Oct १०, २०१६ १२:०८ Asia/Kolkata

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के समस्त शिष्टाचारों के वारिस हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम का तरह उनकी भी यही दशा थी कि लोगों को गुमराही में डूबता देखकर बहुत दुखी हो जाते थे। वह नाराज़ नहीं होते थे बल्कि उनकी हमदर्दी की भावना बढ़ जाती थी। सीधे रास्ते से लोगों को भटकते देखकर उनका हृदय पीड़ा से भर जाता था। यही वजह थी कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यह जानते हुए भी कि दुशमन उनकी बात नहीं सुन र रहा है आख़िरी क्षण तक नसीहत करते रहे।

पैग़म्बरे इस्लाम की भी यही हालत थी कि जब वह लोगों को गुमराही में भटकता देखते तो बहुत अधिक दुखी हो जाते थे। अतः सूरए शोअरा की आयत संख्या तीन में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को ढारस देते हुए कहा कि एसा लगता है कि तुम इन लोगों के ईमान न लाने के कारण हताहत हो जाओगे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भी पैग़म्बरी के छायादार वृक्ष का फल थे। वे पैगम्बरे इस्लाम के वारिस और उनके अस्तित्व का एक भाग थे। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन भी है कि हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं।

आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने शत्रुओं की भयानक दुष्टता और उनकी ओर से पानी बंद कर दिए जाने के बावजूद दुशमनों को नसीहत करते दिखाई दिए। यज़ीदी सेना की ओर से जारी शोर शराबे के बीच इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भाषण दिया। एसा भाषण कि जिसका एक एक वाक्य बड़े गहरे और विस्तृत अर्थों का दर्पण है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम चाहते थे कि जो लोग गुमराही में पड़कर यज़ीद का अनुसरण कर रहे हैं और बड़े से बड़ा अपराध करने के लिए आतुर हैं किसी तरह सही मार्ग पर आ जाएं और नरक से बच जाएं लेकिन यह एसे लोग थे जिनके मुक़द्दर में नरक ही लिखा हुआ था और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद करके उन्होंने अपने लिए जहन्नम का रास्ता खोल लिया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूर के दिन यज़ीदी सेना के कमांडर उमर इब्ने सअद से बात की और कहा कि धिक्कार हो तुझ पर हे सअद के बेटे! क्या तू उस ईश्वर से नहीं डरता जिसकी ओर पलट कर तुझे जाना है? तू यह जानते हुए भी कि मैं किसका बेटा हूं मुझसे युद्ध कर रहा है? इन लोगों को छोड़ और मेरे साथ आ जा ताकि ईश्वर का सामिप्य प्राप्त कर सके। यह पैग़म्बरे इस्लाम के सच्चे वारिस की शैली है जो अपने कट्टर शत्रु को भी अति संवेदनशील परिस्थितियों में भी नसीहत करते हैं।

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इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम महान क़ुरआनी शिक्षाओं का व्यवहारिक रूप हैं। उनकी महनता और विशेषताएं एसी थीं कि हर कोई उनका सम्मान करता था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्ञान, ईश्वर के प्रति उनकी श्रद्धा, ईश्वर के बारे में उनके दृष्टिकोण जैसी विशेषताएं एसी हैं कि उनकी गहराई और विस्तार को समझना और बयान करना असंभव है क्योंकि इंसान की सोच उस ऊंचाई तक पहुंचने में अक्षम है। इतिहास में है कि शाम का रहने वाला एक व्यक्ति जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के विरुद्ध मुआविया के दुष्प्रचारों से बहुत अधिक प्रभावित था और इमाम हुसैन का दुशमन बन गया था, मदीना गया। उसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को देखा तो बुरा भला कहने लगा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसे बहुत करुणा भरी नज़र से देखा और कहा कि यदि तुम्हें मेरी मदद की ज़रूरत है तो मैं तुम्हारी मदद के लिए तैयार हूं अगर किसी चीज़ की ज़रूरत है तो मैं तुम्हें दिला देता हूं, यदि चाहते हो कि मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूं तो मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हूं। उस दुस्साहसी व्यक्ति को बड़ी शर्म आई। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जब देखा कि वह लज्जा में डूबा जा रहा है तो कहा कि इतनी आत्मग्लानि की ज़रूरत नहीं है। ईश्वर तुम्हें क्षमा करेगा वह सबसे बड़ा दयावान है। शामी व्यक्ति शर्म में डूबा हुआ वहां से उठकर चला गया लेकिन इस हालत में कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों की श्रद्धा उसके दिल में बैठ चुकी थी।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के स्वभाव में उदारता बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का कारवां कूफ़ा की ओर बढ़ रहा था। यज़ीदी सेना के कमांडर हुर बिन यज़ीद रियाही ने अपने सैनिकों के साथ इमाम हुसैन का रास्ता रोका। हुर को यह ज़िम्मेदारी दी गई थी कि वह इमाम हुसैन के कारवां को  एसे स्थान की ओर ले जाएं जहां पानी न हो। हुर की सेना के पास पानी समाप्त हो गया था और सब प्यासे थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आदेश दिया कि हुर की सेना को यहां तक कि उनके घोड़ों को पानी पिलाया जाए। सबको पानी पिलाया गया। हुर की सेना का एक सिपाही कुछ देर से पहुंचा था और वह इतना प्यासा था कि अपने घोड़े से उतर भी नहीं पा रहा था। इमाम हुसैन ने जब यह देखा तो खुद आगे बढ़े और उसे सवारी से उतारा तथा उसे और उसके सवारी के जानवर को पानी पिलाया। लेकिन जब आशूर का दिन आया तो यज़ीदी सेना ने इमाम हुसैन के छह महीने के बच्चे को भी पानी नहीं दिया और उसे इमाम हुसैन के हाथों पर शहीद कर दिया।

आशूर के दिन भी जब दुशमन अपनी दुष्टता का हर पहलू दिखा चुका था इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उदारता का परिचय दिया। ऐसी उदारता कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की याद ताज़ा हो गई। यज़ीदी सेना के एक सिपाही तमीम बिन क़हतबा ने बताया कि लड़ाई के दौरान वह इमाम हुसैन के सामने आ गया और उसका एक पांव कट गया और वह ज़मीन पर गिर गया। मौत को सिर पर मंडराते देखा तो उसने इमाम हुसैन से जान की अमान चाही। इमाम हुसैन ने उसकी जान बख्श दी और उसके साथियों को मौक़ा दिया कि वह उसे वहां से उठाकर ले जाएं। यह उस समय की बात है कि जब यज़ीदी सेना इमाम हुसैन के साथियों को शहीद कर चुकी थी। उनके कारवां के लोगों पर पानी बंद कर चुकी थी और ख़ैमों में बच्चे प्यास से तड़प रहे थे।

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जब इमाम हुसैन के सारे साथी शहीद हो गए तो अब इमाम हुसैन ने रण के लिए मैदान में जाने का इरादा किया। इस अवसर पर उन्होंने ऊंची आवाज़ में कहा कि क्या कोई है जो पैग़म्बर के घरवालों की रक्षा करे? क्या कोई है जिसे ईश्वर का भय है? इमाम हुसैन की यह आवाज़ बुलंद हुई तो इमाम हुसैन के ख़ैमों के भीतर से रोने की आवाज़ें आने लगीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ख़ैमों के क़रीब जाकर अपनी बहन हज़रत ज़ैनब से कहा कि मेरे छह महीने के पुत्र अली असग़र को लाओ ताकि मैं उससे ख़ुदा हाफ़िज़ी कर लूं। हज़रत ज़ैनब ने कहा कि बच्चा प्यास से तड़प रहा है। शत्रु सेना से आप इस बच्चे के लिए पानी मांगिए। इमाम हुसैन ने बच्चे को हाथों पर उठाया और लेकर मैदान में आए। इमाम हुसैन ने शत्रु सेना से कहा कि इस बच्चे पर रहम करो। क्या तुम नहीं देख रहे हो कि यह प्यास से मुंह खोलता है और बंद कर लेता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि हुरमुला बिन काहिल असदी ने उमरे सअद के इशारे पर तीन भाल का तीर हज़रत अली असग़र के गले का निशाना लेकर चलाया। तीर हज़रत अली असग़र के गले को छेदता हुआ इमाम हुसैन के बाज़ू में चुभ गया। यह दृश्य देखकर इमाम हुसैन की आंखों से आंसू जारी हो गए। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि हे पालनहार तू ही इस क़ौम और मेरे बीच न्याय कर। इन लोगों ने मुझे बुलाया और अब मेरे क़त्ल पर तुले हुए हैं। इमाम हुसैन ने अपने चुल्लू में हज़रत अली असग़र का खून  लिया और उसे आसमान की ओर उछाल दिया और कहा कि मुझ पर पड़ने वाली हर मुसीबत मेरे लिए आसान है क्योंकि अल्लाह देख रहा है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने छह महीने के बच्चे की लाश ख़ैमों के पीछे लेकर ज़मीन खोद कर दफ़ना दी।

आशूर के दिन बहुत बड़ा इम्तेहान देते हुए इमाम हुसैन ने अलैहिस्सलाम हर चीज़ की क़ुरबानी दी और हर क्षण इमाम हुसैन की ज़बान पर शुक्र के वाक्य थे। जब इमाम हुसैन शहीद किए जा रहे थे तब भी उनकी ज़बान पर यही था कि हे पालनहार मैं तेरी प्रसन्नता पर प्रसन्न हूं और तेरे आदेश के सामने नतमस्तक हूं।

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अली असग़र कर्बला का सबसे जगमगाता चेहरा है जो इमाम हुसैन की मज़लूमियत का प्रमाण है। इस बच्चे की शहादत ने साबित कर दिया कि यज़ीद कैसी हैवानियत का प्रतीक है और हर किसी के लिए यह समझना आसान हो गया कि यज़ीद इस्लाम धर्म का शासक नहीं हो सकता। यह शहादत क़यामत तक सत्य और अस्त्य के बीच अंतर को चिन्हित करती रहेगी।

 

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