भारत-चीन संबंधों पर एस जयशंकर का बयान ख़तरे की घंटी, टीकाकारों की नज़र में कुछ ताक़तें भारत को चीन के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की कोशिश में ...
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऐसे समय में चीन के साथ भारत के संबंध को पिछले 30-40 साल के दौरान सबसे कठिन हालत में बताया है, कि हिमालयाई क्षेत्र लद्दाख़ में दोनों देशों के बीच सरहद को लेकर महीनों से गतिरोध बना हुआ है।
दोनों देशों के बीच तनाव जून से उस समय बढ़ गए जब चीनी फ़ौजियों के साथ हिंसक टकराव में जिसमें पत्थरों और डंडों का इस्तेमाल शामिल था, 20 भारतीय फ़ौजी मारे गए।
दोनों देश एक दूसरे पर अस्पष्ट सीमा रेखा के उल्लंघन का इल्ज़ाम लगा चुके हैं, जो वास्तविर नियंत्रण रेखा के नाम से जानी जाती है।
बुधवार को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवि इंस्टीट्यूट के वर्चुएल सेशन के दौरान कहाः “आज हम चीन के साथ पिछले 30-40 साल की तुलना में संबंधों के संभवतः सबसे कठिन दौर में है।”
उन्होंने कहा कि दोनों देशों की ओर से सीमा के मुद्दे को हल करने के लिए, लिए जा रहे वक़्त के दौरान यह समझ बनी थी कि वे सीमा पर शांति बनाए रहेंगे क्योंकि दोनों देशों के बीच अनेक समझौतों में दोनों पक्षों से यह मांग है कि वे सरहद पर बड़ी तादाद में फ़ौजी नहीं लाएंगे। अब किसी वजह से, जिसका चीनियों ने हमें पाँच अलग तरह के स्पष्टीकरण दिये हैं, चीनियों ने इसका उल्लंघन किया है।
चीनी, जान बूझकर दसियों हज़ार फ़ौजी पूरी सैन्य तय्यारी के साथ लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ले आए हैं, जिससे संबंधों का बुरी तरह प्रभावित होना स्वाभाविक है।
दोनों देशों के बीच सैन्य व कूटनयिक स्तर की बातचीत के कई चरण हो चुके हैं, लेकिन इससे सीमा पर जारी गतिरोध दूर नहीं हो पाया।
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने मंगलवार को कहा कि मौजूदा सहमति को लागू करने के आधार पर, आगे की बात के लिए विशेष व्यवस्था तय करने के लिए हमें परामर्श करना होगा।
पूर्व भारतीय कूटनयिक फ़ुनचुक स्टॉबदन ने अलजज़ीरा से कहा कि जय शंकर के बयान से पता चलता है कि दोनों देशों के बीच संबंध कितने ख़राब हो चुके हैं और अगर चीन आगे बढ़ना चाहता है तो सीमा मुद्दे को हल होना होगा।
स्टॉबदन ने कहा कि भारतीय विदेश मंत्री यह कहने से कि हालात नार्मल नहीं हैं, जब तक सीमा मुद्दा हल नहीं होता, हालात नार्मल नहीं होंगे।
जेएनयू में चीनी स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर अल्का आचार्या के मुताबिक़, विदेश मंत्री के बयान से साफ़ पता चलता है कि संबंध संकटमय बिन्दु पर पहुंच चुके हैं।
आचार्या का कहना है कि जयशंकर साफ़ तौर पर अपना डर ज़ाहिर कर चुके हैं कि संबंध ऐसे बिन्दु पर पहुंच गए हैं, जिस पर गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है।
अल्का आचार्या का कहना है कि कोशिश जारी है लेकिन हालात बहुत कठिन दिख रहे हैं, कोई हल उस वक़्त सामने आ सकता है जब हम एक दूसरे के रणनैतिक हितों पर सहमत हों।
बीजिंग स्थित सेंटर फ़ॉर चाइना ऐन्ड ग्लोब्लाइज़ेशन में सीनियर रिसर्च फ़ेलो ऐन्डी मॉक ने अलजज़ीरा से कहाः भारत-चीन संबंध के सामने चुनौती है, जिसकी अस्ल वजह वे कोशिशें हैं जिनका लक्ष्य भारत को चीन के ख़िलाफ़ गठजोड़ में चालाकी से इस्तेमाल करना है।
ऐन्डी मॉक आगे कहते हैं कि यह बहुत ही बुरा होगा अगर भारत किसी नई रणनैतिक मुद्रा की लालच में आ गया जिसका न सिर्फ़ भारत पर बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता व ख़ुशहाली पर भी बुरा असर पड़ेगा। भारत चीन के साथ काम करके बहुत कुछ हासिल कर सकता है, उसके ख़िलाफ़ जाकर नहीं।
साभार अलजज़ीरा
(MAQ/N)
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