ईरान के सुन्नी मुसलमानों का एक बड़ा क़ाफ़िला कर्बला के लिए रवाना
(last modified Fri, 09 Sep 2022 04:30:08 GMT )
Sep ०९, २०२२ १०:०० Asia/Kolkata
  • ईरान के सुन्नी मुसलमानों का एक बड़ा क़ाफ़िला कर्बला के लिए रवाना

मुहिब्बीने आले रसूल (स) नामक ईरान के सुन्नी मुसलमानों के एक कारवां पवित्र नगर कर्बला के लिए रवाना हो गया है। इस क़ाफ़िले में पूरे ईरान से सुन्नी मुसलमानों के अभिजात वर्ग से संबंधित कई समूह शामिल है।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, इस समय इराक़ का पवित्र नगर नजफ़ और कर्बला श्रद्धालुओं से भरा हुआ है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्राणप्रिय नवासे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादर साथियों के अरबईन अर्थात चेहलुम के मौक़े पर कर्बला पहुंचने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अरबईन अर्थात शोक के चालीस दिन, मुस्लिम परंपराओं में से एक है। अरबईन पृथ्वी पर सबसे बड़े धार्मिक कार्यक्रमों में से एक है, जिसमें 50 मिलियन लोग इराक़ के पवित्र नगर कर्बला पहुंचते हैं। यह वही शहर है जहां हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने वफ़ादार साथियों के साथ शहीद हुए थे। उस समय के अत्याचारी शासक यज़ीद इब्ने माविया ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नवासे इमाम हुसैन (स) को कर्बला के मैदान में सन् 61 हिजरी शहीद कर दिया था। इस बीच गुरुवार को ईरान के विभिन्न प्रांतों से सुन्नी मुसलमानों के कुलीन वर्ग के समूहों ने अरबईन मार्च में भाग लेने के लिए इराक़ की सीमा की ओर चलना आरंभ कर दिया है।

कर्बला जाने वाले ईरान सुन्नी मुसलमानों का कुलीन वर्ग

ईरानी सुन्नी मुसलमानों के इस क़ाफ़िले में सीस्तान, बलुचिस्तान, ख़ुरासाने रिज़वी, ख़ुरासाने रिज़वी उत्तरी, गुलिस्तान, कुर्दिस्तान और पश्चिमी आज़रबाईजान के सुन्नी मुसलमान शामिल हो रहे हैं। नजफ़े अशरफ़ और कर्बलाए मोअल्ला का दौरा करने के अलावा, काज़मैन का दौरा करना, सुलेमानियाह में सुन्नी विद्वानों से मिलना, जुमे की नमाज़ में भाग लेना और कुफ़ा मस्जिद का दौरा करना ईरानी सुन्नी मुसलमानों कारवां की योजनाओं में से हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, इस सुन्नी कारवां में अहलेबैत के प्रशंसकों का अपने गंतव्य तक पहुंचने और शिया और सुन्नी भाइयों के बीच जुलूस में शामिल होने का उत्साह इस विशाल ईरानी कारवां के आंदोलन में उल्लेखनीय चीज़ों में से एक है। मानवता का उद्धार, शुद्ध मोहम्मदी इस्लाम का दृष्टिकोर्ण है। अरबईन हुसैनी इस्लामी स्कूल के ढांचे में राजनीतिक और नागरिक संस्कारों में से एक है। इस्लाम के दुश्मनों ने हमेशा शिया और सुन्नी शुद्धालुओं को इस महान धार्मिक शोक कार्यक्रम में शामिल होने से रोकने की कोशिश की है, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके। (RZ)

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