हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत-३
क़ुरआने मजीद के व्याख्याकारों की दृष्टि में अपने भविष्य में मनुष्य के हस्तक्षेप के संबंध में शबे क़द्र के महत्व का इन्कार नहीं किया जा सकता।
इसी कारण इस रात में जाग कर उपासनाएं करने, दुआ मांगने और ईश्वर से क्षमा मांगने पर बहुत अधिक बल दिया गया है। इतिहास में है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से कहा कि प्रभुवर! मैं तेरा सामिप्य चाहता हूं, ईश्वर न कहा कि मेरा सामिप्य उसके लिए है जो शबे क़द्र में रात भर जागता रहे। उन्होंने कहाः प्रभुवर! मैं तेरी दया का इच्छुक हूं। ईश्वर ने उत्तर दियाः मेरी दया उसके लिए है जो शबे क़द्र में असहायों पर दया करे। उन्होंने कहाः प्रभुवर! मैं स्वर्ग व नरक के बीच बने हुए सिरात नामक पुल से गुज़रने की अनुमति चाहता हूं। उत्तर आयाः यह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दान करे। हज़रत मूसा ने कहाः प्रभुवर! मैं स्वर्ग के फल चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः वो उसके लिए है जो शबे क़द्र में मेरा गुणगान करे। उन्होंने कहाः प्रभुवर! मैं तेरी प्रसन्नता का इच्छुक हूं। ईश्वर ने उत्तर दियाः मेरी प्रसन्नता उसे मिलेगी जो शबे क़द्र में दो रकअत नमाज़ पढ़े।
हम रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दिनों के निकट हो रहे हैं। इस महीने में ऐसी बेजोड़ विशेषताएं हैं जो मनुष्य को आत्म निर्माण का अवसर प्रदान करती हैं और उसे व्यस्त, धोखा देने वाले व भौतिक जीवन से बाहर निकालती हैं। हदीसों में कहा गया है कि इस महीने की अंतिम रातों की पावनता कुछ और ही होती है। वैसे अगर देखा जाए तो रात में ऐसी विशेषताएं हैं जो उसे दिन और ईश्वर की दूसरी निशानियों से भिन्न करती हैं। ईश्वर ने रात को उसके अंधकार के माध्यम से, चीज़ों को छिपाने के लिए एक पर्दे के समान बनाया है और रात में ही हम अपने दिन भर के परिश्रम के बाद आराम करते हैं। इसी तरह ईश्वर ने क़ुरआने मजीद में रात की क़सम खाई है और इस प्रकार लोगों का ध्यान रात के महत्व की और आकृष्ट किया है।
यद्यपि मूल रूप से सभी रातों में इस धरती पर रहने वालों विशेष कर इंसानों के लिए शांति व अनेक हित हैं लेकिन क़ुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम व उनके परिजनों की हदीसों के अनुसार शबे क़द्र जैसी कुछ रातों की विभूतियां व हित अधिक हैं। शबे क़द्र, पूरे साल की सबसे अच्छी रातों में से एक है क्योंकि इस रात बड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हैं और आगे भी घटती रहेंगी। रमज़ान के पवित्र महीने का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इसकी एक रात में क़ुरआने मजीद नाज़िल हुआ है। इस घटना की विभूति इतनी व्यापक है कि उसने पूरे मानव जीवन को प्रभावित कर रखा है और उसमें इतनी क्षमता है कि वह अंधकार से मनुष्य की ओर मनुष्य का मार्गदर्शन कर सके। शबे क़द्र इस बात का कारण बनी है कि इतिहास एक दूसरे ही रूप में सामने आए और संसार की घटनाएं अलग तरह से घटित हों।
क़ुरआने मजीद, जो ईश्वर का कथन और संसार में सत्य का स्रोत है, एक बड़ी ईश्वरीय अनुकंपा और लोगों के मोक्ष व कल्याण का दस्तावेज़ है। शायद इस महीने में इस महान ईश्वरीय किताब के नाज़िल होने पर कृतज्ञता जताने के लिए ही मुसलमानों से कहा गया है कि वे इस पूरे महीने ईद मनाएं, रोज़े रखें और क़ुरआन पढ़ें। शायद इस तरह उन्हें वह पवित्रता प्राप्त हो जाए जिसकी छाया में उनका पूरा साल सुरक्षित हो जाए।
दूसरे शब्दों में शबे क़द्र में, इंसान के जीवन का सर्वोत्तम क़ानून और उसके मार्गदर्शन का साधन अर्थात क़ुरआने मजीद, सबसे व्यापक आसमानी किताब है, यह पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर नाज़िल हुआ है। क़ुरआने मजीद ईश्वरीय कथन है जो लोगों के मार्गदर्शन और सत्य व असत्य के बीच अंतर स्पष्ट करने के लिए भेजा गया है।
इस महीने में तत्वदर्शी ईश्वर ने पूरे संसार के लिए अपनी दया व कृपा संपूर्ण कर दी और क़ुरआन नामक किताब के माध्यम से सभी के लिए कल्याण का मार्ग स्पष्ट कर दिया। शिष्टाचारिक नियम, जीवन के संस्कार और जो भी बात मनुष्य के सौभाग्य व कल्याण का कारण बनती है क़ुरआने मजीद में बयान कर दी गई है। क़ुरआन की आयतों का बेजोड़ विदित रूप और साथ ही अद्वितीय विषय वस्तु से इस बात का स्पष्ट रूप से पता चल जाता है कि यह ईश्वर का एक अमर चमत्कार है और कोई भी दूसरी किताब क़ुरआने मजीद की तरह इंसान की ज़रूरतों की पूर्ति का मार्ग नहीं दिखा सकती। सूरए साद की 29वीं आयत में कहा गया है।
(हे पैग़म्बर!) यह एक विभूति वाली किताब है जिसे हमने आप पर नाज़िल किया है ताकि लोग इसकी आयतों पर चिंतन करें और बुद्धि वाले इससे उपदेश प्राप्त करें।
क़द्र का अर्थ होता है निर्धारण। ईश्वर शबे क़द्र में जीवन, मौत, रोज़ी, कल्याण और इसी प्रकार के मनुष्य के एक साल के मामलों को निर्धारित करता है। शबे क़द्र में दुआएं पढ़ने की अत्यधिक सिफ़ारिश की गई है। विशेष कर वे दुआए जो आध्यात्मिक विषय वस्तु की दृष्टि से बहुत उच्च हैं और मनुष्य के दिल में अच्छे भविष्य की आशा पैदा करती हैं। इन दुआओं में प्रार्थना करने वाला, ईश्वर के प्रिय बंदों के शब्दों में ईश्वर की सहायता व कृपा की बात सुनता है और अतीत पर पछतावे के साथ ही ईमान के नूर और ईश्वर की कृपा के साथ लोक-परलोक को बेहतर बनाने की आशा उसके पूरे अस्तित्व को अपने घेरे में ले लेती है और वह अपने भविष्य के कार्यक्रमों को तैयार करने में लग जाता है।
इंसान दुआ और ईश्वर से प्रार्थना के माध्यम से अपने भविष्य को संवारने के मार्ग पर चल पड़ता है और इस मार्ग पर उसे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और वह पहले से बदल जाता है। वह अपने लिए निर्धारित मार्ग पर चलने हेतु कभी दुआ का सहारा लेता है तो कभी कर्म का, हालांकि दुआ को भी एक तरह का कर्म ही समझा जाता है। इस आधार पर क़द्र की रातों में दुआ व प्रार्थना, जो एक इच्छित काम है, प्रभाव का स्रोत है और लोगों के भविष्य पर प्रभाव डालती है।
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम रमज़ान के महीने में अपनी संतान से कहा करते थे कि अत्यधिक प्रयास करो क्योंकि इसी महीने में आजीविका निर्धारित होती है, मौत का समय तय होता है और ईश्वर के घर की ज़ियारत के लिए जाने वाले उसके अतिथियों का निर्धारण होता है और इसी महीने में वह रात भी है जिसमें किया गया कर्म एक हज़ार महीनों में किए गए कर्म से बेहतर है।
हुमरान नामक एक व्यक्ति ने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से पूछा कि इस आयत का तात्पर्य क्या है कि शबे क़द्र एक हज़ार रातों से बेहतर है? इमाम ने उसके जवाब में कहाः उस रात में किया गए अच्छे कर्म, ऐसे हज़ार महीनों में किए गए कर्मों से बेहतर हैं जिनमें शबे क़द्र न हो।
इसी संबंध में ईरान के प्रख्यात मुफ़स्सिर अर्थात क़ुरआने मजीद के व्याख्याकार अल्लामा तबातबाई लिखते हैं। शबे क़द्र के हज़ार महीनों से बेहतर होने के बारे में क़ुरआन के व्याख्याकारों का कहना है कि यह श्रेष्ठता, उपासना की दृष्टि से है, क्योंकि क़ुरआने मजीद का सारा बल इस बात पर है कि लोगों को ईश्वर से निकट करे, उस रात इबादत करके जागना, एक हज़ार महीनों की इबादत से बेहतर है।
कुछ हदीसों में इस बात पर बल दिया गया है कि शबे क़द्र रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दस दिनों में से एक और 19वीं, 21वीं और 23वीं रात में से एक रात है। हालांकि हदीसों में शबे क़द्र का निर्धारण नहीं किया गया है लेकिन इसकी कुछ रोचक निशानियां है। जैसा कि किसी इमाम से शबे क़द्र के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब तुम्हें ठंडी हवा लगे तो समझो कि तुमने शबे क़द्र को प्राप्त कर लिया है, अगर शीत ऋतु हो तो तुम्हें ठंड का आभास नहीं होगा और अगर ग्रीष्म ऋतु हो तो तुम्हें गर्मी नहीं लगेगी। यह क़द्र की ठंडी हवा है। दूसरी निशानी यह है कि तुम्हें सुगंध महसूस होगी, यह भी क़द्र की निशानी है।