घरों को अवैध रूप से ढहाए जाने की कार्यवाही पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने क्या कहा?
घरों को अवैध रूप से ढहाए जाने से संबंधित एक मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने संबंधित नगर निगम अधिकारियों के ख़िलाफ ‘अनुशासनात्मक कार्रवाई’ का निर्देश देने के साथ याचिकाकर्ता को मुआवज़े के रूप में 1 लाख रुपये देने को कहा है।
याचिकाकर्ता राधा लांगरी ने उज्जैन नगर निगम द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना तोड़े गए अपने घरों के लिए मुआवज़े की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
जस्टिस विवेक रूसिया ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जैसा कि इस अदालत ने बार-बार पाया है कि स्थानीय प्रशासन और स्थानीय निकायों के लिए अब यह फैशन बन गया है कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किए बिना कार्यवाही करके किसी भी घर को ध्वस्त कर दें और इसे अखबार में छपवा दें। ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में भी याचिकाकर्ताओं के परिवार के सदस्यों में से एक के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था और मकान तोड़ने की कार्रवाई कर दी गई।
नगर निगम ने तर्क दिया कि उसकी कार्रवाई उचित थी क्योंकि उक्त मकानों का निर्माण नगर निगम अधिनियम का उल्लंघन करके किया गया था, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने पहले से निर्माण की अनुमति नहीं ली थी।
अदालत ने कहा कि हालांकि किसी को भी उचित अनुमति के बिना घर बनाने का अधिकार नहीं है, लेकिन निर्माण को ढहाए जाने को अंतिम उपाय माना जाना चाहिए। इसके अलावा ऐसी कार्रवाई घर के मालिक को नियमितीकरण प्राप्त करके स्थिति को सुधारने का उचित मौका प्रदान करने के बाद ही की जानी चाहिए।
अदालत ने घरों के स्वामित्व विवरण में विसंगतियों की ओर भी इशारा किया और कहा कि एक मनगढ़ंत पंचनामा तैयार किया गया था।
याचिकाकर्ताओं को सिविल कोर्ट के माध्यम से अपने नुकसान के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करने का विकल्प भी दिया गया है। (AK)
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