वहाबियत की वजह से कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद बढ़ रहा है
(last modified Fri, 12 May 2017 12:23:17 GMT )
May १२, २०१७ १७:५३ Asia/Kolkata
  • वहाबियत की वजह से कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद बढ़ रहा है

पिछले लंबे समय से कश्मीर समस्या एक चुनौती के तौर पर भारत के सामने खड़ी है।

पहले यह केंद्र सरकार बनाम राज्य सरकार के अधिकारों की लड़ाई थी लेकिन पिछले कुछ वर्ष से इस समस्या का स्वरूप बदल गया है और अब इस समस्या ने अलगाववाद और आतंकवाद का रूप धारण कर लिया है, इसकी प्रमुख वजह है कश्मीर में वहाबियत की शक्ल में धार्मिक कट्टरवाद का फैलाव।

वैश्विक आतंकवाद के तार किसी न किसी रूप में सऊदी अरब और वहाबियत से ज़रूर जुड़े हुए होंगे, सऊदी अरब और वहाबियत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सबसे पहले हम ये संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर ये वहाबियत है क्या और वहाबियत व् सऊदी अरब का क्या रिश्ता है।


वहाबियत की शुरुआत होती है 18वीं शताब्दी से, जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद अपने एक एजेंट "हेम्फेर" को मध्यपूर्व में इस आदेश के साथ भेजता है कि वो सारे तरीके ढूंढे जायें जिससे मध्यपूर्व के देशों को और उनके प्राकृतिक संसाधनों को हम अपनी गिरफ्त में ले सकें। तो एजेंट "हेम्फेर" ने कहा की सबसे बढ़िया तरीक़ा है "फूट डालो और राज करो"।

आगे बढ़ने से पहले ये समझना ज़रुरी है की उस क्षेत्र के 1740 में क्या हालात थे जिसे हम आज सऊदी अरब के नाम से जानते हैं। उस समय यह एक पठार मात्र था जिसमे "बेदोयूं" नाम की जनजाति के लोग रहते थे। इस जनजाति में एक क़बीला था जिसका सरदार "इब्ने सऊद" था। उस समय तक क़बीले एक दूसरे से लड़ते रहते थे। उस समय एक कट्टरवादी "अदल-अल-वहाब" की मुलाक़ात "इब्ने सऊद" से हुई और "इब्ने सऊद ने सोचा की क्यों न वहाब की इस कट्टरवादी सोच को आधार बना के पूरे पठार पर कब्ज़ा कर लिया जाये।

इब्ने सऊद और अदल-अल-वहाब में उस समय यह समझौता हुआ कि इब्ने सऊद राजनीतिक मसले को देखेगा और अदल-अल-वहाब धार्मिक द्वेष का ज़हर लोगों के मन में घोलेगा और दोनों एक दूसरे के काम में दखल नहीं देंगे। अदल-अल-वहाब कहता था की सन् 950-1000 के बाद से इस्लाम में जो भी विकास हुआ वह ग़लत है और इसे बदलने की ज़रुरत है। इसलिए जो लोग उस समय उनकी बात से सहमत नही थे, उनका अदल-अल-वहाब ने क़त्ल करवा दिया। इस तरीक़े से पूरे पठार पर इब्ने सऊद और अदल-अल-वहाब का कब्ज़ा हो गया।

1801 में वहाबियों ने इराक़ में शिया मुसलमानों के पवित्र शहर करबला में इमाम हुसैन (अ) के रौज़े को धवस्त कर दिया था और हज़ारों शियाओं को मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद तुर्की और इजिप्ट ने आले सऊद और अदल-अल-वहाब को शिकस्त दी लेकिन आख़िरकार 1932 में ब्रिटेन की मदद से इन वहाबियों ने अपना एक देश स्थापित कर लिया जिसे आज हम सऊदी अरब के नाम से जानते हैं। 1932 के बाद से अब तक आतंकवाद को बढ़ावा देने के अलावा सऊदी अरब ने कुछ नही किया।

 
भारत की ख़ुफिया एजेंसियों के अनुसार पिछले कुछ सालों में इसी वहाबियत को भारत में ख़ासकर केरल और कश्मीर में फ़ैलाने के लिए सऊदी अरब द्वारा 1700 करोड़ रुपए से भी अधिक भारत में भेजे गए हैं। भारतीय सेना के रिटायर्ड अधिकारी "अफसर करीम" के अनुसार पाकिस्तान वहाबी प्रचारकों को कश्मीर में भेज रहा है जिससे कश्मीर घाटी के अंदर कट्टरवाद बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। आसिया अंद्राबी जैसी वहाबी कश्मीर घाटी के अंदर शरीया क़ानून लागु करने के सपने देख रही है और युवाओं को हिंसा के रास्ते पर धकेल रही है। वहीं दूसरी तरफ़ ये अपने बेटे को मलेशिया में पढ़ा रही है। जैसे जैसे जम्मू और कश्मीर में वहाबियत फैली है, उसके परिणामस्वरूप वहां अलगाववाद और आतंकवाद भी बढ़ा है।

जम्मू कश्मीर के सूफ़ी कल्चर को इन वहाबी और अलगाववादी लोगों द्वारा पूर्णरूप से तबाह करने की साज़िश रची जा रही है, और वहाबियों की इस मुहिम को सारा पैसा सऊदी अरब से आ रहा है। पिछले कुछ समय में 10000 से ज़्यादा वहाबी मस्जिदें कश्मीर के अंदर बनाई गई हैं जहाँ पर भारत विरोधी ज़हर युवाओं के मन में भरा जाता है।

जो कट्टरपंथी अलगाववाद को फैलाने के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं, असल में वो कश्मीरी हैं ही नहीं बल्कि वो अरब से आए हुए लोग हैं जो कुछ साल पहले कश्मीर में आ के बस गए। कश्मीर के अंदर वहाबियत रूपी कट्टरवाद फ़ैलाने का काम मौलाना मुश्ताक़ वीरी जैसे लोग कर रहे हैं। मौलाना मुश्ताक़ वीरी अक्सर इन वहाबी मस्जिदों में भाषण के ज़रिये समाज के अंदर वहाबियत, आतंकवाद और अलगाववाद का ज़हर घोलता है, इन भाषणों को कश्मीर के अंदर फ़ेसबुक जैसे प्लेटफॉर्मों पर वायरल किया जाता है जहाँ पर कश्मीरी नौजवान इन्हें देखते हैं और इस तरीक़े से अलगाववाद को कश्मीर में फैलाया जा रहा है।

किस तरह मौलाना मुश्ताक़ वीरी समाज में ज़हर घोलता है, यह आपको समझाने के लिए यहाँ मैं एक घटना का ज़िक्र करूंगा, एक वहाबी मस्जिद में दिए गए भाषण में मौलाना मुश्ताक़ वीरी कहता है कि "देखा वहाबियों और सलफ़ियों का कमाल, जब वहाबी और सलफ़ी मैदान में उतरते हैं तो कभी वापस नाम लेने का सोचते ही नहीं, हम इस्लामी हुकूमत कायम कर के रहेंगे, इराक़ में देखो अबुबक्र नाम के वहाबी की हुकूमत, इसी तरह कश्मीर में बहुत जल्द इंशाल्लाह वहाबियत और सलफ़ियत का झंडा गाड़ दिया जायेगा"।

 
इतने बड़े पैमाने पर ऐसे मौलानाओं के ज़रिये वहाबियत का ज़हर कश्मीर में घोला जा रहा है, ऐसे कट्टरपंथी मौलानाओं की वजह से कश्मीर के हालात बहुत तेज़ी से बिगड़ रहे हैं। जब तक भारतीय सरकार द्वारा मौलाना मुश्ताक़ वीरी जैसे वहाबी कट्टरपंथियों को जेल में नहीं डालेगी तब तक कश्मीर के हालात सुधरने वाले नहीं हैं। 
अब सवाल यह उठता है कि किस तरीक़े से कश्मीर में फैलाये जा रहे इस धार्मिक कट्टरवाद से निपटा जाये? यह समस्या सिर्फ सैन्य ताक़त से नहीं सुलझ सकती है, बल्कि सैन्य ताक़त व बलप्रयोग साथ साथ संवाद स्थापित करने की भी ज़रुरत है।

अब अगला सवाल यह उठता है कि संवाद किससे किया जाए और क्या उस संवाद का स्वरूप हो। कश्मीर में आज भी 60 से 70 प्रतिशत लोग सूफ़ी धर्म को मानते हैं बाकि 30 से 40 प्रतिशत को कट्टरवाद की तरफ़ मोड़ दिया गया है, अगर सरकार द्वारा सुरक्षा सहित बड़े सूफ़ी मौलानाओं को कश्मीर घाटी में भेजा जाए तो वो कश्मीरी युवाओं से संवाद स्थापित कर के उन्हें सही रास्ते पर ला सकते हैं। अगर धार्मिक कट्टरवाद को जड़ से उखाड़ना है तो वो सैन्य ताकत और संवाद के मिश्रण से ही सम्भव है।

पुलित्ज़र सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर घाटी की 80 लाख की जनसँख्या में से 15 से 20 लाख वहाबियत के जाल में फंस चुके हैं। वहाबियत को भारत में फ़ैलाने के लिए सऊदी अरब की मदद जमात-ए-इस्लामी, देवबंदी, तबलीग़ी जमात जैसे संगठन और ज़ाकिर नाइक जैसे लोग कर रहे हैं।

 
कश्मीर घाटी के सूफ़ी लोग इस वहाबियत के ख़िलाफ़ लड़ना चाहते हैं लेकिन आतंकवादियों से डर के चुप बैठे हैं, अगर सूफ़ी लोगों की मदद केंद्र और राज्य सरकार द्वारा की जाये तो वहाबियत के ख़िलाफ़ एक व्यापक अभियान खुद सूफ़ी कश्मीरियों द्वारा शुरू किया जा सकता है। हमे यह भी समझना चाहिए कि यह अलगाववाद, आतंकवाद और वहाबियत की समस्या जम्मू कश्मीर राज्य के सिर्फ एक भाग "कश्मीर घाटी" के 15 लाख लोगों में है, जम्मू कश्मीर के अन्य हिस्सों के लोग जैसे जम्मू के हिन्दू, लदाख के बौद्ध, कश्मीर के सूफ़ी मुस्लिम और कारगिल के शिया मुस्लिम इस वहाबियत, आतंकवाद और अलगाववाद का जल्द से जल्द ख़ात्मा चाहते हैं और जम्मू कश्मीर में शांति की कामना करते हैं।

 

(लेखकः अभिमन्यु_कोहाड़)

(नोटः लेखक के निजी विचार से पार्स टूडे का सहमत होना ज़रूरी नहीं।)

 

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