उचित समय पर लिया जाएगा शहीद फ़ख़रीज़ादे के ख़ून का बदलाः रूहानी
(last modified Mon, 14 Dec 2020 15:35:48 GMT )
Dec १४, २०२० २१:०५ Asia/Kolkata
  • उचित समय पर लिया जाएगा शहीद फ़ख़रीज़ादे के ख़ून का बदलाः रूहानी

राष्ट्रपति हसन रूहानी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि शहीद फ़ख़रीज़े के ख़ून का बदला लेना हमारा अधिकार है और उचित समय पर यह काम अवश्य किया जाएगा।

डाक्टर हसन रूहानी ने सोमवार को तेहरान में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ईरान की सरकार, अत्याचारपूर्ण प्रतिबंधों के विलंबित होने की अनुमति नहीं देगी।

उन्होंने कहा कि अमरीका में नई सरकार के आने से परिस्थितियां परिवर्तित होंगी।  ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि यदि अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति भी अपने पद पर बाक़ी रहते तब भी परिस्थितियां बदलतीं।  उन्होंने कहा कि सरकार ने जेसीपीओए को नष्ट नहीं होने दिया।  हसन रूहानी का कहना था कि डोनाल्ड ट्रम्प का मुख्य उद्देश्य, परमाणु समझौते को नष्ट करना था जो हमने नहीं होने दिया।

रूहानी ने कहा कि परमाणु समझौते को बाक़ी रखना और क्षेत्र की स्थिरता के लिए सहयोग जैसे दोनो ही काम इस्लामी गणतंत्र ईरान के लिए बहुत महत्व रखते हैं।  उन्होंने बताया कि ईरान के विरुद्ध ट्रम्प की विफलता का मुख्य कारण गुट चार धन एक के साथ तेहरान का जारी सहयोग है।  हसन रूहानी ने स्पष्ट किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान दुनिया के सभी देशों विशेषकर चीन और रूस के साथ मधुर संबन्धों का इच्छुक है साथ ही यूरोपीय संघ एवं पड़ोसियों के साथ अच्छे संबन्ध चाहता है।

डाक्टर हसन रूहानी ने कहा कि ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादे को शहीद करने का काम उन्होंने किया जो दुष्ट ट्रम्प के कार्यकाल के अन्तिम दिनों में क्षेत्र में आग लगाना चाहते थे।  उन्होंने इस काम से अवैध ज़ायोनी शासन का लक्ष्य, ट्रम्प के कार्यकाल के अन्तिम समय में मध्यपूर्व को अस्थिर करके यहां पर एक नया युद्ध आरंभ करना था।  ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि शहीद फ़ख़रीज़े के ख़ून का बदला लेना हमारा अधिकार है और उचित समय पर यह काम अवश्य किया जाएगा।

उन्होंने इसी के साथ यह भी कहा कि क्षेत्र की स्थिरता एवं शांति ईरान के लिए विशेष महत्व रखती है।  यही कारण है कि हमने फ़ार्स की खाड़ी में "हुरमुज़ शांति" योजना पेश की है।  इस योजना को पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में पेश करके उसे इराक़ और फ़ार्स की खाड़ी के छह देशों को भेजा गया था।

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