Nov ०५, २०२३ १७:५७ Asia/Kolkata
  • हथियार देने में जितनी तेज़ी करते हैं उतनी जल्दबाज़ी युद्धविराम के लिए क्यों नहीं करते अमेरिका और यूरोपीय देश?

इस समय पूरी दुनिया की नज़र ग़ज़्ज़ा युद्ध पर टिकी हुई है। हर दिन मरने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। सबसे दुखद चीज़ जो इस युद्ध में देखने को मिल रही है वह है मरने वालों में बच्चों और महिलाओं की तादाद। लेकिन सवाल यहां यह उठता है कि आख़िर फ़िलिस्तीनियों के इस नरसंहार के पीछे कौन लोग हैं और उनके क्या हित छिपे हुए हैं?

दुनिया में कहीं भी कोई युद्ध हो उसमें अमेरिका और उसके पिट्ठू यूरोपीय देशों की कोई भूमिका न हो यह हो ही नहीं सकता है। यह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है कि आज दुनिया के किसी भी कोने में कहीं भी अशांति होती है तो उसमें किसी न किसी स्तर पर अमेरिका की भूमिका ज़रूर होती है। यह वही अमेरिका है जो अपने आपको सुपर पॉवर कहलवाता है। एक समय ऐसा भी था कि जब यही अमेरिका स्पेन, ब्रिटेन और फ्रांस का पिट्ठू हुआ करता था। वर्ष 1776 में अमेरिका जब स्वतंत्र हुआ तब शायद ही किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि कभी तीन देशों का ग़ुलाम रहा अमेरिका दुनिया का सबसे ताक़तवर देश बन जाएगा। आज दुनिया में कहीं भी जंग हो अमेरिका ज़रूर अपनी टांग अड़ाता है। हर बार वह शांति का तर्क देता है, लेकिन सच्चाई यह है कि वह दुनिया में सबसे ज़्यादा हथियारों को बेचकर अशांति की आग भी भड़काता है। आतंकवाद के नाम पर अफ़ग़ानिस्तान में 20 वर्षों तक ख़ून की होली भी इसी देश ने खेली है। वहीं इस समय फ़िलिस्तीन के ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल द्वारा किए जाने वाले पाश्विक हमलों में भी उसी की भूमिका है। इसी तरह इराक़, सीरिया, रूस-यूक्रेन, चीन-ताइवान और भारत-पाकिस्तान समेत न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण हैं जब अमेरिका ने बीच में अपनी टांग अड़ाई है। ख़ास बात यह है कि हर बार अमेरिका अपने इस हस्तक्षेप के पीछे शांति का तर्क देता रहा है। इतिहास में दर्ज आंकड़ों की मानें तो अपनी आज़ादी से लेकर अब तक अमेरिका छोटे बड़े देशों में लगभग 400 युद्ध लड़ और लड़वा चुका है। वहीं मानव इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार, जापान के हिरोशीमा-नागासाकी में परमाणु बम गिराने वाला भी यही अमेरिका है।

अमेरिका द्वारा विश्वभर में फैलाई जाने वाली अशांति के बारे में बार-बार यह सवाल उठता है कि आख़िर ऐसा क्यों है कि जब भी किसी देश में युद्ध या अशांति होती है तो अमेरिका तत्काल वहां पहुंच जाता है और यह कि वह युद्ध की आग को शांत करे, तुरंत अपना समर्थन किसी एक पक्ष को देकर उसे हथियार सप्लाई करने लगता है और युद्ध की आग को अधिक भड़का देता है। अब तो उसकी देखा देखी उसके पिट्ठू पश्चिमी देश भी यही करने लगे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध में देखने को मिला। अमेरिका और उसके पिट्ठू पश्चिमी देशों की भूमिका रूस-यूक्रेन के बीच चल रही जंग में भी साफ़ नजर आ रही है। रूस लगातार इस बात को कहता आ रहा है कि अमेरिका किसी भी स्थिति में यूक्रेन में युद्धविराम नहीं चाहता है। वहीं वर्तमान में देखा जाए तो इस समय हमास और इस्राईल के बीच जारी युद्ध में भी अमेरिका और उसके पिट्ठू पश्चिमी देश लगातार युद्धविराम का विरोध कर रहे हैं। एक ओर संयुक्त राष्ट्र संघ समेत दुनिया भर में लोग फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका और कुछ पश्चिमी देश अवैध आतंकी इस्राईली शासन के साथ खड़े हैं और ग़ज़्ज़ा में हो रहे नरसंहार का न केवल समर्थन कर रहे हैं बल्कि तेलअवीव को भर-भरकर हथियार भी दे रहे हैं।

ग़ज़्ज़ा पर अवैध इस्राईली शासन द्वारा लगातार किए जाने वाले पाश्विक हमलों को रुकवाने की कोशिश करने वाले देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को अमेरिका धमकियां भी दे रहा है। स्वयं संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की अपील के बाद तो इस्राईल ऐसा भड़का कि उसने एंटोनियो गुटेरेस के इस्तीफ़े की मांग तक कर डाली। यह बात अब किसी से भी ढकी-छिपी नहीं है कि हमास और अवैध ज़ायोनी शासन के बीच चल रहे युद्ध में अमेरिका खुले तौर पर इस्राईल जैसे अवैध शासन के साथ है। अमेरिका लगातार ईरान-लेबनान और अन्य मुस्लिम देशों को चेता रहा है कि वह किसी भी तरह इस युद्ध में हस्तक्षेप करने के बारे में न सोचें। जानकारों का मानना है कि अमेरिका दुनिया भर के देशों के आंतरिक मामलों में घुसता है और फिर शांति बनाए रखने की अपील करता है, अमेरिका ऐसा क्यों करता है इसकी वजह भी साफ़ है।  इसी साल मार्च महीने में आई स्टॉकहोम इंटररनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में वैश्विक हथियार व्यापार में अमेरिका का वर्चस्व बढ़ा है। ख़ास बात यह है कि अब तक टॉप पर क़ायम है और रूस दूसरे नंबर पर खिसक गया है। रिपोर्ट के मुताबिक़, 2018 से 2022 तक विश्व में निर्यात हुए हथियारों में से 40 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका का था। जो वर्ष 2018 से पहले पांच वर्षों में 33 प्रतिशत था। वहीं रूस का हिस्सा 16 प्रतिशत था जो कभी 22 प्रतिशत हुआ करता था। हथियार बेचने के मामले में तीसरे नंबर पर फ्रांस, चौथे पर चीन और पांचवें पर जर्मनी थे। (RZ)

लेखक- रविश ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार। ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं। पार्स टुडे हिन्दी का इससे समहत होना ज़रूरी नहीं है।        

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