सही बनो, सही कहो, सही मांगो/ सूरे असरा की 81वीं आयत पर एक नज़र
सूरे असरा की आयत संख्या 81 पर विस्तार से बात करेंगे।
पार्सटुडे- ईश्वर का संदेश लाने वाले अर्थात ईश्वरीय दूत अपने जीवन में हालांकि बहुत से अवसरों पर विदित रूप में विफल दिखाई देते हैं किंतु कुल मिलाकर मानवता, विकास के मार्ग पर अग्रसर रही जिसका मुख्य कारण यही ईश्वरीय दूत थे।
पवित्र क़ुरआन का एक सूरा है असरा। सूरे असरा पवित्र क़ुरआन का 17वां सूरा है। इस सूरे की आयत संख्या 81 में ईश्वर कहता हैः कह दो कि सत्य आ गया और असत्य मिट गया। असत्य तो मिट जाने वाला ही होता है।
यहां पर हम इस आयत का विशलेषण करते हैं। इस आयत में ईश्वर, पैग़म्बर से कहता है कि तुम कह दो कि सत्य आ गया और असत्य चला गया। यही ईश्वर की परंपरा है। ईश्वरीय दूतों का रास्ता भी इसी परंपरा के अन्तर्गत रहा है।
ईश्वरीय परंपरा यह है कि अस्त्य को मिट जाना है। असत्य का अर्थ है खोखला। अर्थात यह आरंभ से ही पराजित हो चुका है। इसीलिए यह संसार में किसी काम को आगे नहीं बढ़ा सकता। आरंभ में बताई गई ईश्वरीय परंपरा के अनुसार इंसान जो भी काम ईश्वर के लिए ईश्वरीय दूतों का अनुसरण करते हुए करता है, वह पूरा होता है क्योंकि सत्य है।
यहां पर हम आपको पानी का उदहारण देते हैं। आप एक गिलास में पानी डालिए। अब उसको ग़ौर से देखिए। पानी में आपको झाग नज़र आएगा। वह झाग पानी के ऊपर कुछ समय के लिए दिखाई देगा। यह झाग हमेशा पानी पर बाक़ी नहीं रहेगा बल्कि समाप्त हो जाएगा जबकि पानी बाक़ी रहेगा। पानी इसलिए बाक़ी रहेगा कि वह सत्य है एक हक़ीक़त है। पानी के ऊपर आने वाला झाग सत्य नहीं है असत्य। क्योंकि वह सत्य नहीं है इसलिए समाप्त हो जाता है।
पवित्र क़ुरआन की नज़र में सच, पानी की तरह है। पानी, जीवन और ताज़गी का स्रोत है। असत्य, झाग की तरह घमंडी, ऊपर रहने वाला और खोखला है जिसकी कोई विशेषता नहीं है। यही कारण है कि कहा गया है असत्य तो मिट जाने वाला होता है। एसे में याद रखना चाहिए कि अगर सच्चे नहीं होगे तो बाक़ी नहीं रहोगे, नष्ट हो जाओगे।
न केवल झूठे लोग बाक़ी नहीं रहते बल्कि झूठी सोच और झूठा काम भी समाप्त हो जाता है। क्या बाक़ी रहना चाहते हो? अगर हां तो सच बोलो और सच्चे रहो। जो आता वह सच होता है और जो जाने वाला है वह झूठ है। इसीलिए आयत कहती है कि सत्य आ गया और असत्य मिट गया।असत्य तो मिट जाने वाला ही होता है।
हम इतिहास में पढ़ते हैं कि ईश्वरीय दूतों का जीवन बहुत ही कठिन संघर्षों में गुज़रा। उनके जीवन में बहुत से उतार-चढाव आए। उनको बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। क्या इन पैग़म्बरों के प्रयास बेकार हो गए? क्या उनका कोई फाएदा नहीं? क्या पैग़म्बर, इतिहास में पराजित हो गए अर्थात उनके प्रयासों का कोई लाभ नहीं हुआ?
जैसाकि बहुत से आम और सादे लोगों के मन में है कि ईश्वरीय दूतों को अपने प्रयासों और संघर्षों का कोई परिणाम नहीं मिला। पूरे इतिहास में अत्याचार और अन्याय ही दिखाई देता है। यह वह सोच है जिसको ईश्वरीय दूतों के विरोधी, लोगों में दिलों में भरना चाहते हैं।
क्या एसा ही है? क्या यह सही है? हमारा मानना है कि एसा नहीं है। इस संदर्भ में दो बाते हैं। ईश्वरीय दूतों या पैग़म्बरों अर्थात आदम से लेकर ख़ातम तक ने कौन से कारनामे अंजाम दिये। कुल मिलाकर उन सबने क्या किया? क्या उन्होंने प्रगति की या फिर वे विफल रहे? एक बात तो यह है जो हमने बताई। दूसरी बात यह है कि अपने-अपने काल में ईश्वरीय दूत सफल रहे या विफल रहे?
पहले के जवाब में हम यह कहेंगे कि ईश्वरीय दूतों को अपने ज़माने में कई प्रकार की समस्याओं का सामना रहा है लेकिन कुल मिलाकर उन्होंने मानवता को विकास पथ पर बनाए रखा। मानवता को विकास पथ पर बनाए रखने का काम ईश्वरीय दूत ही करते रहे जबकि उनको बहुत सी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता था।
अगर हर एक नबी की जीवनी को अलग-अलग देखा जाए तो उस संबन्ध में एक मूल नियम मिलता है। वह नियम यह है कि जिनके पास पर्याप्त मात्रा में धैर्य और ईमान था वे कामयाब रहे।
यह लेख, पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या पर आधारित आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई की किताब, "तरहे कुल्ली अंदीशे इस्लामी दर क़ुरआन" से लिया गया है।
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