क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-787
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-787
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَنْ نُؤْمِنَ بِهَذَا الْقُرْآَنِ وَلَا بِالَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَلَوْ تَرَى إِذِ الظَّالِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ الْقَوْلَ يَقُولُ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لَوْلَا أَنْتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ (31)
और ईश्वर का इन्कार करने वाले कहते हैं कि हम कदापि न तो इस क़ुरआन को मानेंगे और न ही इससे पहले आई हुई किसी किताब को। और काश तुम इनकी स्थिति उस समय देख पाते जब अत्याचारी अपने पालनहार के सामने खड़े कर दिए जाएँगे। (उस समय) ये एक-दूसरे पर आरोप धर रहे होंगे। जो लोग कमज़ोर बने हुए थे, वे उन लोगों से, जो बड़े बनते थे, कहेंगेः अगर तुम न होते तो हम अवश्य ही ईमान वाले होते। (34:31)
قَالَ الَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لِلَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا أَنَحْنُ صَدَدْنَاكُمْ عَنِ الْهُدَى بَعْدَ إِذْ جَاءَكُمْ بَلْ كُنْتُمْ مُجْرِمِينَ (32) وَقَالَ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا بَلْ مَكْرُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ إِذْ تَأْمُرُونَنَا أَنْ نَكْفُرَ بِاللَّهِ وَنَجْعَلَ لَهُ أَنْدَادًا وَأَسَرُّوا النَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ وَجَعَلْنَا الْأَغْلَالَ فِي أَعْنَاقِ الَّذِينَ كَفَرُوا هَلْ يُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (33)
वे लोग जो बड़े बनते थे, उन लोगों से, जो कमज़ोर बने हुए थे, कहेंगेः क्या हमने तुम्हें उस मार्गदर्शन से रोका था जो तुम्हारे पास आया था? (नहीं) बल्कि तुम स्वयं ही अपराधी थे। (34:32) वे लोग जो कमज़ोर बने हुए थे, उन बड़े बनने वालों से कहेंगेः नहीं, बल्कि वह रात-दिन की धूर्तता थी जब तुम हमसे कहते थे कि हम ईश्वर का इन्कार करें और दूसरों को उसका समकक्ष ठहराएँ। अंततः जब ये लोग यातना देखेंगे तो अपने मन में पछताएँगे और हम उन लोगों के गलों में जिन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई, ज़ंजीरें डाल देंगे। क्या उन्हें उसके सिवा कोई और बदला दिया जा सकता है जैसे कर्म वे करते रहे थे? (34:33)