राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा क्या बहुत कुछ बदल देगी?
भारत को विभाजन से बचाने और पुनः एकजुट करने के नारे के साथ जारी भारत जोड़ो यात्रा लगातार आगे बढ़ रही है और राष्ट्रीय विमर्श में इस यात्रा ने अपनी जगह बना ली है।
3570 किलोईटर लंबा यह लांग मार्च कन्याकुमारी से राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरु हुआ है जिसके दौरान कांग्रेस पार्टी पूरे देश को मज़बूत संदेश देने की कोशिश कर रही है। इस यात्रा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को निशाना बनाया जा रहा है।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि हम संविधान की आत्मा की रक्षा की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना था कि मार्च का यह पैग़ाम है कि हम एक पार्टी हैं और हम भारत को एकजुट कर सकते हैं और उसकी मज़हब, नस्त और ज़बान की बुनियाद पर तक़सीम को रोक सकते हैं जिसका प्रचार भारतीय जनता पार्टी कर रही है।
कांग्रेस के एक अन्य नेता जयराम रमेश कहते हैं कि हम लोगों को सुनने जा रहे हैं, उन्हें लेक्चर देने नहीं। लोगों को सुनना अच्छा ख़याल होता है सन 2014 में जब मोदी सरकार बनी तब से कांग्रेस पार्टी की साख को नुक़सान पहुंचा।
कांग्रेस पर लिखने वाली टीकाकार ज़ोया हसन का कहना है कि लांग मार्च राहुल गांधी को राष्ट्रीय नेता के रूप में पुनः पेश करना है और लगता है कि इस समय इस मार्च का ध्यान लोगों को एसे समय में एकजुट करने पर केन्द्रित है जब भारतीय समाज बहुत ज़्यादा बंट गया है, यह एक ताक़तवर पैग़ाम है और हर तरफ़ से इसका स्वागत होना चाहिए।
भारत में लांग मार्च का इतिहास पुराना है। 1983 में विपक्ष के नेता चंद्र शेखर ने छह महीने तक मार्च निकाला जिसके नतीजे में वे जनता के नेता बन गए।
भाजपा के नेता एल के अडवाणी ने 1990 में रथ यात्रा निकाली थी इस यात्रा ने भारत की राजनीति के साथ ही भारत के समाज को भी बदल दिया। समाज में सांप्रदायिकता ने ज़ोर पकड़ा। बाबरी मस्जिद गिरा दी गई और देश के अनेक भागों में दंगे हुए और इसके बाद भी कभी कभी हो जाते हैं।
सन 1930 में महात्मा गांधी ने 380 किलोमीटर का लांग मार्च उस समय के ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ किया था।
भारत में यह चर्चा इस समय बहुत तेज़ है कि राहुल गांधी अपने इस मार्च से कितना बदलाव ला पाएंगे यह आने वाले समय में पता चलेगा।
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