ईश्वरीय आतिथ्य- रमज़ान 7
(last modified Mon, 27 Mar 2023 10:45:15 GMT )
Mar २७, २०२३ १६:१५ Asia/Kolkata
  • ईश्वरीय आतिथ्य- रमज़ान 7

दोस्तो जैसाकि आप जानते हैं कि रमज़ान का पवित्र महीना जारी है

ईश्वरीय अनुकंपाओं और बरकतों की वर्षा का महीना जारी है। यह वह महीना है जिसमें नरक के द्वार बंद कर दिये गये हैं, आत्मा को हर प्रकार के गुनाह से पवित्र व शुद्ध करने का महीना जारी है, कितने खुशनसीब वे लोग हैं जो इस महीने की बरकतों से लाभ उठा रहे हैं और अपने अमल व नियत को शुद्ध बनाने के साथ साथ अपनी सोचों को भी शुद्ध बना रहे हैं।

इंसान के अमल और नियत का संबंध उसकी सोच से होता है। जिस इंसान की सोच अच्छी होगी उसकी नियत भी अच्छी होगी और जिसकी नियत अच्छी होगी उसका अमल भी अच्छा होगा। अच्छी सोच रखने वाला इंसान न केवल बुरा कार्य नहीं करता है बल्कि बुरे कार्यों के बारे में जल्दी सोचता भी नहीं है।

 

दोस्तो यहां एक बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि बुरी सोच गुनाह नहीं है मिसाल के तौर पर अगर कोई शराब पीने, चोरी करने या किसी की हत्या करने के बारे में सोचे तो उसने कोई पाप नहीं किया है और उसे इस पर प्रलय के दिन दंडित नहीं किया जायेगा परंतु बुरी सोच का प्रभाव उसकी आत्मा पर ज़रूर पड़ता है। मिसाल के तौर पर एक कमरे में आग जला दी जाये और सारा कमरा धुएं से भर जाये तो धुएं से कमरा नहीं जलता है मगर कमरे की दीवारों की चमक पहले से ज़रूर कम हो जायेगी। यही हाल बुरी सोच का है।

दोस्तो रमज़ान का पवित्र महीना महान ईश्वर की उपासना का महीना है। उपासना का यह मतलब नहीं कि केवल नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने का महीना है। रमज़ान का पवित्र महीना इंसान के शुद्धिकरण का महीना है। हर वह कार्य जो वैध हो और उसे महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अंजाम दिया जाये उसे उपासना कहते हैं। रमज़ान का महीना नेक काम करने और बुरे कार्यों से दूरी का महीना है।

इस महीने में जहां अधिक से अधिक महान ईश्वर की उपासना करनी चाहिये वहीं इस महीने में अधिक से अधिक गुनाहों विशेषकर हराम कार्यों से दूर रहना चाहिये। इस महीने के क्षण अमूल्य हैं। इस महीने में अगर रोज़ेदार सो रहा होता है तो उसकी सांसें तस्बीह पढ़ने वाले व्यक्ति की भांति होती हैं। यानी उन पर तस्बीह पढ़ने की भांति सवाब मिलता है। पवित्र रमज़ान का महीना हो या गैर रमज़ान का महीना हो हर इंसान के ईमान की परीक्षा होती है।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे अनकबूत की दूसरी आयत में कहता है कि क्या लोग यह सोचते हैं कि वे केवल यही कह दें कि हम ईमान लाये हैं तो इसी पर उन्हें छोड़ दिया जायेगा और उनकी परीक्षा नहीं ली जायेगी।“ पवित्र कुरआन की इस आयत से यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि ईमान लाने वाले हर व्यक्ति की परीक्षा होती है और केवल यह कह देना काफी नहीं है कि हम ईमान लाये।

जिन चीज़ों के ज़रिये महान ईश्वर परीक्षा लेता है उसमें से एक यह है कि इंसान मुस्तहब चीज़ों को अंजाम देने में टाल मटोल व विलंब से काम ले। कभी- कभी एसा होता है कि हम अपनी ज़रूरतों को महान ईश्वर की बारगाह में पेश करते हैं उससे दुआयें मांगते हैं परंतु हमारी बहुत सी दुआयें महीनों या सालों में कबूल होती हैं। इसके बहुत कारण हो सकते हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अगर तुम्हारी दुआ कबूल होने में देरी हो जाये तो इससे तुम निराश न हो।" जब इंसान दुआ करता है और उसकी दुआ कबूल होने में समय लगता है तो इससे कुछ लोगों में निराशा उत्पन्न हो जाती है और महान ईश्वर के बारे में विभिन्न प्रकार की बात सोचने और कहने लगते हैं जबकि उन्हें इस बात की खबर भी नहीं होती है कि शायद महान ईश्वर इसी दुआ से उनकी परीक्षा ले रहा है और उसके ईमान में वृद्धि करना चाहता है।

 

बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ लोग एसे भी होते हैं जब उनकी दुआ कबूल होने में विलंब होता है तो वे निराशा का शिकार हो जाते हैं और अपने पालनहार से शिकायत करने के बजाये लोगों के सामने शिकायत करने और उन्हीं से मदद मांगने लगते हैं जबकि इंसान को यह सोचना चाहिये कि अगर उसकी दुआ कबूल नहीं हो रही है तो हो सकता है कि महान ईश्वर यह चाहता है कि मेरा बंदा मेरी बारगाह में आता रहे और महान ईश्वर को यह बात बहुत पसंद है कि उसका बंदा लोगों के बजाये उससे मांगे और वह सब कुछ दे सकता है।

जो इंसान महान ईश्वर से मांगता है वह इस बात को बहुत अच्छी तरह जानता है कि इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी है उसका वास्तविक मालिक महान ईश्वर ही है। कितना खुश नसीब वह बंदा है जो अपनी दुआ कबूल न होने के बावजूद महान ईश्वर पर पूरा भरोसा रखता है और इस बात को मानता है कि अगर उसकी दुआ कबूल नहीं हो रही है तो इसमें कोई हिकमत और उसकी भलाई है। इस प्रकार का इंसान हर हालत में अपने पालनहार पर भरोसा रखता है और महान ईश्वर पर भरोसे को अपने ईमान का आधार मानता है, महान ईश्वर पर भरोसा बहुत बड़ी पूंजी है और महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि जो ईश्वर पर भरोसा रखे उसके लिए ईश्वर काफी है।

जो इंसान दुआ करता है और उसकी दुआ कबूल नहीं होती है तो वह अपने पालनहार के बारे में किसी एसी बात को नहीं सोचता है जो एक मोमिन को शोभा नहीं देती हैं। वह इस बात को अच्छी तरह जानता है कि महान ईश्वर की रहमत हर चीज़ और हर ज़रूरत से बड़ी है और वह कंजूस नहीं है क्योंकि कंजूस वह होता है जिसे इस बात का भय रहता है कि अगर किसी को दे देंगे तो कम हो जायेगा पर जो हर चीज़ का स्रोत है हर शक्ति का स्रोत है उसके बारे में इस प्रकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह कंजूस है। वह दानी नहीं बल्कि महादानी है।

जो इंसान दुआ करता है और उसकी दुआ कबूल नहीं होती है तो वह दुआ करना नहीं छोड़ता है। वह इस बात को मानता व जानता है कि इसमें कोई राज़ है। जो इंसान अपने पालनहार से दुआ करता है और उसकी दुआ कबूल नहीं होती है तो वह यह समझता है कि महान ईश्वर हमारे साथ कोई भलाई व नेकी कर रहा है जिसकी खबर भी हमें नहीं है। जो इंसान महान ईश्वर से दुआ करता है एक प्रकार से वह अपने पालनहार से जुड़ा रहता है और जो इंसान महान ईश्वर से जुड़ा रहता है वह पापों की ओर नहीं जाता है और खुद पापों की ओर न जाना बहुत बड़ी नेकी है। जिस इंसान के दिल में जितना अधिक महान ईश्वर की याद होगी, मरने, प्रलय के दिन के हिसाब किताब और नरक व स्वर्ग की याद होगी उतना ही वह गुनाहों से दूर रहेगा। 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने बड़े बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम को संबोधित करते हुए फरमाते हैं ईश्वर का दान तुम्हारी नियत पर निर्भर है कभी एसा भी हो सकता है कि तुम्हारी ज़रूरत पूरा होने में देरी हो जाये तो ईश्वर इस मार्ग से बड़ी नेकी तुम्हें देना चाहता है। कभी एसा भी होता है कि तुम किसी चीज़ की दुआ मांगते हो और वह चीज़ तुम्हारी भलाई में है और देर सवेर उससे अच्छी चीज़ तुम्हें दी जाये। एसा बहुत होता है कि बंदा अपने पालनहार से एसी चीज़ की दुआ मांगता है कि अगर वह चीज़ उसे दे दी जाये तो वह बंदे के धर्म की तबाही का कारण बनती है। तो बंदे को इस बात को जानना चाहिये कि अगर रचयिता और सर्वसमर्थ किसी चीज़ को नहीं दे रहा है तो निश्चित रूप से इसमें कोई हिकमत है और जो चीज़ महान ईश्वर हमारे लिए चाहता है वह उससे बहुत बेहतर है जो हम अपने लिए चाह रहे हैं। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे बक़रा की 216वीं आयत में कहता है जिस चीज़ को तुम पसंद नहीं करते हो कभी उसी में तुम्हारी भलाई है और कभी उस चीज़ को पसंद करते हो जिसमें तुम्हारे लिए बुराई है यानी तुम्हारे लिए हानिकारक है और ईश्वर हर चीज़ को जानता है और तुम नहीं जानते हो। 

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फरमाते हैं मोमिन की दुआ परलोक के लिए जमा कर दी जाती है या दुनिया में ही कबूल ली जाती है, या वह बला व मुसीबत उससे दूर कर दी जाती है जो बंदे के भाग्य में लिखी होती है। इस हदीस से यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि अगर कोई दुआ कबूल नहीं हो रही है तो इसका यह मतलब नहीं है कि दुआ करना व्यर्थ है बल्कि यह हो सकता है कि उस दुआ से कोई आने वाली मुसीबल टली हो। इसलिए हदीसों में है कि दुआ बलाओं को टालती है, दुआ मोमिन का हथियार है।

दुआ मोमिन का कितना मज़बूत हथियार है इसके बारे में बहुत कम ही लोग सोचते हैं। दुनिया का कोई भी हथियार हो, उसकी मारक क्षमता  सीमित है परंतु दुआ वह हथियार है जिसकी मारक क्षमता सीमित नहीं बल्कि असीमित है। दुआ रात, दिन, समुद्र और आसमान सबमें बराबर से काम करती है। दुनिया का कोई भी हथियार दुआ की मारक क्षमता को नहीं रोक सकता। जितने भी ईश्वरीय दूत थे सबने दुआ का सहारा लिया था। ईश्वरीय दूतों के बारे में जहां यह मिलता है कि वे बहुत उपासना करते थे वहीं यह भी मिलता है कि वे दुआ भी बहुत करते थे। वास्तव में दुआ उपासना का दूसरा रूप है। दुआ के जरिये इंसान अपने पालनहार से बात करता है। जो इंसान अपने पालनहार से अधिक दुआ करता है, अधिक बात करता है उसकी आस्था मज़बूत होती है और उसके अंदर इस बात की भावना व आस्था पैदा होती है कि उसका सर्वशक्तिमान पालनहार उसके साथ है वह दुनिया की किसी भी मुसीबत में नहीं घबराता। क्योंकि हर कार्य करने में पूर्ण से सक्षम विधाता उसके साथ है और कोई भी मुसीबत नहीं है जिसका निदान वह न कर सकता हो। mm