May ०९, २०२४ १७:०७ Asia/Kolkata
  • सबसे अधिक उम्मीद पैदा करने वाली पवित्र क़ुरआन की आयत
    सबसे अधिक उम्मीद पैदा करने वाली पवित्र क़ुरआन की आयत

पार्सटुडे- पवित्र नगर क़ुम के धार्मिक शिक्षाकेन्द्र के एक उस्ताद ने सूरे हूद की 114वीं आयत को सबसे अधिक उम्मीद पैदा करने वाली आयत बताया और कहा कि यह आयत बुरे आमाल और गुनाहों के प्रभाव को खत्म करने में नेक कर्मों की भूमिका को बयान करती है।

पूरे मानव इतिहास में उम्मीद और शांति इंसानों की ज़िन्दगी का आधार रही है। अगर उम्मीद न हो तो ज़िन्दगी जारी रखने के लिए इंसान के पास कोई रूचि नहीं होगी। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि उम्मीद हमारी उम्मत व क़ौम के लिए रहमत है और अगर उम्मीद न हो तो कोई मां अपने बच्चे को दूध न पिलाये और कोई बाग़बान पेड़ नहीं लगायेगा। (बेहारुल अन्वार जिल्द 77 पेज 175)

 

एक दिन शिया मुसलमानों के पहले इमाम और पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने लोगों को संबोधित करके फ़रमायाः तुम्हारी नज़र में सबसे ज़्यादा उम्मीद पैदा करने वाली कौन आयत है? हर व्यक्ति ने अपने हिसाब से आयत बताई और कुछ ने कहा कि सूरए निसा की आयत नंबर 48 है जिसमें अल्लाह कहता है «إِنَّ اللَّهَ لَا یَغْفِرُ أَنْ یُشْرَکَ بِهِ وَیَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِکَ لِمَنْ یَشَاءُ»

यानी अल्लाह शिर्क को कफ़ी  माफ़ नहीं करता, इसके अलावा  वह जिसे चाहता है बख़्श देता है।

 

बेशक अल्लाह शिर्क व अनेकेश्वरवाद को माफ़ नहीं करेगा और शिर्क के अलावा जो कुछ भी होगा वह जिसे चाहेगा माफ़ कर देगा। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि सही है मगर जो मैं चाहता हूं वह नहीं है, कुछ लोगों ने कहा कि सूरे निसा की 110वीं आयत है जिसमें अल्लाह कहता है  "وَمَنْ یَعْمَلْ سُوءًا أَوْ یَظْلِمْ نَفْسَهُ ثُمَّ یَسْتَغْفِرِ اللَّهَ یَجِدِ اللَّهَ غَفُورًا رَحِیمًا"

यानी जो कोई ग़लत कार्य करे या अपने आप पर ज़ुल्म करे और उसके बाद अल्लाह से माफ़ी मांगे और तौबा करे तो वह अल्लाह को बहुत माफ़ करने वाला और दयालु पायेगा। इस पर इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ठीक है मगर मैं जो चाहता हूं यह वह नहीं है। इस पर कुछ ने कहा कि सूरए ज़ोमर की 53वीं आयत है जिसमें महान ईश्वर कहता है कि हे पैग़म्बर! कह दीजिये कि हे मेरे वह बंदो जिन्होंने अपने आप पर ज़ुल्म किया अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद न हो बेशक अल्लाह समस्त गुनाहों को माफ़ कर देगा।

 

इस पर इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि ठीक है मगर वह नहीं है जो मैं चाहता हूं। इस पर कुछ लोगों ने पवित्र क़ुरआन की दूसरी आयत पढ़ी मगर इमाम ने क़बूल नहीं किया यहां तक कि ख़ुद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मैंने अपने हबीब रसूले ख़ुदा से सुना है कि आपने फ़रमाया कि सबसे ज़्यादा उम्मीद दिलाने वाली आयत क़ुरआन के सूरए हूद की 114वीं आयत है जिसमें अल्लाह फ़रमाता है कि नमाज़ को दिन के दोनों हिस्सों और रात के आरंभ में पढ़ो क्योंकि अच्छाइयां बुराइयों के प्रभाव को ख़त्म कर देती हैं।

 

इस आयत का सबसे ज़्यादा आशाजनक पहलु स्पष्ट है उसकी वजह यह है कि इससे पहली वाली आयत में अल्लाह फ़रमाता है कि अल्लाह गुनाहों को माफ़ कर देगा मगर यह आयत कहती है कि नेकियां बुराइयों और गुनाहों के प्रभावों को ख़त्म कर देती हैं। मानो इंसान ने कोई पाप नहीं किया है। यह आयत बुराइयों के प्रभाव को ख़त्म करने में नेक कार्यों के असर को बयान करती है। 

 

यह कि नेक अमल गुनाहों के मिट जाने व ख़त्म होने और गुनाहों पर पर्दा पड़ जाने का कारण बनते हैं, इंसान के अस्तित्व में उम्मीद पैदा करते हैं कि इंसान नेक काम अंजाम दे और बुराइयों से परहेज़ करे और सबसे स्पष्ट नेक काम रात-दिन की नमाज़ें हैं जिसकी ओर आयत में इशारा किया गया है। नमाज़ गुनाहों के असर को ख़त्म करने के अलावा शांति और उम्मीद का कारण भी है। MM

स्रोतः मीर एमादी, सैयद अहमद. 1399. सबसे ज़्यादा उम्मीद पैदा करने वाली क़ुरआन की कौन सी आयत है। मेहर न्यूज़ एजेन्सी

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