डीयू के पूर्व प्रोफ़ेसर को आख़िरकार रिहा कर दिया गया
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा गुरुवार 7 मार्च को नागपुर केंद्रीय कारागार से रिहा कर दिए गए।
रिहा होने के बाद 56 वर्षीय साईबाबा ने अपनी पहली प्रेस वार्ता में कहा कि यह केवल संयोग है कि मैं जीवित जेल से बाहर आया।
इससे पहले उनकी पत्नी ने बुधवार को कहा था कि कथित माओवादी लिंक मामले में हाईकोर्ट द्वारा उनके पति को अंततः बरी किया जाना अपरिहार्य था लेकिन इससे उनके जीवन के दस साल बर्बाद हो गए।
बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने 5 मार्च को उन्हें और पांच अन्य को ‘आतंकवाद’के आरोपों से बरी कर दिया था।
प्रेस वार्ता में साईबाबा ने जो ह्वीलचेयर पर हैं और 90 फीसदी से अधिक शारीरिक अक्षमता का शिकार हैं, कहा कि वह दूसरों की मदद के बिना एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते। उन्होंने कहा कि मैं शौचालय नहीं जा सकता, मैं बिना सहारे नहा नहीं सकता, और मैं इतने लंबे समय तक बिना किसी राहत के जेल में रहा।
साईबाबा ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि जेल में उनकी हालत और भी खराब हो गई है। इससे पहले बुधवार को वसंता ने कहा था कि उनके पति निर्दोष थे और विचारधारा रखना कोई अपराध नहीं है।
बता दें कि साईबाबा के मामले में अदालत ने पिछले साल सितंबर में सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. दो साल में यह दूसरी बार है जब नागपुर पीठ ने साईबाबा और अन्य को बरी किया है।
मार्च 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा और अन्य, जिनमें एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शामिल थे, को दोषी ठहराया। (AK)
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