Feb ०२, २०२१ १९:०४ Asia/Kolkata
  •  म्यांमार ... जब सेना के मुंह बग़ावत लग जाती है! क्या यह आंग सांग सुचि को सज़ा है?  ज़ुल्म की चक्की मे पिसते असहाय रोहिंग्या पर एक और पहाड़...

लंदन से प्रकाशित होेने वाले समाचार पत्र अलकुदसुल अरबी ने म्यांमार के हालात और आंग सान सूचि की भूमिका पर पढ़ने योग्य चर्चा की है।

म्यांमार के जनरलों के मुंह को सत्ता लग चुकी है इसके लिए वह बार बार और विभिन्न बहानों से सरकारों का तख्तापलट करते रहे हैं, इस बार उन्होंने पिछले नवंबर में होने वाले चुनाव में धांधली का बहाना बनाया है।

     धांधली का दावा बेहद कमज़ोर है क्योंकि आन सांग सूची की पार्टी को ज़बरदस्त वोट मिले थे और सेना के समर्थन वाली पार्टी को बस 33 सीटें ही मिल पायी थीं जबकि सत्ताधारी पार्टी को 396 सीटें मिली थीं।

     म्यांमार के हालिया चुनाव में ईसाई और मुस्लिम अल्पसंख्यकों को जिनकी संख्या बहुत कम भी नहीं है, भाग नहीं लेने दिया गया। इन लोगों  के क्षेत्रों में मतदान ही नहीं हुआ और इसके लिए यह बहाना बनाया गया कि वहां पारदर्शिता के साथ मतदान नहीं हो सकता। हैरत तो इस पर है कि म्यांमार की सेना ने चुनाव के परिणाम स्वीकार किये थे।

     इस बार बग़ावत के लिए भी म्यांमार की सेना ने पुराने हथकंडे ही अपनाए हैं जिसने इस देश पर लंबे समय तक राज किया है। सन 1948 में अग्रेज़ों से स्वतंत्रता के बाद से ही इस देश में सेना सत्ता में रही। फिर सन 1962 में भी अचानक ही निर्वाचित सरकार का तख्ता उलट दिया।

 

     इस बार भी सेना ने बहाना बना कर सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया है और खबर हैं कि वह सन 2008 का संविधान भी भंग करना चाहती है। इस तरह से सेना सन 2015 के अपने उस वचन को भी तोड़ रही है जिसमें उसने देश में प्रजातंत्र के समर्थन की प्रतिबद्धता प्रकट की थी।

     म्यांमार में प्रजातंत्र के लिए संघर्ष में सब से बड़ा नाम आंग सान सूची का है। अपने देश में प्रजातंत्र के लिए शांतिपूर्ण और लंबे संघर्ष के लिए उन्हें  नोबल इनाम भी दिया गया और वह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गयीं लेकिन सत्ता के लिए जब वह सेना के साथ खड़ी हो गयीं और इस देश के बेहद पीड़ित रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के जनसंहार और उन पर अत्याचार पर शांति का नोबल इनाम लिए चुप रहीं। इस पर पूरी दुनिया में उनकी कड़ी आलोचना की गयी यहां तक कि कई संगठनों ने यह भी मांग की कि नोबल इनाम भी उनसे वापस लिया जाए।

     म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिक अधिकारों, मतदान के अधिकार और नागरिकता के अधिकारों से ही वंचित नहीं किया गया बल्कि उनकी बड़ी संख्या के घरों और खेतों को जला दिया गया और म्यांमार की सेना ने उन पर इतना अत्याचार किया इस प्रकार से उनका जनसंहार किया कि वह अपना घर बार छोड़ कर भागने पर विवश हो गये और इस समय वह बांग्लादेश सहित पड़ोस के कई देशों में बेहद दयनीय दशा में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।  

 

     म्यांमार के रोहिंग्या समुदाय के गांव के गांव जला दिये गये और संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी रिपोर्ट में उनके जनसंहार और उन पर होनो वाले अत्याचारों का उल्लेख किया लेकिन पूरी दुनिया उस समय आश्चर्यचकित रह गयी जब सन 2019 में शांति के लिए नोबल इनाम पाने वाली आंग सांग सूची अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में युद्ध अपराध के आरोपियों का समर्थन करती नज़र आयीं। मानवाधिकारों की दसियों संस्थाओं द्वारा दायर किये गये मुक़द्दमे में उन्होंने म्यांमार की सेना के रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ जातीय सफाये में लिप्त होने का खंडन किया।

     रोहिंग्या समुदाय की निर्मम हत्या, उनकी महिलओं के बलात्कार और विस्थापन के समय म्यांमार की सेना का साथ देने वाली आंग सांग सुचि को आज उसी सेना ने तगड़ा झटका दिया है।

      सेना के अपराधी में भागीदारी सूचि ने निश्चित रूप से अगर सेना का साथ इस तरह से न दिया होता तो शायद वह आज इतनी आसानी से उनका तख्ता न उलट पाती। Q.A.

  

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