आज की बातः भारत में कोरोना प्रोटोकॉल का होता उल्लंघन, कौन करेे तो सही और कौन करे तो ग़लत?
(last modified Sat, 16 Jan 2021 14:19:30 GMT )
Jan १६, २०२१ १९:४९ Asia/Kolkata

भारत में कोरोना वायरस का पहला मरीज़ 30 जनवरी 2020 को मिला था। तब चीन के वुहान में पढ़ने वाली केरल की एक मेडिकल स्‍टूडेंट ऊषा राम मनोहर सेमेस्‍टर ख़त्‍म होने पर घर आई थी। गले में ख़राश और सूखी खांसी जैसे लक्षणों की शिकायत के बाद उसे ज़िला अस्‍पताल में भर्ती कराया गया। जब कोरोना कन्‍फर्म हो गया तो उसे त्रिशूर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती किया गया। जहां तीन हफ्ते से ज़्यादा वक्‍त तक उसका इलाज चला। दो बार टेस्‍ट में नेगेटिव आया तो उन्‍हें कोरोना मुक्‍त घोषित कर दिया गया।

भारत में कोरोना का यह पहला मामला था और उसके बाद सरकार ने सतर्कता दिखाई और लोगों से अधिक सावधानी बरतने को कहा। भारत की केन्द्र सरकार ने पहले तो चीन से आने जाने वाली उड़ानों को रद्द कर दिया ताकि किसी हद तक कोरोना को नियंत्रित किया जा सके लेकिन केन्द्र सरकार को ख़बर ही नहीं थी कि इटली से भारत घूमने गये पर्यटकों का दल कोरोना लेकर इधर उधर टहल रहा है। इटली से भारत घूमने गये 26 लोगों के ग्रुप में से 16 में कोरोनावायरस की पुष्टि हुई थी। इन्हें घुमाने वाला ड्राइवर भी वायरस से संक्रमित पाया गया। इटली के 26 पर्यटकों का दल राजस्थान के 6 ज़िलों में 8 दिन तक घूमता रहा और यह पर्यटक 6 होटलों में ठहरे। जैसे ही दुनिया में कोरोना वायरस की खबरें फैलने गली उसके उसके बाद भारत की टूरिज्म इंडस्ट्री में करीब 70 प्रतिशत की गिरावट आ गयी जो सरकार के लिए ख़तरे की घंटी थी।भारत में लगातार कोरोना के केसेज़ बढ़ने के बाद कुछ मेडिकल प्रोटोकोल का एलान किया गया जिसमें शारीरिक दूरी बनाए रखने, अनावश्यक भीड़ एकत्र होने से रोकने, किसी भी हालत में 15-20 से अधिक लोगों के एक स्थान पर जमा होने पर रोक और कार्यालयों में अधिकारियों की टेबलों के बीच दूरियों को दृष्टिगत रखा गया। जहां एक ओर कोविड प्रोटोकोल के पालन पर ज़ोर दिया गया। वहीं दूसरी ओर यह भी देखने में आया कि कोविड और कभी प्रोटोकोल का उल्लंघन मजबूरी नहीं बल्कि लापरवाही के कारण हुआ।

 

अगर कोरोना प्रोटोकोल के उल्लंघन की बात की जाए तो भारत में यह समस्या बहुत बड़े पैमाने पर दिखाई देती है। राजनैतिक दलों के कार्यक्रमों, रैलियों, सभाओं, इसी तरह हड़तालों और आंदोलनों के समय देखने में आता है कि बड़े पैमाने पर कोरोना प्रोटोकोल का उल्लंघन होता है। संगठनों और दलों के स्तर पर होने वाले उल्लंघन के साथ ही निजी तौर पर भी कोरोना प्रोटोकोल के उल्लंघन की घटनाएं लगातार हो रही हैं। भारतीय मीडिया में दो महीना पहले ख़बर आई कि राजधानी दिल्ली में एक ही दिन में 1400 से अधिक चालान कटे। इनमें कोरोना प्रोटोकोल की उल्लंघन की अलग अलग प्रकार की घटनाएं देखी गईं।अहमदाबाद में कई दुकानों और चायख़ानों को कोरोना प्रोटोकोल तोड़ने के कारण बंद किया गया। केरल में पुलिस ने कोरोना प्रोटोकोल के उल्लंघन की घटनाओं से परेशान होकर आम लोगों की मदद से जंकशन कमेटी बनाई जिसका काम यह है कि भीड़ भाड़ वाली जगहों पर नज़र रखे और कोविड प्रोटोकोल का उल्लंघन होता देख पुलिस को तत्काल सूचना दे। जंक्शन कमेटी की शिकायत पर पुलिस ने बहुत सी जगहों पर छापे मारे मगर यह सिलसिला रुका नहीं। बिहार इलेक्शन बहुत महत्वपूर्ण था और यह चुनाव पूरे देश के लिए दिलचस्प बन गया था क्योंकि राजनैतिक रूप से इसका बहुत ज़्यादा महत्व था मगर यह साफ़ देखने में आया कि कोविड प्रोटोकोल का जमकर उल्लंघन हुआ। यही स्थिति हैदराबाद के निकाय चुनावों में देखने में आई। यह चुनाव भी भाजपा के आक्रामक प्रचार के कारण पूरे देश के स्तर पर ध्यान का केन्द्र बना। इस चुनाव में भी बार बार शिकायतें मिलीं कि कोविड प्रोटोकोल को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के लगभग पांच महीने बाद, केन्द्र सरकार ने टीवी और फिल्म इंडस्ट्री को वापस शूटिंग की इजाज़त दे दी। सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने अगस्त के महीने में शूटिंग की अनुमति देते हुए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) की लिस्ट जारी की थी, जिसका शूटिंग के दौरान पालन किया जाना अनिवार्य था लेकिन हाल ही में शूट से लोगों के कोविड पॉज़िटिव होने की खबरों से ऐसा लग रहा है कि सभी शूट पर सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जा रहा है। टीवी कॉमर्शियल (TVC) के सेट पर भी कहानी कुछ ऐसी ही है. छोटे प्रोडक्शन हाउस ने सेट पर आने से पहले क्रू के लिए कोविड टेस्ट कराना अनिवार्य भी नहीं किया है। भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते केसों के बीच, टीवी और फिल्म इंडस्ट्री में सेफ्टी प्रोटोकॉल के उल्लंघन की खबर चिंताजनक है। भारत में रात्रिकालीन कर्फ्यू, आयोजनों एवं विवाह संबंधी समारोह के संबंध में निर्देश जारी किए गए हैं। निर्देशों के तहत बिना लिखित सूचना विवाह समारोह आयोजित करने पर अथवा फ़ेस मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग एवं सेनेटाईजेशन एवं कोविड की गाईड लाईन के पालन न करने तथा विवाह समारोह में 100 से अधिक व्यक्तियों के शामिल होने पर जुर्माने का प्रावधान भी रखा गया लेकिन इस पर भी सरकारें सख़्ती से अमल न करा सकीं। तीन कृषि क़ानून के विरुद्ध किसानों का आंदोलन भी लगातार जारी है और कड़ाके की ठंड की परवाह किए बिना हज़ारों की संख्या में किसान सड़कों पर हैं, कोरोना अभी ख़त्म तो नहीं हुआ और एक जगह इतनी बडी संख्या में किसानों का जमा होना चिंता का विषय है, वैसे किसानों का कहना है कि वह जिन तीन क़ानूनों को लेकर चिंतित हैं और कोरोना काल में भी आंदोलन करने पर मजबूर हैं वह किसानों और किसानी का भविष्य तबाह कर देने वाले क़ानून हैं।  

बहरहाल भारत के प्रसिद्ध टीकाकार विनोट दुआ कहते हैं कि भारत में पहला केस 30 जनवरी को सामने आया जबकि सरकार ने पहला लाकडाउन 25 मार्च को किया, अगर सरकार ने 30 जनवरी से 25 मार्च के बीच के दिनों को बर्बाद न किया होता तो कोरोना पर काफ़ी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता था।  वहीं कुछ टीकाकार यह भी कहते हैं कि मोदी सरकार कोरोना के मामले में बहुत सतर्क रही और उसने कड़ा लाकडाउन तो किया मगर भारत क विभिन्न सेक्टरों की ख़ास परिस्थितियों के कारण लाकडाउन के बड़े चिंताजनक परिणाम सामने आने लगे और सरकार कड़े लाकडाउन में नर्मी पर विचार करने के लिए मजबूर हुई। कोरोना वायरस की महामारी ने दुनिया भर के देशों के सामने बड़ी विचित्र चुनौती खड़ी कर दी है, अगर कड़ा लाकडाउन करें तो अर्थ व्यवस्था चरमराने लगती है और लाकडाउन खोलने पर कोरोना हाहाकार मचा देता है। इन हालात में पूरे समाज को सही ढंग से जागरूक बनाने की ज़रूरत है और जागरूकता फैलाने के लिए जिस बड़े पैमाने पर तैयारियां, संसाधनों और गंभीरता की ज़रूरत है उसका अभाव दिखाई दे रहा है।

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