Feb २५, २०२३ १९:२३ Asia/Kolkata

दोस्तो, हज़रत अब्बास के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई पेश करते हैं।

दोस्तो, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एसी महिला से शादी करने का फैसला किया जो वीर और बहादुर परिवार से हो ताकि उनसे साहसी एवं वीर संतान पैदा हो।  इस बारे में हज़रत अली ने अपने भाई अक़ील से बात की।  हज़रत अक़ील को वंशावली या अरब क़बीलों की गहरी जानकारी थी।  अपने काल के अरब क़बीलों से वे भलि-भांति अवगत थे।  हज़रत अली ने जनाब अक़ील से कहा कि वे इस बारे में खोजबीन करें। 

जनाब अक़ील ने बताया कि एक क़बीला है "बनी केलाब" यह क़बीला अपनी वीरता के लिए मश्हूर है।  इस क़बीले की एक महान महिला थीं, "फ़ातेमा केलाबिया"।  वे बहुत ईमानदार, सच्ची और निष्ठावान महिला थीं।  आप इनसे विवाह कर सकते हैं।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने भाई जनाब अक़ील के सुझाव को स्वीकार किया।  जनाब अक़ील ने बात आगे बढ़ाई और जनाब "फ़ातेमा केलाबिया" से हज़रत अली का विवाह हो गया। 

जनाबे केलाबिया से हज़रत अली के पहले बेटे का नाम था "अबुल फ़ज़लिल अब्बास"।  4 शाबान सन 26 हज़री क़मरी को हज़रत अब्बास का जन्म मदीने में हुआ था।  बाद में "फ़ातेमा केलाबिया, उम्मुल बनीन के नाम से मश्हूर हुईं।  फ़ातेमा केलाबिया से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के यहाँ चार बेटे पैदा हुए जिनमें हज़रत अब्बास सबसे बड़े थे।  उनके बाद औन, जाफ़र और उस्मान थे।  यही कारण है कि उनकी मां को उम्मुल बनीन यानी बेटों की माँ कहा जाता है।  जब जनाबे अब्बास अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनके कानों में अज़ान और इक़ामत कही थी।  हज़रत अली, जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम के हाथों को चूमा करते थे।

हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम बहुत ही वीर, साहसी, बलवान और आकर्षक थे।  वे अपनी बहादुरी के लिए अधिक जाने जाते थे।  करबला की घटना के दौरान वे इमाम हुसैन के सेनापति थे।  हज़रत अब्बास ने करबला में जो क़ुर्बानी दी उसी के कारण उनके शुभ जन्म दिवस को ईरान में "जानबाज़ दिवस" के रूप में मनाते हैं।  एक विख्यात मुसलमान धर्मगुरू शे, सदूक़ अपनी किताब "अमाली" में लिखते हैं कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम से एक कथन नक़ल हुआ है।  इसमें कहा गया है कि ईश्वर के निकट हज़रत अब्बास का वह स्थान है जिसको देखकर शहीद भी अचंभित होंगे।  वे यह सोचेंगे कि काश हमे भी वहीं स्थान मिला होता जो हज़रत अब्बास के पास है।

धार्मिक मामलों के बहुत से जानकारों का कहना है कि क़यामत में हज़रत अब्बास को जो स्थान मिलेगा उसके बारे में सोचा नहीं जा सकता।  हज़रत अब्बास ने अपने जीवन के लगभग 15 वर्ष इमाम अली अलैहिस्सलाम की छत्रछाया में गुज़ारे।  एक कथन में मिलता है कि हज़रत अब्बास ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से शिक्षा ग्रहण की।  उन्होंने अपने पिता से उच्च स्तर का ज्ञान प्राप्त किया।  जीवन के उच्च मूल्यों को उन्होंने अपने पिता से ही सीखा।  हज़रत अब्बास ने वीरता, सदाचारिता और उच्च मूल्यों को अपने पिता हज़रत अली से सीखा था।

सिफ़्फ़ीन के युद्ध में लोगों ने हज़रत अब्बास की वीरता को निकट से देखा था।  उस दौरान उनकी वीरता की याद लोगों के दिमाग़ों में बाक़ी रह गई।  सिफ़्फ़ीन युद्ध में एक दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सेना से एक नक़ाबदार जवान मैदान में आया। इस युवा के हावभाव देखकर माविया की सेना में आतंक की लहर दौड़ गई।  माविया की सेना का हर सैनिक एक-दूसरे से पूछ रहा था कि यह युवा कौन है जो इस बहादुरी के साथ मैदान में आया है?  हज़रत अब्बास की दिलेरी और बहादुरी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि युद्ध में माविया का कोई भी सैनिक मैदान में कदम रखने का साहस नहीं कर पा रहा था। 

अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ ही हज़रत अब्बास ने अपने बड़े भाइयों हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन से भी बहुत कुछ सीखा था।  वे बचपन से ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ रहा करते थे।  हज़रत अब्बास बचपन से ही हज़रत इमाम हुसैन को बहुत चाहते थे।  करबला की दर्दनाक घटना से पहले से ही हज़रत अब्बास अपनी वफादारी के लिए मश्हूर थे।  जब भी कोई व्यक्ति सहायता के लिए इमाम हसन या इमाम हुसैन के पास आता था तो हज़रत अब्बास उसकी सहायता ज़रूर किया करते थे।  यही कारण था कि वे दोनो भी हज़रत अब्बास को विशेष स्नेह और प्यार देते थे।

जिस तरह से पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के निकट हज़रत अली का महत्व था, ठीक वैसे ही हज़रत अब्बास का महत्व इमाम हुसैन के निकट था।  जब भी कोई ख़ास बात होती थी तो पैग़म्बरे इस्लाम उस मामले को हज़रत अली को बताकर उसका समाधान करते थे।  एसा ही हज़रत अब्बास और इमाम हुसैन के बीच था।  यही कारण है कि हज़रत अब्बास को बाबुल हवाएज के नाम से भी पुकारा जाता है।  करबला के मैदान में हज़रत अब्बास ने अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक इमाम हुसैन का साथ दिया।

यही कारण है कि जब हज़रत अब्बास करबला में शहीद हुए तो सिरहाने आकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा था कि ईश्वर की सौगंध आज मेरी कमर टूट गई।  आशूर के दिन कर्बला के तपते रेगिस्तान में जब हज़रत अब्बास से बच्चों के सूखे होठ और नम आँखें न देखी गईं तो उन्होंने सूखी हुई मश्क को उठाया।  इमाम हुसैन से अनुमति लेकर उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा इम्तेहान दिया। दुश्मन की सेना को चीरते हुये घाट पर कब्जा किया और मश्क को पानी से भरा।  विशेष बात यह है कि भूखे और प्यासे होने के बावजूद हज़रत अब्बास ने एक बूंद भी पानी नहीं पिया। इसकी वजह यह है कि हज़रत अब्बास की निगाह में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और आपके साथियों के भूखे प्यासे बच्चों की तस्वीरें थीं। 

मनुष्यों के भीतर पाई जानी वाली विशेषताओं में से एक विशेषता का नाम वफा है।  जिस व्यक्ति के भीतर यह विशेषता पाई जाती है उसको वफादार कहा जाता है।  किसी भी इंसान का अन्तिम समय तक वफादार बाक़ी रहना एक कठिन बात है।  हज़रत अब्बास की विशेषताओं में सबसे मश्हूर विशेषता वफा थी।  इमाम हुसैन के साथ उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक वफादारी की थी।  हालांकि करबला में वफा या निष्ठ के कई उदाहरण थे किंतु उनमें से सबसे अधिक स्पष्ट उदाहरण हज़रत अब्बास की वफा का था। 

करबला की घटना के दौरान यज़ीद की सेना का सेनापति शिम्र, एक बार हज़रत अब्बास के पास आकर कहता है कि तुम हुसैन को छोड़कर यज़ीद के साथ हो जाओ।  मैं तुम्हारे लिए माफी नामा लाया हूं।  हज़रत अब्बास ने शिम्र की बात को कोई महत्व ही नहीं दिया।  जब इमाम हुसैन ने यह देखा तो हज़रत अब्बास से कहा कि जाओ तुम उससे बात कर लो। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आदेश का पालन करते हुए हज़रत अब्बास, यज़ीद के सेनापति से ऊंची आवाज़ में कहा कि धिक्कार हो तुझपर, तेरे स्वामी पर और तेरे माफीनामे पर।  हे शिम्र तू मुझको सुरक्षा देने की गारेंटी ले रहा है किंतु पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन को तूने अकेला छोड़ दिया है।  मुझको तेरे माफीनामे की कोई ज़रूरत नहीं है।  

शुजाअत या वीरता तथा ग़ैरत या स्वाभिमान वे विशेषताएं हैं जो हज़रत अब्बास में कूट-कूटकर भरी हुई थीं। स्वाभिमान एसी आंतरिक भावना है जो विदित रुप में दिखाई नहीं देती है किंतु जिसके भीतर यह भावना पाई जाती होगी वह अत्याचार के मुक़ाबले में कभी भी ख़ामोश नहीं बैठ सकता।  एसा इंसान मरना तो पसंद करेगा लेकिन अत्याचार सहन करना पसंद नहीं करेगा।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इसको ईमान की निशानी बताया है।  ग़ैरत या स्वाभिमान वह विशेषता थी हमेशा से हज़रत अब्बास में पाई जाती थी किंतु करबला की घटना में इसको बहुत ही स्पष्ट रूप में उनके भीतर देखा गया। उन्होंने अत्याचार के मुक़ाबले में एसा कारनामा अंजाम दिया जो रहती दुनिया तक याद रखा जाएगा। 

इसी तरह से हज़रत अब्बास के भीतर वीरता पाई जाती है।  वे बहुत निडर थे।  उनके भीतर शत्रु का कोई भय नहीं था।  करबला में प्यासे बच्चों की प्यास बुझाने के लिए वे पानी लेने गए थे।  उनहोंने पूरी दृढ़ता के साथ शत्रुओं का मुक़ाबला किया और उनको पीठ नहीं दिखाई।  हज़रत अब्बास की विशेषताओं के बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि बाबुल हवाएज, न केवल उच्च नैतिक विशेषताओं के स्वामी थे बल्कि उनके भीतर ज्ञान भी बहुत था।इसका मुख्य कारण यह है कि उन्होंने तीन इमामों हज़रत अली, हज़रत इमाम हसन और हज़रत हमाम हुसैन अलैहिस्लाम के बीच रहकर अपनी ज़िंदगी गुज़ारी थी।  दोस्तो कार्यक्रम के अंत में हज़रत अब्बास के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर आपकी सेवा में बधाई पेश करते हैं।

हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए

हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए!

ट्वीटर पर हमें फ़ालो कीजिए 

फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक करे

टैग्स