इस्राईल आंतरिक रूप से अपने पतन की ओर बढ़ रहा है, बेनेत
(last modified Sun, 05 Jun 2022 10:12:41 GMT )
Jun ०५, २०२२ १५:४२ Asia/Kolkata
  • इस्राईल आंतरिक रूप से अपने पतन की ओर बढ़ रहा है, बेनेत

इस्राईली प्रधान मंत्री नफ़्ताली बेनेत ने आंतरिक रूप से ज़ायोनी शासन के पतन की चेतावनी दी है।

इस्राईली प्रोपैगंडे के स्तर पर ऐसा ज़ाहिर करता है कि जैसे सबकुछ ठीक ठाक और सामान्य है और उसके लिए अगर कोई चुनौती है तो सिर्फ़ वह ईरान का परमाणु कार्यक्रम है, अगर वह भी उसकी इच्छा के अनुसार हल हो जाए तो फिर उसके सामने कोई गंभीर चुनौती बाक़ी नहीं रहेगी। हालांकि मौजूदा आकंड़े बताते हैं कि इस शासन की असली चुनौती ख़ुद एसके भीतर से है, न कि बाहर से। जहां तक ईरान के परमाणु कार्यक्रम का सवाल है, वह इसे इसलिए सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर पेश करने का प्रयास कर रहा है, ताकि लोगों का ध्यान उसकी आतंरिक चुनौतियों से हट जाए।

दूसरी ओर वह ईरान के मुद्दे को इसलिए सुर्ख़ियों में रखना चाहता है, ताकि फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों को डराकर उन्हें अपने पाले में ला सके और उनके साथ संबंधों को सामान्य बनाने के समझौते कर सके, जो सामान्य स्थिति में संभव नहीं है।

बेनेत की गठबंधन सरकार के लिए पूर्व ज़ायोन प्रधान मंत्री नेतनयाहू गंभीर चुनौती पेश कर रहे हैं। यही वजह है कि अपनी सरकार को बचाने के लिए बेनेत हाथ पैर मार रहे हैं और ऐसी बातें ज़बान पर ला रहे हैं कि अगर यही बातें कोई और कहता तो उस पर यहूदी विरोधी होने का आरोप मढ़ दिया जाता। बेनेत ने कहा हैः हम पहले भी आंतरिक लड़ाईयों की वजह से दो बार बंट चुके हैं और आज फिर से तीसरी बार हम विभाजन के दहाने पर खड़े हैं। हमारी सभी की कड़ी परीक्षा जारी है, लेकिन क्या हम इस्राईल को सुरक्षित रख सकते हैं। यहां दिलचस्प बात यह है कि बेनेत के धुर विरोधी नेतनयाहू का भी कुछ ऐसा ही मानना है।

बेंजामिन नेतनयाहू ने 2017 में यहूदियों के सोकूत समारोह के अवसर पर कहा थाः मैं भरपूर प्रयास करूंगा, ताकि इस्राईल अपनी 100वीं वर्षगांठ मना सके, लेकिन ऐसा होना ज़रूरी नहीं है। इतिहास गवाह है कि यहूदियों का कोई भी शासन 80 साल से ज़्यादा तक नहीं चला है।

इस्राईल के सभी नेताओं, अधिकारियों और यहां तक कि मीडिया में इस चिंता को महसूस किया जा सकता है। इससे पहले हारेट्ज़ के पत्रकार आरी शावीत ने लिखा थाः इस्राईल अपनी अंतिम सांसे ले रहा है। अब यहां जीवन बाक़ी नहीं बचा है, बल्कि सैन फ्रांसिस्को या बर्लिन का रुख़ करना चाहिए। संभव है कि हम एक ऐसे बिंदू पर पहुंच गए हों, जहां से वापसी मुमकिन नहीं है और हमारे पास क़ब्ज़ा ख़त्म करने और अवैध बस्तियों के निर्माण को रोकने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

इस्राईल पिछले कई वर्षों से आंतरिक संकट से जूझ रहा है। इस्राईल की आबादी में कट्टरपंथियों की आबादी ज़्यादा हो गई है, जिसकी वजह से उन पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। इसी वजह से वह हर सरकार को हाइजैक कर लेते हैं और उसे पतन की कगार तक ले जाते हैं। परिणाम स्वरूप, इस्राईलियों में बेचैनी बढ़ रही है और वह भीतर और बाहर से ज़ायोनी शासन को कमज़ोर होते हुए और बिखरते हुए देख रहे हैं।

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