गालवान घाटी में चीन से निपटने के लिए दो पूर्व कूटनयिकों का अहम सुझाव
पूर्व कूटनयिक के सी सिंह ने चीन के साथ टकराव को मौजूदा एनडीए सरकार की सबसे बड़ी चुनौती मानते हुए कहा कि यह टकराव भारत की चीन के बारे में नीति पर पूरी तरह फिर से विचार करने की मांग करता है।
रणनैतिक मामलों के विशेषज्ञ व पूर्व कूटनयिक जी पार्थासार्थी का कहना है कि गालवान घाटी पर चीन के क़ब्ज़े का दूरगामी भूराजनैतिक असर पड़ेगा और अब हमें लंबे समय तक कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
के सी सिंह का मानना है कि चीन कुछ समय से इस घुसपैठ की सोच रहा था लेकिन लगता है भारत को इसकी भनक नहीं लगी।
पिछले साल अगस्त में चीन ने आर्टिकल-370 के ख़त्म किए जाने का विरोध किया था जो सितंबर में लद्दाख़ की सीमाओं के बारे में अधिसूचना के जारी होने का कारण बना और नेपाल सहित हमारे तीन पड़ोसी नाराज़ हुऐ। हमने आरंभिक चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया।
पूर्व सैन्य कमान्डरों ने गालवान घटना की कर्गिल घुसपैठ से तुलना को नकार दिया, लेकिन के सी सिंह का मानना है कि मौजूदा घटना कर्गिल से भी ज़्यादा ख़तरनाक है।
कर्गिल के विपरीत, जहाँ के घुसपैठियों को अपना फ़ौजी मानने से पाकिस्तान ने मना कर दिया था, गालवान में चीनी फ़ौजी भारी हथियारों के साथ मौजूद हैं।
जी पार्थासार्थी ने गालवान घाटी पर चीन के दावे को धूर्ततापूर्ण बताते हुए कहा कि यह घाटी ब्रिटिश इंडिया का भाग थी और फिर भारत का भाग बनी। हमने वहाँ 1962 में पोस्ट क़ायम की।
जहाँ तक गालवान घाटी का सवाल है मौजूदा स्थिति को राष्ट्र रद्द करेगा। अगर चीन नहीं मानता है तो, हमारी रक्षा फ़ोर्सेज़ को कर्गिल-दो के लिए तय्यार रहना होगा। जी पार्थासार्थी कहते हैं कि हमें चीन की कमज़ोरी ढूंढनी होगी। जहां हम मज़बूत हैं हमें उस बिन्दु के लिए योजना बनानी होगी।
दोनों ही कूटनयिक इस मुद्दे पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वसम्मति बनाने को ज़रूरी बताते हैं। जी पार्थासार्थी का कहना हैः “हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनसे अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करना होगी। वे एशिया में बहुत से देशों को धमका रहे हैं। उनके घमंडी बर्ताव के मद्देनज़र भारत को चीन के व्यवहार की अवैधता के बारे में बताने वालों के साथ हो जाना चाहिए, चाहे वह लद्दाख़ में क्षेत्र पर क़ब्ज़ा हो या वियतनाम में या फ़िलिपीन में।”
जी पार्थासार्थी इस बिन्दु पर बल देते हैं कि कोरोनावायरस के फैलाव के लिए ज़िम्मेदार ठपराए जाने से चीन बहुत चिंतित है। “हमें उन्हें दबाव में लेना चाहिए। वे चूहा, चमगादड़ खाएं और पूरी इंसानियत को ख़तरे में डालें और यह नाटक करें कि उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है।”
के सी सिंह चीन पर आर्थिक दबाव की वकालत करते हुए कहते हैः “अगर व्यापार हाथ से जाने लगे तो चीन ढीला पड़ सकता है, विदेश में बाज़ार प्रभावित हैं और वे अपनी विकास दर ऊंची नहीं रख पा रहे हैं।”
वह इस बात की ओर से सचेत करते हुए कि चीनी, भारतियों के विपरीत जहाँ सरकार सिर्फ़ अगले इलेक्शन के बारे में सोचती है, 10 साल की नहीं बल्कि 100 साल की योजना बनाते हैं, चीन के लिए बिना साख गवाएं पीछे हटने के लिए, पिछला दरवाज़ा खुला रखने पर बल देते हैं।
दोनों ही कूटनयिक प्रोत्साहित करने वाली बातचीत करने पर बल देते हैं। सिंह का कहना है, “बातचीत जारी रहे, लेकिन इस हिसाब किताब के साथ कि विलंब करने और जाड़े के मौसम में हम या चीन अधिक प्रभावित होंगे। चीन को इस बात का समय नहीं देना चाहिए कि वह अपना मोर्चा मज़बूत बना ले, मुझे यक़ीन है कि वह रणनैतिक वर्चस्व के लिए कुछ लोकेशन चाहते हैं।” साभारः द इंडियन एक्सप्रेस
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