इस्राईली प्रधान मंत्री ने सिर्फ़ अपने पद से ही इस्तीफ़ा नहीं दिया, बल्कि राजनीति छोड़ने की बात भी कह डाली
(last modified Fri, 01 Jul 2022 09:12:06 GMT )
Jul ०१, २०२२ १४:४२ Asia/Kolkata
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अपने पद से इस्तीफ़ा देने वाले इस्राईली प्रधान मंत्री नफ़्ताली बेनेत ने कहा है कि आगामी आम चुनावों में वे उम्मीदवार नहीं होंगे।

इस्राईली संसद नेसेट के भंग होने और उनके भागीदार यायिर लैपिद के सत्ता संभावने के बाद उन्होंने यह टिप्पणी की।

एक साल पहले इस्राईल में लम्बे राजनीतिक गतिरोध के बाद जब बेनेत ने गठबंधन सरकार की बागडोर संभाली थी तो कभी भी यह नहीं सोचा था कि उनकी सरकार एक साल से ज़्यादा नहीं चल पाएगी। बेनेत और लैपिद के बीच सत्ता में भागीदारी का यह समझौता हुआ था कि हर कोई दो साल तक प्रधान मंत्री के पद पर रहेगा। इस समझौते के मुताबिक़, बेनेत को अभी एक साल और प्रधान बने रहना था, लेकिन वह न केवल अपने इस दौरे को पूरा नहीं कर सके, बल्कि उन्होंने हमेशा के लिए राजनीति को त्याग देने का फ़ैसला कर लिया।

अब यहां यह सवाल उठता है कि किन कारणों से बेनेत अपने पद से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर हो गए।

इसकी सबसे बड़ी वजह बेनेत के कट्टर विरोधी और विपक्षी नेता बेंजामिन नेतनयाहू हैं, जो सबसे लम्बे समय तक इस्राईल में सत्ता संभालने का अनुभव रखते हैं। नेतनयाहू का कहना था कि बेनेत राजनीति में उनके चेले रह चुके हैं और उन्हें उनसे यह आशा नहीं थी कि अपने गुरु को धोखा देकर और कम सीटों के बावजूद वह सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लेंगे। भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोपों से कमज़ोर पड़कर नेतनयाहू सत्ता से ज़रूर दूर हो गए थे, लेकिन उन्होंने राजनीति पर अपनी पकड़ ढीली नहीं छोड़ी। उन्होंने बेनेत और लैपिड सरकार के गठन के पहले दिन से ही इसके पतन की भविष्यवाणी कर दी थी और सरकार गिराने के प्रयासों में लग गए थे। नेतनयाहू ने एक सीट की बढ़त वाली सरकार पर आख़िर तगड़ी चोट लगाई और एक ही वार में उसका काम तमाम कर दिया। उन्होंने विभिन्न चालों से बेनेत के दो सहयोगियों को तोड़ लिया, जिसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई।

नेतनयाहू ने अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए इस्राईली क़ानूनों को वेस्ट बैंक स्थित अवैध ज़ायोनी बस्तियों में लागू होने वाले प्रस्ताव को पारित नहीं होने देने तक का फ़ैसला किया, जिसके बाद इन अवैध बस्तियों में रहने वाले ज़ायोनियों ने विरोध की आवाज़ बुलंद कर दी।

बेनेत ने नेतनयाहू के हमलों से बचने के लिए ज़ायोनी शासन का पूरा ध्यान ईरान के हितों को निशाना बनाने पर केन्द्रित कर दिया, ताकि नेतनयाहू समेत अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले में रक्षा क्षेत्र में अपनी बढ़त साबित कर सकें। लेकिन उनकी यह चाल भी काम नहीं आ सकी और जैसा वह चाहते थे, वैसा नतीजा हासिल नहीं हो सका। इस प्रकार, एक बार फिर ज़ायोनी शासन आंतरिक रूप से काफ़ी कमज़ोर नज़र आ रहा है, जो किसी बड़े ख़तरे का मुक़ाबला करने में असमर्थ है।

 

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