ईरान में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों और उनके नवासे इमाम हुसैन की शहादत का ग़म| पार्स टुडे द्वारा चुनी गई ईरानी फ़ोटोग्राफ़रों की कुछ तस्वीरें
(last modified 2024-07-20T11:23:57+00:00 )
Jul २०, २०२४ १६:५३ Asia/Kolkata
  • ईरान में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों और उनके नवासे इमाम हुसैन की शहादत का ग़म| पार्स टुडे द्वारा चुनी गई ईरानी फ़ोटोग्राफ़रों की कुछ तस्वीरें
    ईरान में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों और उनके नवासे इमाम हुसैन की शहादत का ग़म| पार्स टुडे द्वारा चुनी गई ईरानी फ़ोटोग्राफ़रों की कुछ तस्वीरें

पार्स टुडे- इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत का ग़म इन दिनों इस्लामी देश ईरान में साफ़ झलकता है।

सन 61 हिजरी क़मरी में इमाम हुसैन और उनके सहाबी हिजरी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10 तारीख़ को कर्बला में शहीद कर दिए गए। यह तारीख़ जब भी क़रीब आती है तो पूरे ईरान में वातावरण बदल जाता है। मस्जिदों, इमाम बारगाहों, रौज़ों और धार्मिक स्थलों के अलावा घरों की छतों और दीवारों पर काले रंग के परचम और बैनर दिखाई देने लगते हैं। यह इमाम हुसैन का ग़म मनाने की निशानी है।

ईरान में भी यह पुरानी परम्परा है कि जब दुख और ग़म का समय आ जाए और किसी की मृत्यु हो जाए तो काले कपड़े पहने जाते हैं।

इस रिपोर्ट में हम आपको कुछ चुनिंदा तस्वीरें दिखाना चाहते हैं जिसमें आप इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले ग़म की झलक देख सकते हैं,

 

ईरान में हुसैनी शीर ख़्वारों की सभा, यह मुहर्रम में यह कार्यक्रम इमाम हुसैन के क़ाफ़िले के शहीद बच्चों और विशेष रूप से सबसे कम उम्र शहीद हज़रत अली असग़र की याद में मनाया जाता है

इस कार्यक्रम का आयोजन हर साल मुहर्रम महीने के पहले जुमे को किया जाता है। ईरान के अलावा इसका आयोजन भारत, पाकिस्तान, बहरैन, इराक़, सऊदी अरब, तुर्किए और अफ़ग़ानिस्तान में होता है। कार्यक्रम में महिलाएं अपने शिशुओं को ख़ास पोशाक पहनाती हैं।

 

ईरान में मशाल घुमाने के विशेष कार्यक्रम की एक तस्वीर

 

*** मशाल घुमाने का यह कार्यक्रम जिसे फ़ारसी में मशाल गरदानी कहा जाता है मुहर्रम के दिनों में ईरान और इराक़ में आयोजित होता है।

ईरान के यज़्द प्रांत में दसवीं मुहर्रम की शाम नख़्ल गरदानी के कार्यक्रम की तस्वीर

नख़्ल गरदानी इमाम हुसैन की अज़ादारी से संबंधित ईरानियों का पारम्परिक कार्यक्रम है। इस रस्म और इस पारम्परिक कार्यक्रम में, काले कपड़ों में एक ताबूत होता है जिसे विभिन्न रंगीन कपड़ों, शीशों और फूलों से सजाया जाता है और फिर लोगों द्वारा उसे हुसैनिया, इमामबाड़ों और उन स्थानों पर ले जाया जाता है जहां मुहर्रम के शोक कार्यक्रम या मजलिसे होती हैं। नख़्ल गरदानी की रस्म, ईरान के केंद्रीय रेगिस्तान के आसपास के शहरों, क़स्बों और बस्तियों में बहुत ज़्यादा ही लोकप्रिय है।

इमाम हुसैन (अ) की मजलिस में ईरानी बच्चों की उपस्थिति का एक दृश्य
ईरान के शाहरूद शहर में सीनए दौर या घूम घूम कर मातम करने की पारंपरिक रस्म की एक तस्वीर

 

** सीनए दौर, ईरान के "शाहरुद" शहर के लोगों की प्राचीन शोक रीति-रिवाज है। सीनए दौर, एक प्रकार का मातम है जिसमें हर इंसान अपने बाएं हाथ को अपने बग़ल वाले व्यक्ति की कमर में फंसा देता है और दाहिने हाथ से मातम करता है। इस मातम के दौरान जब सीने पर हाथ पड़ता है तो साथ ही पैर को ज़मीन पर मारा जाता है जो शाहरूद की जनता की किसानों की जीवनशैली से हासिल है और आजीविका हासिल करने के लिए ज़मीन पर फावड़ा चलाने का प्रतीक है जो धीरे-धीरे परंपराओं में शामिल हो गया है।

 

ईरान में पारंपरिक "पाइलामाक़" मोमबत्ती रस्म की एक तस्वीर

 

** पाइलामाक़ मोमबत्ती या (मोमबत्ती घुमाना) रस्म, एक प्राचीन रस्म है जो सौ साल पुरानी है। इस रस्म में जो नौ मुहर्रम की शाम को शुरू होती है और शाम तक जारी रहती है, शोक मनाने वाले व्यक्तिगत रूप से या कई लोगों के ग्रुप में शहर की 41 मस्जिदों के सामने 41 मोमबत्तियां जलाते हैं और इन दिनों के ख़ास नौहे पढ़कर इमाम हुसैन और उनके वफ़ादार साथियों का शोक मनाते हैं।

ईरान में ताज़िया ख़ानी की एक तस्वीर

 

** ताज़िया ख़ानी और रंगमंच, एक प्रकार का धार्मिक कार्यक्रम है जो कर्बला की घटना और इमाम हुसैन (अ) और उनके परिजनों और साथियों की शहादत और परिवार की पीड़ाओं को बयान करता है। यह रस्म ईरान में मुहर्रम के पहले दस दिनों में आयोजित की जाती है।

ईरान में शामे ग़रीबां के कार्यक्रम की एक तस्वीर

 

** फ़ारसी भाषा के साहित्य और नौहों व मरसियों में शामे ग़रीबां को आशूरा के दिन का सूर्यास्त के बाद के समय में होने वाले शोक कार्यक्रम को कहा जाता है। इस रस्म के दौरान पढ़े जाने वाले नौहे, हज़रत इमाम हुसैन (अ) के परिवार और कर्बला की घटना से बचे क़ैदियों और बच्चों के दर बदर होने की याद दिलाते हैं, जो आशूरा की शाम को कर्बला के रेगिस्तान में अंधेरे में खुले आसमान के नीचे जलते हुए ख़ैमों की ख़ाक पर बैठे हुए थे। कुछ विशेष रीति-रिवाज, जैसे मोमबत्ती जलाना या अंधेरे में बैठने की रस्म, इस रात को अन्य मुहर्रम रातों से अलग बनाती हैं।

इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में इमाम हुसैन (अ) की शहादत के दिन शामें ग़रीबां का कार्यक्रम
ईरान में अंतर्राष्ट्रीय अली असग़र डे की एक तस्वीर
ईरान के तबरीज़ शहर में हुसैनी अज़ादारों की एक तस्वीर
ईरान के गिलान प्रांत में हुसैनी अज़ादारों की एक तस्वीर
ईरान में हुसैनिया अल मोअल्ला टेलीविजन कार्यक्रम में इमाम हुसैन (अ) की अज़ादार की एक तस्वीर
आशूरा के दिन गीली मिट्टी लगाने की एक तस्वीर

 

** गीली मिट्टी लगाने की रस्म, ईरान के लुरिस्तान प्रांत की सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक विरासतों में से एक है जो इमाम हुसैन (अ) और उनके वफ़ादार साथियों के शोक में इस देश की जनता के गहरे दुख ज़ाहिर करता है जिसे हर साल पूरी शानो शौकत से मनाया जाता है।

मुहर्रम के 10वें दिन और आशूरा के आगमन की वजह से ईरान के लुरिस्तान प्रांत की जनता, "गीली मिट्टी" लगाने की परंपरा को कायम रख हुए है और "चमरूने" नामक वाद्ययंत्र बजाते हुए,इमाम हुसैन और उनके साथियों का शोक मनाते हैं और यह बताने का प्रयास करते हैं कि 1400 साल से अधिक का वक़्त गुज़र जाने के बावजूद भी दुनिया के मुसलमान, इमाम हुसैन और उनके वफ़ादार साथियों के दुख दर्द को भूले नहीं हैं।


ईरान में शामें ग़रीबां कार्यक्रम की एक तस्वीर

 

कीवर्ड्ज़: इमाम हुसैन (अ) कौन हैं?, आशूरा, कर्बला की घटना, इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन, इमाम हुसैन (अ) के लिए ईरानियों की अज़ादारी, शामें ग़रीबां, इन्टरनेश्नल अली असग़र डे

 

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