ईरान की सांस्कृति धरोहर-21
बहुत पुरानी बात नहीं है, ईरान के अधिकांश बाज़ारों में कलाकारों के बनाए हुए ताले बेचे जाते थे।
यह ताले पूर्ण रूप से मज़बूत होने के अलावा, बहुत सुन्दर भी होते थे और लोग इन्हें ख़ूब पसंद किया करते थे। वर्षों तक इन तालों को प्रयोग किया जाता रहा। विभिन्न प्रकार से इन्हें इस्तेमाल किया जाता था। घरों और कमरों के प्रवेश द्वार पर इस प्रकार के तालों को देखा जा सकता था। संदूक़ों में भी सुन्दर ताले लगाए जाते थे, जिनका खोलना और बंद करना थोड़ा जटिल हुआ करता था।
ताले के अर्थ के बारे में जो जानकारी प्राप्त है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि पहला ताला वही गांठ रही होगी, जो इंसान ने दो वनस्पतियों को बल देकर लगाई थी। जो उपकरण ताले के रूप में प्रयोग होते थे, आरम्भ में उन्हें बहुत सादा तरीक़े से बनाया जाता था, ताकि उससे जो मूल उद्देश्य हो वह पूरा हो सके लेकिन धीरे धीरे सुन्दरता से इंसान के लगाव के कारण, अन्य प्रयोग की चीज़ों की भांति तालों को भी सुन्दर बनाया जाने लगा।
जब इंसान को अपनी संपत्ति के अलावा, वस्तुओं की सुरक्षा की चिंता होने लगी तो घर का दरवाज़ा बंद करने के अलावा, अपने व्यक्तिगत माल की सुरक्षा के लिए उसे संदूक़ों में ताला लगाने की ज़रूरत पड़ी। इस उद्देश्य के लिए शुरू में जिन उपकरणों को इस्तेमाल किया जाता था, वह सादा हुआ करते थे। ताले के रूप में त्रिकोणीय स्प्रिंग वाला एक कांटा हुआ करता था, बाद में दरवाज़ों में ताला लगाने, महिलाओं द्वारा आभूषणों की रक्षा के लिए और जानवरों को निंयत्रित करने के लिए प्रयोग किए जाने लगे।
शोधकर्ताओं का मानना है कि 2000 वर्ष ईसा पूर्व मिस्र और मेसोपोटामिया में ख़ज़ानों, गेंहू के गोदामों और उपसना स्थलों में ताला लगाने का प्रलचन था। पुरातत्व शोध के मुताबिक़, काशान में सियल्क चोटी पर एक ऐसा कंगन मिला जो चार अलग टुकड़ों से बनाया गया था और उसके बाद उन्हें किसी चीज़ से आपस में बांध दिया गया था।
प्राचीन काल में तालों का निर्माण ईरान के महत्वपूर्ण उद्योगों में से था। उस समय ताले मनुष्यों और जानवरों के रूपों में बनाए जाते थे। तकनीकी दृष्टि से ईरान के ताले दो प्रकार के स्थिर और धातु के होते थे। परवेज़ तनावुली की किताब ईरान के ताले, में लिखा हुआ है कि ताले दो प्रकार के तस्वीरी और ज्यामितीय होते हैं। गत समय में ताले केवल सुरक्षा के लिए प्रयोग नहीं होते थे, बल्कि संस्कारों के लिए भी इस्तेमाल होते थे, उदाहरण स्वरूप, पवित्र स्थलों और मज़ार में बनी हुई ज़रीह में लगने वाले ताले बहुत ही सुन्दर हुआ करते थे।
ईरान में सासानी काल से तालों के निर्माण का प्रचलन है। हालांकि जानवरों के रूप में बनने वाले ताले चौथी से नवीं हिजरी शताब्दी से संबंधित हैं लेकिन सफ़वी काल में लोहे के तालों ने ताला उद्योग में एक बड़ा परिवर्तन उत्पन्न कर दिया। सफ़वी काल में यह कला उस्ताद सनीउस्सनाये द्वारा विश्व में पहचनवायी गई।
धीरे धीरे तालों का निर्माण भी धातुओं के अन्य उद्योगों की भांति काफ़ी महत्वपूर्ण हो गया और इस्लाम के विभिन्न कालों में एक प्रथक कला के रूप में इसने प्रगति की। धीरे धीरे सुरक्षा के अलावा तालों का प्रतीकात्मक इस्तेमाल भी शुरू हो गया, जैसे कि मज़ारों की जालियों में मन्नत के लिए ताला लगाने का प्रचलन।
इसीलिए कहा जा सकता है कि ईरान की अन्य पारम्परिक कलाओं की भांति ताले के निर्माण में भी लोगों का विश्वास कला से जुड़ गया। वास्तव में ताला ईरानियों के लिए एक उपकरण से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण था और उनकी समस्याओं के हल से जुड़ा हुआ था, उसका उदाहरण वही ताले हैं जो मन्नत मांगने के लिए लगाए जाते थे।
क़ुरान की आयतें लिखना, मंत्र लिखना या जानवरों के रूप में तालों के निर्माण से उनके अधिक महत्व और इस्तेमाल का पता चलता है। प्रयोग के स्थान के दृष्टिगत, उदाहरण स्वरूप मज़ारों, मस्जिदों और अन्य स्थानों में प्रयोग की दृष्टि से तालों पर विभिन्न निशानियां बनी होती थीं।
उस्ताद नीकज़ाद ने सोने का एक बड़ा ताला बनाया था, जिसका भार 1 किलो 280 ग्राम है और वह मशहद में इमाम अली रज़ा (अ) के पवित्र मज़ार के संग्राहलय में रखा हुआ है। दुनिया का सबसे छोटा और हलका ताला पेरिस के एक संग्राहलय में है, जिसका भार केवल 4.5 मिलीग्राम है।
पिछले ज़माने में जो ताले बनाए जाते थे, वह तीन प्रकार के होते थे। संयोजन ताला, चाबी वाला ताला और जादुई या मन्नती ताला।
जो ताले बिना चाबी के खोले और बंद किए जाते थे उन्हें संयोजन ताले कहा जाता था। यह ताले कुछ चक्रों को मिलाकर बनाए जाते थे, हर चक्र में कोई शब्द या चिन्ह बना होता था, जिन्हें मिलाकर ताले को खोला जा सकता था।
चाबी वाला तोला वही ताला होता है, जो चाबी से खोला और बंद किया जाता है। यह ताले भी कई प्रकार से बनाए जाते हैं।
जादुई या मन्नती ताला वह ताला होता है, जिसे ताले के मालिक की किसी मन्नत या सुरक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है। इन तालों को हार या मन्नती तावीज़ के रूप में बनाया जाता था। प्राचीन समय में माएं इन तालों को अपने बच्चों के वस्त्रों या गर्दन में लटका दिया करती थीं, ताकि वे बुरी नज़र से बचे रहें। एक आम धारणा थी कि इस प्रकार, ख़ुद को और अपने बच्चों को शैतानों, भूतों, ईर्ष्या करने वालों और बुरा सोचने वालों से सुरक्षित रखा जा सकता है। यह ताले बुरा भला कहने वालों की ज़बान बंद करने के लिए भी प्रयोग किए जाते थे। इस काम के लिए ताले के ऊपर कुछ मंत्र लिखे जाते थे। उल्लेखनीय है कि यह धारणा वर्षों पहले समाप्त हो चुकी है।
तालों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों का प्रयोग किया जाता था। ताला बनाने के लिए फ़ौलाद या स्टील और लोहे या उसके मिश्रण का प्रयोग किया जाता था। ताला बनाने के लिए पहले लोहे या फ़ौलाद के तार या शीट को विभिन्न साइज़ों में तैयार किया जाता है। उसके बाद ताले के डिज़ाइन की दृष्टि से कच्चा माल सांचे में डाला है और ताले के अंदर के पुर्ज़ों को लगाया जाता है। उसके बाद पुर्ज़ों को उचित रूप से आपस में मिलाया जाता है। अंत में एसिड लगाकर उन्हें अंतिम रूप दिया जाता है।
फ़ौलाद बहुत मज़बूत होता है और इस धातु की अपनी अनेक विशेषताएं हैं। 1200 ड्रिग्री सेल्सियस पर पिघलता है और आसानी से सांचे में ढल जाता है। फ़ौलाद चमकदार होता है, पॉलिश करके इसे अधिक चमकदार बनाया जा सकता है। फ़ौलादी तालों पर सोने का पानी चढ़ाकर उन्हें सुन्दर और मूल्यवान बनाया जा सकता है।
ताले के साइज़ की दृष्टि से एक ताला सात दिन से 10 दिन में बनकर तैयार होता था।
बहरहाल, वर्तमान समय में तालों का निर्माण ईरान में एक सुन्दर कला है। धातु के ऊपर विभिन्न सुन्दर डिज़ाइन बनाकर सजावटी चित्र बनाए जाते हैं। यद्यपि वर्तमान समय में इस कला की सुन्दरता और बारीकी कम ही देखने को मिलती है और विगत की तरह उसका इस्तेमाल नहीं रहा है, लेकिन अभी भी देश के कुछ इलाक़ों में ऐसे लोग हैं जो अपनी रूची के दृष्टिगत, ताला बनाने की कला में व्यस्त है और इस कला को जीवित रखे हुए हैं। विगत में ईरान में ताला निर्माण के प्रमुख केन्द्रों में से आज़रबाइजान प्रांत के शहर, तेहरान, इस्फ़हान, कुर्द शहर और शीराज़ का नाम लिया जा सकता है।
चालेश्तर प्राचीन समय से ताला निर्माण की कला का केन्द्र रहा है। इसी कला के कारण इस इलाक़े का नाम हर किसी की ज़बान पर है। ईरान के चहार महाल बख़्तियारी प्रांत में स्थित चालेश्तर, ताला निर्माण के प्रमुख केन्द्रों में रहा है और आज भी कई दक्ष उस्ताद इसके निर्माण में लगे हुए हैं। चालेश्तर के ताले दक्ष कलाकारों द्वारा भट्टी में पिघलाए हुए लोहे या अधिक तापमान में बनाए जाते हैं, जो इस प्रकार की कला के बाक़ी रहने का कारण हैं।