प्रतिबंधों के ज़रिए भारत और ईरान के मधुर संबंधों में कड़वाहट पैदा करने की व्हाइट हाउस में बैठे मदारियों की कोशिश, तेहरान और दिल्ली के बीच किस बात को लेकर खड़ा हो गया है विवाद?
एक ओर अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी ईरान पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाकर जहां तेहरान पर लगातार दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं अब उन्होंने दंगों और अराजकता की साज़िश के बाद ईरान विरोधी एक और नीति अपनाई है और वह है इस देश के दूसरे देशों के साथ बने मज़बूत संबंधों में दरार डालना। इस बात में कोई शक नहीं है कि ईरान और भारत प्राचीन काल से एक मित्र देश रहे हैं और दोनों देशों के रिश्ते इतने गहरे हैं कि आग लगाने वालों ने कई बार इन संबंधों में आग लगाने की कोशिश की लेकिन वह हमेशा असफल ही रहे।
ऐसी ख़बरें सामने आई है कि ईरान ने हालिया दिनों में भारत से आयात होने वाले बासमती चावल और चाय पर रोक लगा दी है। जिसके बाद भारत से चाय और बासमती चावल का आयात रोके जाने पर राजनयिक स्तर पर अजीब सी हलचल देखने को मिल रही है। ईरान ऐसा कर सकता है, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। वहीं कुछ भारतीय सरकारी अधिकारी सूत्रों की मानें तो ईरान ने यह क़दम बदले में उठाया है। क्योंकि भारत ने अमेरिकी दबाव के आगे घुटने टेकते हुए ईरान से तेल समेत कुछ फलों जैसे आडू और कीवी के आयात को कम कर रखा है। अधिकारियों की मानें तो उन्हें व्यापारिक और राजनयिक सूत्रों की तरफ़ से यह जानकारी मिली है। लेकिन ईरान का बासमती चावल न लेने का फ़ैसला असाधारण है। जैसे ईरान से भारत को मिलने वाला तेल सस्ता है वैसे ही भारत से ईरान को मिलने वाला चावल काफ़ी सस्ता होता है। विशेषज्ञों की मानें तो यह अमेरिका और यूरोपीय देशों को समझना पड़ेगा कि ईरान को भारत से दूर नहीं किया जा सकता है। इसी साल जून में जब ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लायिान भारत आए गए थे तो उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी। नरेंद्र मोदी जो हर देश के विदेश मंत्री से नहीं मिलते, उन्होंने ख़ासतौर पर ईरान के विदेश मंत्री से मुलाक़ात की थी। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि दोनों देशों के बीच रिश्तों से दोनों देशों को फ़ायदा हुआ था। उन्होंने कहा था कि भारत और ईरान के साथ रिश्तों की वजह से क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्ध शीलता आगे बढ़ी है।
भारत और ईरान मामलों के जानकारों की मानें तो दोनों देश साथ रहकर काफ़ी कुछ हासिल कर सकते हैं। ईरान की ही तरह भारत का ज़ोर हमेशा से अपने पड़ोसियों और दोस्तों के साथ अच्छे और मज़बूत संबंधों पर रहा है, जो कि क्षेत्रीय देशों के हितों के लिए कारगर साबित हो सकता है। ईरान और भारत दोनों इस बात को भलीभांती जानते हैं कि भारत के साथ आपसी संबंध उसके लिए काफी संभावनाओं से भरे हैं। वैसे तो भारत और ईरान के बीच प्राचीन काल से मित्रतापूर्ण संबंध रहे हैं। लेकिन दोनों देशों के बीच 15 मार्च 1950 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। सन् 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था तो दोनों देश एक ही बॉर्डर साझा करते थे। साल 2000 में भारत, रूस और ईरान ने एक समझौता साइन किया था। इस समझौते के तहत भारत को मध्य एशिया और रूस में व्यापार करने का रास्ता मिल सका था। भारत, उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर के ज़रिए रूस तक कार्गो भेज सका। लेकिन साल 2006 में भारत ने ईरान के ख़िलाफ़ इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) में परमाणु कार्यक्रम पर वोट किया था। यहां से दोनों देशों के रिश्ते बदल गए थे। अमेरिका के दबाव में भारत ने तेल के आयात में 40 फ़ीसदी तक कटौती कर दी थी। साथ ही पाकिस्तान के रास्ते आने वाली गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट से भी पैर पीछे खींच लिए थे।
साल 2008 में भारत ने अपना रुख बदल लिया था। अमेरिका के दबाव के आगे न झुकते हुए भारत, संबंधों को पटरी पर लेकर आया। उस समय ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद भारत की यात्रा पर गए थे। भारत ने उनसे एक स्वतंत्र नीति को अपनाने का वादा किया। आज तक भारत उस नीति पर अड़ा हुआ है। जिस समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरान पर चारों तरफ़ से प्रतिबंध लग रहे थे, उस समय कई मुश्किलों के बाद भी भारत ने अपने संबंध ईरान के साथ बरक़रार रखे हैं। साल 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान की यात्रा पर आए थे। इस दौरे पर संपर्क, व्यापार और निवेश के साथ ही साथ ऊर्जा साझेदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया था। दोनों देशों की तरफ से न सिर्फ वीज़ा नीति को बदली गई बल्कि निवेश को भी बढ़ाया गया। इस बीच क़रीब 20 अरब डॉलर का निवेश भारत, ईरान में करने को तैयार है। यह निवेश तेल और गैस, पेट्रोकेमिकल और फर्टिलाइज़र में निवेश किया जाएगा। साथ ही चाबहार बंदरगाह पर भी काम जारी है। भारत की तरफ़ से चाबहार में एल्म्यूनियम से लेकर यूरिया का प्लांट लगाए जाने की तैयारी है जिससे दोनों देशों को ही फ़ायदा पहुंचेगा।
वहीं साल 2018 में जब अमेरिका ने ईरान के साथ साल 2015 में हुई परमाणु संधि को एकपक्षीय और ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से ख़त्म की तो भारत के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया था। भारत पर दबाव था कि वह ईरान से तेल का आयात न करे लेकिन इसके बाद भी नई दिल्ली ने तेल का आयात जारी रखा। भारत की तरफ़ से स्पष्ट कर दिया गया था वह अमेरिका के नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ़ से लगाए गए प्रतिबंधों को मानता है। ईरान, भारत से आयरल और स्टील के अलावा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मशीनरी, परमाणु रिएक्टर्स बॉयलर्स और जानवरों का चारा आयात करता है। कुल मिलाकर दोनों देशों के मज़बूत और पुराने रिश्तों पर हमेशा से अमेरिका की बुरी नज़र रही है। व्हाइट हाउस में बैठे अधिकारियों को ईरान और भारत की दोस्ती हमेशा से आंखों में कांटे की तरह चुभती रही है। यही कारण है कि समय-समय पर वे किसी न किसी बहाने से दोनों मित्र देशों के बीच दरार डालने का प्रयास करते रहे हैं। लेकिन जानकारों की मानें तो भारत और ईरान की दोस्ती की जड़ें इतनी मज़बूत हैं कि उस जड़ को उखाड़ने की कोशिश करने वाला अमेरिका और उसके सहयोगी जितनी गहरी खाई खोदेंगे वह उन्हीं के लिए हानिकारक होगी। क्योंकि जब-जब किसी ने दूसरों के लिए गड्ढा खोदा है वह ख़ुद ही उसी में जा गिरा है। (रविश ज़ैदी. R.Z)
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