Mar ०६, २०२३ १५:३४ Asia/Kolkata

दुनिया भर में अभिव्यक्ति की आज़ादी का राग अलापने वाले पश्चिमी देश आजकल ईरान के एक तराने से डरे-सहमे दिखाई दे रहे हैं।

हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और यह एक ऐसा मुहावरा जो काफ़ी मशहूर है। आजकल यह मुहावरा पश्चिमी देशों पर सच साबित होता दिखाई दे रहा है। कल तक जो देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर दुनिया भर के धर्मों, विशेषकर इस्लाम धर्म का मज़ाक उड़ाने, अपमानजनक कॉर्टून बनाने और पवित्र क़ुरान की प्रतियों को जलाने पर अपनी प्रतिक्रिया में यह कहते हुए दिखाई देते थे कि यह तो अभिव्यक्ति की आज़ादी का मामला है, हमे इसपर कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। वही देश पवित्र क़ुरआन की तिलावत, उसके अनुवाद और अब तो हद यह हो गई है कि एक ईरानी तराने से भी भयभीत दिखाई दे रहे हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक़, प्रसिद्ध ईरानी तराना "सलाम फ़रमान्दे" की गूंज ने ब्रिटिश सरकार को झकझोर कर रख दिया है। मीडिया सूत्रों ने घोषणा की है कि ब्रिटिश शिक्षा मंत्रालय ने लंदन में इस्लामी गणराज्य ईरान से संबंधित एक स्कूल में ईरानी छात्रों द्वारा पढ़े गए लोकप्रिय "सलाम फ़रमान्दे" तराने के एक वीडियो की जांच शुरु कर दी है। फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी ने अवैध ज़ायोनी शासन के सरकारी मीडिया के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ब्रिटिश शिक्षा मंत्रालय का चरमपंथ विरोधी विभाग ईरानी छात्रों द्वारा पढ़े गए लोकप्रिय तराने "सलाम फ़रमान्दे" के वीडियो फुटेज की जांच कर रहा है। समाचारपत्र यरुशलम पोस्ट ने लिखा कि नवंबर 2022 में लंदन के एक स्कूल में ईरानी छात्रों द्वारा पढ़े गए इस तराने के वीडियो की जांच गंभीरता के साथ की जा रही है।

रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल के निरीक्षण के दौरान, निरीक्षकों ने स्कूल के पुस्तकालय में पुस्तकों की समीक्षा की और दावा किया कि वयस्क सामग्री वाली ग़ैर-काल्पनिक पुस्तकें थीं जो स्कूल के छात्रों की उम्र के लिए अनुपयुक्त थीं। ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय का चरमपंथ विरोधी विभाग एक दशक से अधिक समय से इस्लामी गणराज्य ईरान के स्कूलों का निरीक्षण कर रहा है। ब्रिटिश शिक्षा विभाग के चरमपंथी विरोधी विभाग ने आरोप लगाया है कि स्कूल के कर्मचारी शैक्षिक वातावरण में उग्रवाद को बढ़ावा देने वाले तरीक़े से चरमपंथी गतिविधियों, नीतियों और शिक्षा को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को चला रहे हैं। बता दें कि जुलाई 2022 में इसी तरह के एक मामले में, ह्यूस्टन, टेक्सास में ईरानी छात्रों को फ़ार्सी और अंग्रेज़ी में लोकप्रिय तराने "सलाम फ़रमान्दे" को पढ़ते हुए देखा गया था। दूसरी ओर, लेबनान के समाचारपत्र "अल-अख़बार" ने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित किया था जिसमें यह शोध किया गया था कि कैसे प्रसिद्ध ईरानी तराने "सलाम फ़रमान्दे" दुनिया भर में लोकप्रिय हुआ और इसका ऐसा प्रभाव पड़ा कि दुश्मन ताक़तों को चिंता में डाल दिया है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात करने वाले देश केवल उस हद तक इसका समर्थन करते हैं जब तक उनके हित उससे जुड़े होते हैं नहीं तो वे केवल एक तराने के मशहूर होने पर भी डरे और सहमे हुए दिखाई देते हैं। (रविश ज़ैदी R.Z)

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