भारत की सीमा के निकट चीन की नई योजना से नई दिल्ली में हड़कंप!
भारत चीन विवाद के बीच चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भारत की पूर्वोत्तर सीमा के निकट सिचुआन तिब्बत रेल लाइन बनाने के संकेत दिए हैं। इस रेल लाइन के बनने से भारत की सामरिक चिंताएं बढ़ सकती हैं।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, लद्दाख़ इलाक़े में चीन के साथ तनातनी तो हाल के महीनों में आई है, लेकिन पूर्वोत्तर स्थित अरुणाचल प्रदेश पर तो उसकी निगाहें शुरू से ही रही है। वह अरुणाचल को भारत का हिस्सा मानने से इंकार करता रहा है। इसी वजह से भारतीय प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और दूसरे शीर्ष मंत्रियों और अधिकारियों के अरुणाचल दौरे पर चीन हमेशा आपत्ति जताता रहा है। कुछ साल पहले उसने अरुणाचल प्रदेश के लोगों को स्टैपल वीज़ा जारी किया था। तब इस पर विवाद हुआ था। हाल में अरुणाचल के पांच युवकों का भी चीनी सैनिकों ने अपहरण कर लिया था। कूटनीतिक दबाव के बाद उनको चार दिनों बाद रिहा किया गया था। अब अपनी नई रणनीति के तहत वह इलाक़े में एक नई रेलवे परियोजना पूरा करने की तैयारी में है। इससे अरुणाचल प्रदेश सीमा तक उसकी पहुंच काफ़ी आसान हो जाएगी। चीन की यह परियोजना भारत के लिए ख़तरे की घंटी साबित हो सकती है। हाल में उसने पूर्वोत्तर से लगी सीमा के पास कई सड़क और आधारभूत परियजोनाएं भी शुरू की हैं। इस नई रेलवे परियोजना के अगले साल तक पूरा होने की संभावना है।
रेलवे परियोजना
चीन ने हाल में ही सामरिक रूप से महत्वपूर्ण एक रेलवे ब्रिज का काम पूरा कर लिया है। अरुणाचल में सियांग कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बना 525 मीटर लंबा यह ब्रिज नियंत्रण रेखा से महज 30 किमी दूर है। यह ब्रिज दरअसल 435 किलोमीटर लंबी ल्हासा-निंग्ची (लिंझी) रेलवे परियोजना का हिस्सा है। सामरिक और रणनीतिक रूप से सिचुआन-तिब्बत रेलवे लाइन का निर्माण काफी अहम है। यह रेलवे लाइन दक्षिण-पश्चिमी प्रांत सिचुआन की राजधानी चेंग्दू से शुरू होकर तिब्बत के लिंझी तक जाएगी। लिंझी अरुणाचल प्रदेश की सीमा से एकदम करीब है।
इस परियोजना के पूरा होने के बाद चेंग्दू और ल्हासा के बीच की दूरी तय करने में मौजूदा 48 घंटे की जगह महज 13 घंटे का ही समय लगेगा। इस परियोजना पर 47।8 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च होने का अनुमान है। यह तिब्बत इलाके में चीन की दूसरी अहम रेलवे परियोजना है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में हाल में छपी एक खबर के मुताबिक, इस रूट पर कुल 26 स्टेशन होंगे। इस रूट पर बिजली से चलने वाले इंजन की सहायता से ट्रेनें 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकेंगी। लिंझी को स्थानीय भाषा में निंग्ची भी कहा जाता जाता है। जिस इलाके में उक्त परियोजना का काम चल रहा है वह भौगोलिक रूप से बेहद दुर्गम लेकिन सामरिक रूप से उतना ही अहम है। इलाके में कई जगह इसकी पटरियां समुद्र तल से 15 हजार फीट की ऊंचाई से गुजरेंगी।
सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार यह निर्माण पूरा हो गया तो इसका इस्तेमाल नागरिकों के साथ ही सेना की आवाजाही के लिए भी होगा। यह रेलवे लाइन और ब्रिज अरुणाचल की सीमा के बेहद करीब और समानांतर है। चीन अरुणाचल को तिब्बत का ही दक्षिण हिस्सा मानकर उस पर दावा करता है। वह पहले भी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछा चुका है। दो साल पहले वर्ष 2018 में उसने ल्हासा और निंग्ची के बीच 5।8 अरब अमेरिकी डालर से बने 409 किमी लंबे एक्सप्रेस का उद्घाटन किया था। उसकी वजह से इन दोनों शहरों के बीच आवाजाही करने में अब आठ की जगह पांच घंटे ही लगते हैं।
भारत के लिए ख़तरा
अब उसकी निगाहें रेलवे नेटवर्क को मज़बूत करने की है। विशेषज्ञों का कहना है कि अरुणाचल की सीमा तक आने वाली इस परियोजना से आम लोगों को खास फायदा नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि उस इलाके में आबादी का घनत्व बेहद कम है। इस परियोजना का इस्तेमाल मूल रूप से सैनिकों और सेना के साजो-सामान को अरुणाचल सीमा तक पहुंचाने के लिए किया जाएगा। हालांकि भारत सरकार भी अरुणाचल प्रदेश को रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की योजना पर आगे बढ़ रही है। लेकिन इस परियोजना के तहत रेलवे की पटरियां पासीघाट तक ही पहुंचेंगी जो तिब्बत से लगी सीमा से करीब तीन सौ किमी दूर है। यानी इससे सामरिक रूप से देश को खास फायदा नहीं होगा। दूसरी ओर, चीन की नई परियोजना के तहत पटरियां नियंत्रण रेखा के पास लिंझी तक पहुंच जाएगी। चीन ने वहां एअरपोर्ट भी बना रखा है।
सामरिक विशेषज्ञों ने चीन की इस नई परियोजना पर गहरी चिंता जताते हुए इसे खतरनाक बताया है। एक विशेषज्ञ एसी गाओ कहते हैं, "यह परियोजना चीन के लिए सामरिक तौर पर काफी अहम साबित होगी। चीन पहले से ही अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता रहा है। अब सीमा के एकदम पास तक पहुंचने वाली रेलवे लाइन और दूसरे निर्माण कार्यो के जरिए वह भारत पर दबाव बढ़ाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहा है।” वह कहते हैं कि लद्दाख में हिंसक टकराव के बाद अब चीन की निगाहें पूर्वोत्तर सीमा पर हैं। इसी वजह से वह कभी भूटान के बहाने भारत को घेरने का प्रयास करता है तो कभी सीमा पार चलने वाली आधारभूत परियोजनाओं के जरिए। अब ताजा परियोजना भी उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है। (RZ)