“भारत की आत्मा ख़तरे में है”, 300 से अधिक मशहूर भारतीय हस्तियां सीएए के ख़िलाफ़ खुलकर आईं सामने
भारतीय सनीमा जगत के प्रसिद्ध अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, फिल्म निर्माता मीरा नायर, गायक टीएम कृष्णा, लेखक अमिताव घोष, इतिहासकार रोमिला थापर समेत 300 से ज़्यादा हस्तियों ने विवादित संशोधित नागरिकता क़ानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का विरोध करने वाले छात्रों और अन्य के साथ एकजुटता प्रकट की है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत की 300 से अधिक हस्तियों ने एक बयान जारी करके कहा है कि, ‘हम सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले और बोलने वालों के साथ खड़े हैं। संविधान के बहुलवाद और विविध समाज के वादे के साथ भारतीय संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए उनके सामूहिक विरोध को सलाम करते हैं।’ ‘इंडियन कल्चरल फोरम’में 13 जनवरी को प्रकाशित हुए बयान में इन हस्तियों ने कहा कि सीएए और एनआरसी भारत के लिए ख़तरा हैं। बयान में आया है कि, ‘हम इस बात से अवगत हैं कि हम हमेशा उस वादे पर खरे नहीं उतरे हैं और हममें से कई लोग अक्सर अन्याय को लेकर चुप रहते हैं, वक़्त का तकाज़ा है कि हम सब अपने सिद्धांत के लिए खड़े हों।’ बयान में कहा गया है कि, मौजूदा सरकार की नीतियां और क़दम धर्मनिरपेक्ष और समावेशी राष्ट्र के सिद्धांत के ख़िलाफ़ हैं। इन नीतियों को लोगों को असहमति जताने का मौक़ा दिए बिना और खुली चर्चा कराए बिना संसद के ज़रिए जल्दबाज़ी में पारित कराया गया है।
300 से अधिक भारत की मशहूर हस्तियों द्वारा जारी किए गए बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में लेखिका अनीता देसाई, किरण देसाई, अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह, जावेद जाफ़री, नंदिता दास, लिलेट दुबे, समाजशास्त्री आशीष नंदी, कार्यकर्ता सोहेल हाशमी और शबनम हाशमी शामिल हैं। बयान के मुताबिक़, ‘भारत की आत्मा ख़तरे में है। हमारे लाखों भारतीयों की जीविका और नागरिकता ख़तरे में है। एनआरसी के तहत, जो कोई भी अपनी वंशावली (जो कई के पास है भी नहीं) साबित करने में नाकाम रहेगा, उसकी नागरिकता जा सकती है।’ बयान में कहा गया है कि एनआरसी में जिसे भी अवैध माना जाएगा, उसमें मुस्लिमों को छोड़कर सभी को सीएए के तहत भारत की नागरिकता दे दी जाएगी। बयान जारी करने वाली हस्तियों ने कहा कि सरकार के घोषित उद्देश्य के विपरीत, सीएए से प्रतीत नहीं होता है इस क़ानून का अर्थ केवल उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को आश्रय देना है। उन्होंने श्रीलंका, चीन और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों को सीएए से बहार रखने पर सवाल किया।
बयान में कहा गया है, ‘क्या ऐसा इसलिए है कि इन देशों में सत्तारूढ़ मुस्लिम नहीं हैं? ऐसा लगता है कि क़ानून का मानना है कि केवल मुस्लिम सरकारें धार्मिक उत्पीड़न की अपराधी हो सकती हैं। इस क्षेत्र में सबसे अधिक उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों, म्यांमार के रोहिंग्या या चीन के उइगरों को बाहर क्यों रखा गया है? यह क़ानून केवल मुस्लिमों को अपराधी मानता है, मुस्लिमों को पीड़ित नहीं मानता है।’ बयान में कहा गया है कि नया क़ानून न केवल सत्ता की ओर से धार्मिक उत्पीड़न को लेकर नहीं है, बल्कि असम, पूर्वोत्तर और कश्मीर में ‘मूल निवासियों की पहचान और आजीविका’के लिए भी ख़तरा है। बयान में कहा गया है, ‘हम उन लोगों के साथ खड़े हैं जो मुस्लिम विरोधी और विभाजनकारी नीतियों का बहादुरी से विरोध करते हैं। हम उन लोगों के साथ खड़े हैं जो लोकतंत्र के लिए खड़े हैं। हम सड़कों पर और सभी प्लेटफार्मों पर आपके साथ रहेंगे। हम एकजुट हैं।’ (RZ)