Aug २९, २०२३ १३:४८ Asia/Kolkata

फाइनेंशियल टाइम्स ने जानकार सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि अमेरिकी परमाणु नियम और शर्तों से नाखुश सऊदी अरब परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए चीन, रूस और फ्रांस के प्रस्तावों पर भी विचार कर रहा है।

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान, अमेरिका के साथ वार्ता विफल होने पर चीनी के स्वामित्व वाली कंपनी के साथ सहयोग शुरू करने को तैयार हैं।

इससे पहले, वॉल स्ट्रीट जर्नल ने सऊदी अरब के जानकार अधिकारियों के हवाले से खबर दी थी कि चीन की राष्ट्रीय परमाणु कंपनी ने जिसे "सीएनएनसी" के नाम से जाना जाता है, सऊदी अरब के पूर्वी प्रांत और क़तर और यूएई से मिलने वाली सीमा के पास एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए रियाज़ को एक प्रस्ताव दिया है।

इस मामले में अमेरिका अकेला नहीं है और ज़ायोनी शासन भी जिसने सऊदी अरब के साथ संबंधों का मुद्दा रखा है, रियाज़ सरकार द्वारा इस शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के मामले को परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने की आवश्यकता को जोड़ने के बाद, फिर से संबंधों को समान्य बनाने के मामले को आगे बढ़ाने पर लगा हुआ है।

रियाज़ द्वारा परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने के मामले को ज़ायोनी शासन के साथ जोड़ने के मामले पर इस्राईल के अंदर पहले भी चर्चा हो चुकी है और यह एक विवादास्पद मुद्दा बन गया और इस तरह इस्राईल के भीतर विवादों में एक और विवादास्पद मुद्दा जुड़ गया।

लेकिन जहां तक ​​अमेरिका-सऊदी संबंधों का सवाल है, मौजूद साक्ष्यों से पता चलता है कि यह संबंध दिन प्रतिदिन कमज़ोर होते जा रहे हैं और सऊदी अरब क्षेत्र और दुनिया में नए विकल्प तलाश रहा है।

टेलीग्राफ के मुताबिक, अब 13 साल बाद दुनिया में बदलाव हुए हैं और नए गठबंधन तेजी से बन रहे हैं। तेजी से बढ़ती बहुध्रुवीय दुनिया में, सऊदी अरब अन्य सुरक्षा साझेदारों की तलाश कर रहा है जो कम चुनावी अस्थिरता का सामना करते हैं या जो मानवाधिकार के मुद्दों पर सऊदी अरब के कम आलोचक हैं।

पिछले 15 वर्षों में फ़ार्स की खाड़ी के तेल पर वाशिंगटन की निर्भरता काफ़ी हद तक कम हो गई है और दूसरी ओर, शेल क्रांति ने अमेरिका के घरेलू ऊर्जा उत्पादन को इस तरह बढ़ा दिया है कि आज अमेरिका अपना छह प्रतिशत से भी कम तेल सऊदी अरब से आयात करता है।

इसीलिए यह कहा जा सकता है कि "तेल बनाम सुरक्षा" समीकरण, जिसने दशकों तक सऊदी-अमेरिकी संबंधों को आकार दिया था, अब सवालों के घेरे में है या अब उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।

सऊदी अरब और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव तब चरम पर पहुंच गया जब वाइट हाउस की अपेक्षाओं के बावजूद, सऊदी अधिकारियों ने तेल उत्पादन को कम करने का फैसला कर लिया जो यह समझ रहे थे कि तेल उत्पादन में वृद्धि पर रियाज़ के साथ उनकी सहमति हो गयी है।

इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सऊदी अरब और यूएई का अमेरिका से दूरी बनाने और उभरती शक्तियों के साथ अपने संबंधों और सहयोग को मजबूत करने और ब्रिक्स में शामिल होने का दृष्टिकोण पूरी तरह से यथार्थवादी और वैश्विक परिवर्तनों और विकास के लिए उपयुक्त है और उनके हितों की गैरेंटी देता है। (AK)

 

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