इस्राईल ने मानवाधिकार के दिल में क्यों गोली मारी?
शीरीन अबू अक़लेह अरब जगत और क्षेत्र की सबसे प्रसिद्ध रिपोर्टर थीं।
उनका जन्म 1971 में बैतुल मुक़द्दस के एक अरब ईसाई परिवार में हुआ था। उन्होंने इसी फ़िलिस्तीनी शहर में स्कूल की पढ़ाई की और उच्च शिक्षा के लिए जॉर्डिन यूनिवर्सिटी में सिविल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने इसे छोड़कर पत्रकारिता में एडमिशन ले लिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे फ़िलिस्तीन लौट गईं और 1997 में अल-जज़ीरा चैनल से जुड़ गईं और 11 मई को अवैध अधिकृत वेस्ट बैंक स्थित जेनिन शरणार्थी कैम्प में इस्राईली सैनिकों के हमले को कवर करने के दौरान इस्राईली सैनिको की गोली का निशाना बनकर शहीद हो गईं।
वे पिछले दो दशक से भी ज़्यादा से फ़िलिस्तीन की पीड़ित जनता की आवाज़ बनी हुई थीं और उनके दर्द और दुखों को दुनिया तक पहुंचाने का काम कर रही थीं। अपने जीवन की रिपोर्ट में उनके शब्द थेः ज़ायोनी शासन के सौनिकों ने जेनिन पर धावा बोल दिया है और एक घर को चारो ओर से घेर लिया है।
फ़िलिस्तीन में कोई गांव, शहर या ऐसा शरणार्थी कैम्प नहीं है, जहां से शीरीन ने रिपोर्टिंग नहीं की हो। इसीलिए कई लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है कि फ़िलिस्तीन का बच्चा-बच्चा उनसे परिचित था। वे हर संवेदनशील अवसर पर घटनास्थल पर मौजूद होती थीं। जैसे कि दूसरे इंतेफ़ाज़े के दौरान, बैतुल मुक़द्दस से रिपोर्टिंग, वेस्ट बैंक में फ़िलिस्तीनियों के घरों पर ज़ायोनी हमलों और हमास और इस्राईल युद्ध को कवर करना शामिल हैं।
शीरीन ने 11 मई को जेनिन में इस्राईली सेना के छापे की वीडियो रिपोर्टिंग करते हुए कहा थाः जेनिन में स्थिति बहुत संवेदनशील है, लेकिन यहां के लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं है। मैं और मेरी टीम यहां चल रही इस्राईली सेना की छापेमार कार्यवाही से पल-पल आप लोगों को अवगत कराते रहेंगे।
11 मई बुधवार को वे हमेशा की तरह काम पर जाने के लिए तैयार हुईं और किसी भी अनजाने ख़तरे से बचने के लिए उन्होंने प्रेस की अपनी जैकिट पहन ली, ताकि झड़प या टकराव की स्थिति में रिपोर्टिंग के दौरान सुरक्षित रह सकें। इस्राईली सैनिक जेनिन में एक फ़िलिस्तीनी नागरिक के घर को घेर चुके थे और लाउडस्पीकर से आत्मसमर्पण के लिए कह रहे थे। अचानक इस्राईली सैन्य दल ने फ़ायरिंग शुरू कर दी और कुछ ही दूरी पर खड़ी रिपोर्टिंग कर रही शीरीन को सीधे निशाना बनाया। गोली उनके चेहरे पर लगी और वह फ़ौरन ज़मीन पर औंधे मुंह गिर पड़ीं। सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे वीडियो में गोलियों की आवाज़ आने के बाद ख़ून से लथपथ हालत में उन्हें ज़मीन पर पड़े देखा जा सकता है। उसी दौरान उनके एक साथी अली समूदी के कांधे पर एक गोली लगी। गोलियों की बौछार के दौरान वहां मौजूद कुछ लोगों ने साहस दिखाते हुए घायलों को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन शीरीन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी और अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उन्हें मुर्दा घोषित कर दिया।
इस ख़बर के फैलते ही पूरे फ़िलिस्तीन में ग़म की लहर दौड़ गई और मीडिया विश्व भर की मीडिया बरादरी ने इस पर गहरे दुख का इज़हार किया। अल-जज़ीरा टीवी चैनल ने चश्मदीद गवाहों के बयानों के आधार पर ज़ायोनी सेना को शीरीन की मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और इसे बिना किसी उकसावे के एक निर्दोष की हत्या क़रार दिया। हालांकि इस्राईली सेना और ज़ायोनी अधिकारियों ने इसकी ज़िम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया और दावा किया कि शीरीन की मौत सशस्त्र फ़िलिस्तीनियों के साथ फ़ायरिंग के आदान-प्रदान के दौरान हुई है, जबकि वहां मौजूद पत्रकारों और अन्य लोगों का कहना था कि इस्राईली सैनिकों के अलावा वहां किसी ने कोई फ़ायरिंग नहीं की। कई न्यूज़ रिपोर्टरों और समाचार एजेंसियों ने भी इसी दावे की पुष्टि की है। फ़िलिस्तीनी पत्रकार अली समूदी का भी कहना है कि अचानक से इस्राईली सैनिकों ने हम पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। उन्होंने बेरहमी से शीरीन की हत्या कर दी, एक गोली मुझे भी लगी।
एक महिला पत्रकार की हत्या तक ही ज़ायोनी सेना की बर्बरता सीमित नहीं रही, बल्कि उनकी शव यात्रा में शामिल लोगों पर इस्राईली सैनिकों ने लाठियां बरसाईं और यहां तक कि शीरीन के जनाज़े का अनादर किया। इस्राईली सैनिकों के हमले में कई लोग घायल हो गए। आख़िरकार शीरीन को बैतुल मुक़द्दस के दाऊद नबी क़ब्रिस्तान में दफ़्न कर दिया गया।
इस्लामी देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन ओआईसी ने भी अल-जज़ीरा की रिपोर्ट शीरीन अबू अक़लेह की दुखद मौत की निंदा की है। ओआईसी ने कहा है कि इस्राईल ने एक बार फिर यह अपराध करके अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और मीडिया की आज़ादी का उल्लंघन किया है। ओआईसी का कहना है कि यह अपराध सच को दबाने की ज़ायोनी शासन की नीति के तहत अंजाम दिया गया है। इस्लामी देशों के संगठन ने इस जघन्य अपराध के लिए ज़ायोनी शासन को ज़िम्मेदार ठहराते हुए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से अपील की है कि इस अपराध के लिए इस्राईल को जवाबदेह ठहराया जाए और पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को सुरक्षा देने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए जाएं।
हिंसा की रिपोर्टिंग करते हुए ख़तरों का सामना करने के सवाल पर एक बार शीरीन ने कहा थाः मौत हमेशा आपसे थोड़ी दूरी पर होती है। मुश्किल समय में मैं अपने डर से बाहर निकलती हूं। मैंने लोगों के क़रीब रहने के लिए पत्रकारिता चुनी थी। ज़मीन पर हालात बदलना संभवतः मेरे लिए आसान नहीं है, लेकिन मैं कम से कम उस आवाज़ को दुनिया तक पहुंचा सकती हूं। वे उन चुनिंदा फ़िलिस्तीनी महिला पत्रकारों में से एक थीं, जो ग्राउंड रिपोर्टिंग करती थीं। ख़ासतौर पर बैतुल मुक़द्दस और वेस्ट बैंक से। उनके कुछ सहयोगी उन्हें फ़िलिस्तीनी युद्ध रिपोर्टर तक बताते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि फ़िलिस्तीनियों के लिए अक़लेह एक पत्रकार से बढ़कर थीं।
इस्राईल, लंबे समय से अवैध अधिकृत इलाक़ों और ग़ज्ज़ा से अल-जज़ीरा की कवरेज की आलोचना करता रहा है, और कई बार ज़ायोनी सैनिकों ने इस चैनल के पत्रकारों और रिपोर्टरों को रिपोर्टिंग से रोका है या उनके काम में रुकावटें डाली हैं। पिछले साल बैतुल मुक़द्दस में विरोध प्रदर्शनों को कवर करने वाले अल-जज़ीरा के एक अन्य रिपोर्टर को हिरासत में ले लिया गया था। अल-जज़ीरा का कहना था कि इस्राईली पुलिस ने रिपोर्टर के साथ मारपीट की थी, जिसकी वजह से उसका हाथ टूट गया था।
पिछले ही साल ग़ज्ज़ा पर हवाई हमलों के दौरान, इस्राईल ने हवाई हमले में उस इमारत को ज़मीनदोज़ कर दिया था, जिसमें अल-जज़ीरा और कई विदेशी न्यूज़ चैनलों के दफ्तर थे। ज़ायोनी सेना के इस अपराध की निंदा करते हुए अल-जज़ीरा के कार्यवाहक महानिदेशक डॉक्टर मुस्तफ़ा स्वेग ने कहा थाः ग़ज्ज़ा स्थित अल-जला टावर पर हमला करना, जिसमें अल-जज़ीरा और दूसरे मीडिया संस्थानों के दफ्तर थे, मानवाधिकारों और सूचना अधिकारों का खुला उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे युद्ध अरपराध माना जाता है। इससे पहले साल 2018 में ग़ज्ज़ा में ज़ायोनी सैनिकों ने एक पत्रकार को गोली मारकर शहीद कर दिया था।
दुर्भाग्यवश ज़ायोनी सैनिकों के हाथों शीरीन अबू अक़लेह की मौत, किसी पहले पत्रकार की मौत नहीं है और न ही यह आख़िरी मौत होगी। प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक़, सन् 2000 से लेकर अब तक 45 पत्रकार, ज़ायोनी सैनिकों के हाथों शहीद हो चुके हैं। हालांकि इस्राईल की बर्बरता का इतिहास इससे कहीं ज़्यादा पुराना है। यहां सबसे हैरत की बात यह है कि मानवाधिकारों और मीडिया की आज़ादी का ढिंढोरा पीटने वाला पश्चिम, अकसर इस्राईल के इन अपराधों पर चुप्पी साध लेता है। अगर अमरीका और यूरोप इस्राईल के अपराधों का समर्थन करना बंद कर दें, तो निश्चित रूप से ज़ायोनी इन अपराधों को अंजाम देने का साहस नहीं कर सकेंगे।
फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माईल हनिया ने अक़लेह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि ज़ायोनी शासन की बर्बरता, फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर क़ब्ज़ा, जेनिन शरणार्थी कैम्प पर हमले और मस्जिदुल अक़्सा के अनादर के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध जारी रहेगा और अब तलवार पर ख़ून की जीत का वक़्त आन पहुंचा है।
यहां यह कहना सही होगा कि इस्राईल ने अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिए एक अनुभवी महिला पत्रकार को लक्ष्य बनाकर शहीद किया है। इससे स्पष्ट होता है कि ज़ायोनी शासन सबसे ज़्यादा सच्चाई के दुनिया के सामने आने से डरता है, जिसके लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहता है।
इस बहादुर और साहसी महिला पत्रकार की हत्या, वह भी रिपोर्टिंग करते वक़्त, एक जघन्य अपराध और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और नियमों का खुला उल्लंघन है। यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का मज़ाक़ उड़ाना भी है। अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत पत्रकारों, रिपोर्टों और सहायताकर्मियों को ख़तरनाक जगहों और युद्ध क्षेत्रों में भी सुरक्षा हासिल है और उन्हें किसी भी क़ीमत पर निशाना नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए अब वक़्त आ गया है कि विश्व समुदाय इस्राईल के इन अपराधों का जवाब मांगे और अपराधियों की ज़िम्मेदारी तय करे।
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