भारतः सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड स्कीम को बताया असंवैधानिक, क्या होगा राजनैतिक दलों पर असर?
(last modified Thu, 15 Feb 2024 10:20:26 GMT )
Feb १५, २०२४ १५:५० Asia/Kolkata
  • भारतः सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड स्कीम को बताया असंवैधानिक, क्या होगा राजनैतिक दलों पर असर?

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मुद्दे में फ़ैसला सुनाते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक क़रार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर अपना फ़ैसला सुनाते हुए इस पर रोक लगा दी है अदालत का कहना था कि इलेक्टोरल बांड की प्रक्रिया असंवैधानिक है। अदलत ने इसे रद्द कर दिया।

इलेक्टोरल बांड को लेकर अदालत ने कई बेहद महत्वपूर्ण बातें कहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है।

अदालत का कहना था कि इस व्यवस्था से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीक़ा इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है, इसके और भी कई विकल्प हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने का निर्देश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने यह फ़ैसला सुनाया है।

इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले की जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने तारीफ़ की। उन्हनों ने कहा कि इस फ़ैसले से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मज़बूती मिलेगी।

इस मामले में याचिकाकर्ता अंजिल भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को ऐतिहासिक बताया है।

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित था और इस पर सभी निगाहें इसलिए भी टिकी थीं क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है।

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी, इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था।

इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बॉन्ड जारी कर सकता है।

इन्हें ऐसा कोई भी दाता ख़रीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियाँ उपलब्ध हैं, इलेक्टोरल बॉण्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है।

चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ़ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए केवल वही सियासी दल चंदा हासिल करने के हक़दार हैं जो रजिस्टर्ड हैं और जिन्होंने पिछले संसदीय या विधानसभाओं के चुनाव में कम से कम एक फ़ीसद वोट हासिल किया हो।

सरकार के मुताबिक़, जारी होने के बाद से अब तक, 19 किस्तों में 1.15 अरब डॉलर क़ीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे जा चुके हैं।

कहा जाता है कि इसका सबसे अधिक फ़ायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को हुआ है, 2019 से 2021 के दौरान, बीजेपी को कुल जारी हुए बॉन्ड के दो तिहाई हिस्से दान में मिले, इसकी तुलना में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को महज़ 9 प्रतिशत बॉन्ड ही मिले।

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