Nov ११, २०२१ १५:५२ Asia/Kolkata
  • कांग्रेस नेता ने बाबरी मस्जिद की शहादत शर्मनाक क़रार दे दिया, हिन्दु ख़तरे में नहीं हैं, बल्कि ‘फूट डालो और राज करो’ की मानसिकता ख़तरे में है

कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम ने बुधवार को अयोध्या में मंदिर निर्माण के फ़ैसले को लेकर कहा कि केवल दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार कर लिया है इसीलिए यह एक सही फ़ैसला बन गया है, लेकिन यह सही फैसला बिल्कुल नहीं है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या- नेशनहुड इन अवर टाइम्स’ का विमोचन करने के बाद उन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस को शर्मनाक क़रार दिया, जिसने संविधान को कलंकित कर दिया।

चिदंबरम ने कहा कि आज हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं कि जब ‘लिंचिंग’ की प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की तरफ़ से निंदा नहीं की जाती है, एक विज्ञापन को वापस लिया जाता है क्योंकि हिंदू बहू को एक मुस्लिम परिवार में खुशी से रहता हुआ दिखाया गया।

उन्‍होंने अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले को लेकर कहा कि इस फ़ैसले का क़ानूनी आधार बहुत संकीर्ण है, बहुत पतली-सी रेखा है, लेकिन समय बीतने के साथ ही दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार किया, दोनों पक्षों ने स्वीकार किया, इसलिए यह सही फ़ैसला है, ऐसा नहीं है कि यह सही फ़ैसला था, इसलिए दोनों पक्षों ने स्वीकार किया।

उन्होंने कहा कि छह दिसंबर, 1992 को जो हुआ, वह बहुत ही ग़लत था, इसने हमारे संविधान को कलंकित किया, उच्चतम न्यायालय की अवमानना की और दो समुदायों के बीच दूरी पैदा की।

चिदम्बरम ने कहा कि फ़ैसले के बाद चीजें उसी तरह हुईं जिसका अनुमान था. इसके बाद एक साल के भीतर बाबरी विध्वंस के आरोपियों को बरी कर दिया गया, जैसे किसी ने जेसिका को नहीं मारा, वैसे ही किसी ने बाबरी मस्जिद को नहीं गिराया।

उन्होंने कहा कि यह बात हमारा हमेशा पीछा करेगी कि हम गांधी, नेहरू, पटेल और मौलाना आज़ाद के देश में यह कहते हुए शर्मिंदा नहीं हैं कि ‘नो-बडी डिमोलिश्ड बाबरी मस्जिद।

दूसरी ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि देश में हिंदू ख़तरे में नहीं हैं, बल्कि ‘फूट डालो और राज करो’ की मानसिकता ख़तरे में है।

सिंह ने यह भी कहा कि ‘हिंदुत्व’ शब्द का हिंदू धर्म और सनातनी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है।

दिग्विजय सिंह ने कहा कि इस देश के इतिहास में धार्मिक आधार पर मंदिरों का विध्वंस भारत में इस्लाम आने के पहले भी होता रहा है, इसमें दो राय नहीं है कि जो राजा दूसरे राजा के क्षेत्र को जीतता था, तो अपने धर्म को उस राजा के धर्म पर तरजीह देने की कोशिश करता था, अब ऐसा बता दिया जाता है कि मंदिरों की तोड़फोड़ इस्लाम आने के साथ शुरू हुई।

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि राम जन्मभूमि का विवाद कोई नया विवाद नहीं था, लेकिन विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस ने इसे पहले कभी मुद्दा नहीं बनाया था, जब 1984 में वो दो सीटों पर सिमट गए तो इसे मुद्दा बनाने का प्रयास किया।

उन्होंने कहा कि उस समय अटल बिहारी वाजपेयी का गांधीवादी समाजवाद विफल हो गया था, इसने उन्हें कट्टर धार्मिक रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर दिया, आडवाणी की रथयात्रा समाज को तोड़ने वाली यात्रा थी, जहां गए वहां नफरत का बीज बोते चले गए थे।

दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं सनातन धर्म का अनुयायी हूं, हिंदुत्व का हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, सनातनी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है, यह सनातनी परंपराओं के ठीक विपरीत है। उन्होंने दावा किया कि विनायक दामोदर सावरकर कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं थे।

उन्होंने कहा कि कहा जा रहा है कि हिंदू ख़तरे में हैं, अरे जनाब, 500 साल के मुग़लों और मुसलमानों के राज में हिंदू धर्म का कुछ नहीं बिगड़ा, 150 साल के ईसाइयों के शासन में हिंदू का कुछ नहीं बिगड़ा तो अब क्या खतरा है?

सिंह ने कहा, ‘दुख इस बात का है कि हम लोग भी ‘सॉफ्ट’ हिंदुत्व और ‘हार्ड’ हिंदुत्व के चक्कर में पड़ जाते हैं।

उन्होंने कहा कि मैं शाहीन बाग़ की महिलाओं को बधाई देता हूं जिन्होंने अपने अधिकार के लिए अहिंसक आंदोलन चलाया, किसानों को बधाई देता हूं कि वो 11 महीनों से अहिंसक आंदोलन कर रहे हैं, महात्मा गांधी का रास्ता ही इस देश को आगे बढ़ा सकता है। (AK)

 

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