Jun २७, २०२२ १६:२९ Asia/Kolkata

दोस्तो विशेष कार्यक्रम लेकर उपस्थित हैं जिसमें अमरीका की ओर से आतंकी संगठनों के समर्थन पर चर्चा की जाएगी।

दोस्तो, ईरान के कैलेण्डर में चौथे महीने की 6 तारीख से लेकर 12 तारीख अर्थात 27 जून से 3 जूलाई को "अमरीकी मानवाधिकार" सप्ताह के रूप में घोषित किया गया है।  शमसी कैलेण्डर में चौथे महीने का नाम तीर है।  तीर वह महीना है जिसके दौरान ईरान के भीतर कई महत्वपूर्ण आतंकवादी घटनाएं घटीं।  इसका कारण अमरीका की वे मानवाधिकार विरोधी कार्यवाहियां हैं जो उसने इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध आतंकवादी संगठनों की सहायता करते हुए करवाईं।  इन आतंकी संगठनों में मुजाहेदीने ख़ल्क़ सर्वोपरि है।

अमरीका ने इस आतंकी संगठन के माध्यम से 27 जून से 3 जूलाई के बीच जो आतंकवादी कार्यवाहियां करवाईं उनमें से एक, 27 जून 1981 को ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति आयतुल्लाह ख़ामेनेई की विफल हत्या का प्रयास, 28 जून 1981 को जम्हूरी इस्लामी पार्टी के मुख्यालय में बम विस्फोट, 28 जून 1987 को सरदश्त में रासायनिक बमबारी, 2 जूलाई 1981 को आयतुल्ला सदूक़ी की हत्या, और 3 जूलाई 1988 को ईरान के यात्री विमान पर हमला करके उसको नष्ट करने जैसी कार्यवाहियों का उल्लेख किया जा सकता है।

तेहरान में जम्हूरी इस्लामी कार्यालय में जो आतंकी कार्यवाही की गई थी उसमें ईरान के 72 वरिष्ठ अधिकारी शहीद हो गए थे जिनमें सबसे प्रमुख आयतुल्लाह शहीद बहिश्ती थे।  वे उस समय ईरान की न्यायपालिका के प्रमुख थे।  उनकी गणना इस्लामी क्रांति के महत्वपूर्ण नेताओं में होती थी।  वे जम्हूरी इस्लामी पार्टी के संस्थापक और उसके महासचिव भी थे। जिस समय मुजाहेदीने ख़ल्क़ ने जम्हूरी इस्लामी पार्टी के कार्यालय में आतंकवादी घटना अंजाम दी उस समय डाक्टर बहिश्ती पार्टी के सदस्यों को संबोधित करते हुए भाषण दे रहे थे।  अपने भाषण में वे फ़्रांस भाग जाने वाले ईरान के पहले राष्ट्रपति बनी सद्र के फरार के बाद की स्थति की समीक्षा कर रहे थे।

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अमरीका और पश्चिमी सरकारों का समर्थन प्राप्त आतंकवादी गुट मुजाहेदीने ख़ल्क़ या एमकेओ, यह सोचता था कि इस्लामी क्रांति से संबन्धित अग्रिम पक्ति के नेताओं की हत्या करके वे इस्लामी शासन व्यवस्था को सरलता से गिरा सकते हैं।  अपनी अन्य आतंकी कार्यवाही में अमरीकी समर्थन हासिल इस आतंकी गुट ने हफ्ते तीर के दिन की गई आतंकी कार्यवाही से एक दिन पहले स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के आन्दोलन की एक बहुत ही महत्वपूर्ण हस्ती आयतुल्लाह ख़ामेनेई को उस समय अपना लक्ष्य बनाया जब वे दक्षिणी तेहरान की एक मस्जिद में भाषण दे रहे थे।  इस आतंकवादी घटना में वे बुरी तरह से घायल हो गए थे।

क्रांति विरोधी एक गुट फ़ुरक़ान ने तत्कालीन संसद सभापति हाशमी रफसंजानी की भी हत्या की कोशिश की थी।  हालांकि अपने काम वे यह गुट सफल नहीं हो सका किंतु इस हमले में वे घायल हो गए थे।  मानवाधिकारों का समर्थन करने का दावा करने वाले पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त आतंकी गुट एमकेओ ने जम्हूरी इस्लामी पार्टी के मुख्यालय में आतंकवादी घटना अंजाम देने के दो महीनों के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में बम विस्फोट करके तत्कालीन राष्ट्रपति मुहम्मद अली रजाई और प्रधानमंत्री मुहम्मद जवाद बाहुनर को शहीद कर डाला।

पश्चिम का समर्थन प्राप्त आतंकी गुट एमकेओ ने शाही सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष के उद्देश्य से 1960 के दशक के मध्य से अपना काम शुरू किया था।  इस संगठन के नेताओं की सतही सोच के कारण उनके उद्देश्य, स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के लक्ष्यों से बिल्कुल अलग थे।  वैचारिक दृष्टि से इस संगठन के दिगभ्रमित होने से पहले ही इमाम ख़ुमैनी ने उसका समर्थन करने से इन्कार कर दिया था।  इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व और जनता के प्रयासों से इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद शाह ही जेलों में बंद इस संगठन के सदस्यों को आज़ाद कर दिया गया था। वे अपने हिसाब से क्रांति में भागीदारी के इच्छुक थे और अपनी बातें पूरी होते न देख उन्होंने क्रांति विरोधी कार्यवाहियां आरंभ कर दीं।

इस आतंकी गुट ने जब यह देख लिया कि जनता के विरोध और अनावश्यक मांगों के कारण यहां पर उनकी दाल गलने वाली नहीं है तो उन्होंने ईरान की इस्लामी शासन व्यवस्था को गिराने के लिए आतंकवादी कार्यवाहियां आरंभ कर दीं।  उन्होंने इमाम ख़ुमैनी के आन्दोलन के बहुत से टाॅप क्लास के लोगों को शहीद कर दिया।  इस आतंकी गुट ने पूरे ईरान में नेताओं, धर्मगुरूओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अधिकारियों और गणमान्य लोगों की हत्याओं के अतिरिक्त आम लोगों की भी हत्याएं करनी शुरू कर दीं।  एमकेओ नामक आतंकी संगठन ने अपनी आतंकवादी कार्यवाहियों में अबतक 17 हज़ार से अधिक लोगों की हत्याएं की हैं।

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संसार के देशों में ईरान एसा देश है जो बहुत बड़े पैमाने पर आतंकवाद की भेंट चढ़ा है।  यह देश बहुत सी आतंकी घटनाओं का साक्षी रहा है।  अमरीका, सोवियत संघ और उसके चेले-चपाटे इस्लामी क्रांति के शत्रु रहे हैं।  उन्होंने इस्लामी क्रांति को नुक़सान पहुंचाने के लिए हर अवसर से लाभ उठाया।  यही वजह है कि क्रांति के विदेशी दुश्मनों और एमकेओ जैसे आतंकी संगठन के बीच मैत्रीपूर्ण संबन्ध बने हुए हैं।  1980 के दशक की आतंकी कार्यवाहियों में अमरीका की भूमिका वह मुद्दा था जिसकी ओर स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने भी संकेत किया है।  15 अक्तूबर 1982 को जुमे की नमाज़ के दौरान किरमानशाह के इमामे जुमा आयतुल्लाह अशरफ़ी इस्फहानी की शहादत के बाद स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इस आतंकी गुट को मुनाफ़िक़ और मुनहरिफ कहकर संबोधित किया।  उन्होंने इन कामों के लिए विश्व की बड़ी शक्तियों को ज़िम्मेदार बताया था।

इस्लामी क्रांति की सफतला के बाद ईरान में की जाने वाली आतंकवादी कार्यवाहियों पर नज़र डालने से पता चलता है कि अमरीका ने इनका मार्गदर्शन किया था।  तेहरान में मौजूद अमरीकी दूतावास से मिलने वाले प्रमाण और दस्तावेज़ बताते हैं कि अमरीकी सरकार यह प्रयास करती थी कि आतंकी गुट एमकेओ से निकट होकर उसकी आतंकी कार्यवाहियों का समर्थन करे और इसी गुट के माध्यम से इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करे।  बाद में सन 1987 में फ़्रांस प्रेस ने इस बात की पुष्टि की थी कि अमरीकी सरकार और आतंकवादी गुट एमकेओ के बीच संपर्क पाया जाता है।  लोमोन्ड समाचारपत्र के 24 अप्रैल 1987 के संस्करण में एक रिपोर्ट में रिचर्ड मर्फी ने अमरीकी कांग्रेस के एक सदस्य के एक सवाल के जवाब में इस बात की पुष्टि की थी कि आतंकी गुट एमकेओ के साथ अमरीका संपर्क में है।  रिचर्ड मर्फी उस समय अमरीकी विदेशमंत्रालय में मध्यपूर्व मामलों के प्रभारी थे।

इस्तांबूल से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र मिल्ली गज़ेट ने 14 अप्रैल 1993 को लिखा था कि मुनाफ़ेक़ीन या एमकेओ ने अपनी आतंकी गतिविधियां जारी रखने के लिए अमरीकी गुप्तचर सेवा सीआईए से बड़े पैमाने पर सहायता हासिल की थी।  अपनी रिपोर्ट मे वह आगे लिखता है कि तुर्की और इराक़ में अपने कार्यालयों तथा सीआईए से सहायता हासिल करके एमकेओ के सदस्य, ईरान के विरुद्ध आतंकी कार्यवाहियां करने के लिए भेजे जाते हैं। 

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अमरीका के लिए इस बात का कोई महत्व ही नहीं है कि आतंकवादी संगठनों के साथ उसके संबन्ध हैं।  अमरीका के लिए मानवाधिकार अब केवल एक हथकण्डा हैं जिसके माध्यम से वह अपने वर्चस्ववादी हितों को पूरी दुनिया में आगे बढ़ाता रहता है।  अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए अमरीका, मानवाधिकरों का प्रयोग करता आ रहा है।  इस बात को ईरानी राष्ट्र ने बहुत अच्छी तरह से महसूस किया है कि अमरीका के आतंकी गुटों के साथ निकट के संबन्ध हैं।

एंटीवार वेबसाइट पर डैनियल लैरिसन अपने लेख में लिखते हैं कि जिस प्रकार के मुनाफ़ेक़ीन या एमकेओ ने सद्दाम के साथ खुलकर सहयोग किया था कि वह उनके देश पर हमला करे ठीक उसी प्रकार से अब वे अमरीका को ईरान के विरुद्ध युद्ध के लिए उकसाने के प्रयास में लगे हुए हैं।  यह आतंकवादी संगठन प्रतिवर्ष अपनी एक बैठक आयोजित करता है जिसमें ईरान में शासन व्यवस्था को बदलने का दुष्प्रचार किया जाता है।  इन बैठकों में अमरीका, कनाडा और यूरोप के बहुत से भूतपूर्व एवं वर्तमान अधिकारी भाग लेकर आतंकी गुट की नेता का आशीर्वाद लेते हैं।  अमरीका के दोनो प्रमुख राजनैतिक दलों के सदस्यों ने परोक्ष या अपरोक्ष रूप में इस आतंकी गुट के नेताओं से भेंटवार्ताएं की हैं।

यह कैसी विडंबना है कि निर्दोषों की हत्याएं और आतंकवाद विरोधियों के विरुद्ध युद्ध करने वाले आतंकवादी गुट के सदस्य, अमरीका और यूरोपीय देशों में शांति के साथ जीवन गुज़ार रहे हैं।  उनको अपने अपराधों की सज़ा का बिल्कुल ही डर नहीं है।  यह आतंकवादी, बहुत ही बेशर्मी से मानवाधिकारों का खुलकर हनन कर रहे हैं।  इन आतंकवादियों को शरण देने वाले अमरीका और अन्य देशों को इन अपराधियों के मानवाधिकारों के हनन का जवाब देना चाहिए।

 

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