग ब्रिग फ़ूट ब्रिज, आर्च पुल, कान्टिलीवर ब्रिज, इस्पात के पुल, स्कैफ़ोल्डिंग ब्रिज, संसपेन्शन पुल और बैस्क्यूल पुल। ये वे पुल हैं जो पिछले सौ साल में ईरान सहित दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में बने हैं। ईरान में पुल की उपयोगिता के मद्देनज़र उन्हें दो प्रकार के पुल में बांटा जा सकता है। सड़क व मार्ग वाले पुल और रेलवे पुल। ये पुल देश के विभिन्न मार्गों को एक दूसरे से जोड़ते और आवाजाही को सुचारू बनाते हैं।

इस दौर में बना सबसे मशहूर वर्सक पुल है जो 1936 ईसवी में बना। यह पुल उत्तरी ईरान के माज़न्दरान प्रांत में है। यह संपर्क पुल पूरे उत्तरी ईरान की रेवले को दक्षिणी ईरान से जोड़ता है। वर्सक पुल अब्बासाबाद में दो दुर्गम पहाड़ों को एक दूसरे से जोड़ता है। इस पुल के निर्माण में धातु का इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसका मसाला सिमेंट, रेत और ईंट है। इसका दहाना धनुष की तरह 66 मीटर का है। दर्रे पर बना यह पुल 110 मीटर ऊंचा और 273 मीटर लंबा है। इस पुल का नाम निकट स्थित वर्सक नामक गांव के नाम पर पड़ा है। इन दिनों यह पुल इस क्षेत्र के पर्यटन आकर्षणों में शामिल है जिसे देखने पर्यटक आते हैं। यह पुल प्राकृतिक आपदाओं के मुक़ाबले की दृष्टि से बहुत ही मज़बूत है और इतना विशालकाय पुल इतनी ऊंचाई पर बने होने की वजह से लोग इसे देख कर हैरत में पड़ जाते हैं।

वर्सक पुल

हालिया शताब्दी में बना एक और मशहूर पुल कारून नदी पर बना पुल है जो दक्षिणी ईरान की रेलवे लाइन के मार्ग में बना है। यह पुल इमाम ख़ुमैनी बंदरगाह 110 किलोमीटर दूर है। कारून पुल अहवाज़ शहर के उत्तर में 1100 मीटर लंबा बना है। इसके नीचे कारून नदी बहती है। इस पुल के खंबे पत्थर और कंक्रीट के बने हैं और उसके ऊपर धातु की बीम रखी हुयी है। पुल के दोनों ओर पैदल चलने वाला मार्ग लकड़ी और विकर्ण जंगले का बना है।

यह पुल और सफ़ेद पुल जो अहवाज़ शहर का संसपेश्नन ब्रिज है, कारून नदी पर बने अहम पुल में शामिल है। सफ़ेद पुल द्वितीय विश्व युद्ध के समय बना था जो 501 मीटर लंबा है। पुल की चौड़ाई 10 मीटर है। इस पुल को धातु के टुकड़ों और बतुनी खंबों पर नट बोल्ट से कस कर बनाया गया है। यह पुल समकालीन ईरानी वास्तुकला के नमूनों में गिना जाता है।      

सफ़ेद पुल

           

ईरान के पुल के बारे में जानकारियां बहुत ज़्यादा हैं। ईरान के रेलवे मंत्रालय के दस्तावेज़ों में छोटे बड़े कई हज़ार पुल का उल्लेख पूरे विस्तार से मौजूद है। इन पुलों में ऐतिहासिक अहमियत वाले और नए पुल दोनों शामिल हैं। रेलवे मंत्रालय के दस्तावेज़ों में 150 से ज़्यादा पुल ऐसे हैं जो एक किलोमीटर से ज़्यादा लंबे हैं। इसी तरह ईरान में बने हुए 50 पुल ऐसे हैं जिनका मुख्य दहाना 50 से ज़्यादा चौड़ा है।

नए दौर में वास्तुकला के क्षेत्र में तकनीकी विकास की वजह से पुल निर्माण के क्षेत्र में बहुत बदलाव आ गया है। लेकिन इसके बावजूद विगत के वास्तुकारों द्वारा बनाए गए उत्कृष्ट पुल आज भी अपनी ओर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। हालांकि इन उत्कष्ट नमूनों को पुरातात्विक नज़र से देखा जाता है लेकिन इनके निर्माण में जिस महारत का इस्तेमाल हुआ है उसकी मौजूदा दौर के वास्तुकार व इंजीनियर भी तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाते।

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