Aug १६, २०२३ १७:५८ Asia/Kolkata

अलजीरिया के संसद सभापति मूसा ख़रफी ने एलान किया है कि उनका देश जायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य नहीं करेगा।

उन्होंने कहा कि उत्तरी अफ्रीका में इस्राईल की उपस्थिति का लक्ष्य अपने अतिग्रहण को वैध बनाना है और अलजीरिया इस्राईल के साथ संबंधों को सामान्य नहीं बनायेगा और यथावत वह इस दृष्टिकोण पर कायेम है चाहे इसमें वह अकेला ही क्यों न रह जाये।  

अरब देशों के साथ जायोनी शासन के संबंधों को सामान्य बनाना हालिया वर्षों में अमेरिका की एक नीति रही है और इस नीति का आरंभ उस समय हुआ जब डोनाल्ड अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। बहरैन, कतर, सूडान और मोरक्को जैसे अरब देशों ने  अमेरिका की इस नीति को स्वीकार कर लिया और जायोनी शासन से अपने संबंधों को सामान्य बनाना आरंभ कर दिया।

सवाल यह पैदा होता है कि इस्राईल को अमेरिका, यूरोप और पश्चिमी देशों को समर्थन प्राप्त है फिर भी वह अरब देशों के साथ संबंधों को क्यों सामान्य बनाने के लिए आतुर है? उसके जवाब में जानकार हल्कों का कहना है कि यह सही है कि अमेरिका, यूरोप और पश्चिमी देशों का समर्थन जायोनी शासन को प्राप्त है मगर एसा नहीं है कि यही देश सब कुछ हैं और दूसरे देश कुछ भी नहीं हैं।

जायोनी शासन के अवैध अस्तित्व की घोषणा के आरंभ से लेकर आज तक इस्राईल की एक सबसे बड़ी चिंता यह है कि उसे दुनिया के बहुत से देशों ने आज तक एक देश के रूप में मान्यता नहीं दी है और इसी चीज़ को प्राप्त करने के लिए वह दूसरे विशेषकर अरब देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए आतुर है। क्योंकि जायोनी शासन के साथ संबंधों के सामान्य बनाने का अर्थ उसके अवैध अस्तित्व को मान्यता दे देना है और जो भी देश जायोनी शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाते हैं वे आमतौर पर इस्राईल के अपराधों पर मौन धारण कर लेते हैं।

यही नहीं न केवल मौन धारण कर लेते हैं बल्कि उसके मानवता विरोधी कार्यों व अपराधों का औचित्य भी दर्शाने की कोशिश करते हैं। आज अमेरिका,पश्चिमी व यूरोपीय देशों के उस बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है जिसमें वे कहते हैं कि इस्राईल को अपनी सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। ये देश जायोनी शासन के अपराधों की भर्त्सना के बजाये उसके बचाव में बयान देकर उसका मौन समर्थन करते हैं और इस प्रकार के बयान से जहां इन देशों की वास्तविकता सामने आ जाती है वहीं मज़लूम फिलिस्तीनियों के खिलाफ अपराधों को जारी रखने में जायोनी शासन और दुस्साहसी हो जाता है।

जानकार हल्कों का कहना है कि जो देश जायोनी शासन के अपराधों के बचाव में यह कहते हैं कि उसे अपनी रक्षा का अधिकार प्राप्त है तो इन देशों से पूछा जाना चाहिये कि अगर फिलिस्तीनियों की मातृभूमि पर अवैध ढंग से कब्ज़ा करने वाले को अपनी रक्षा का अधिकार प्राप्त है तो जो लोग अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं उन्हें अपनी रक्षा का अधिकार क्यों प्राप्त नहीं है? मानवाधिकारों की रक्षा का राग अलापने वाले यह बात क्यों नहीं कहते?

बहरहाल जानकार हल्कों का मानना है कि 75 वर्षों से अधिक समय से फिलिस्तीनियों के खिलाफ जायोनी शासन के मानवता विरोधी अपराधों के जारी रहने का मुख्य कारण अमेरिका और ब्रिटेन सहित पश्चिमी व यूरोपीय देशों का अर्थपूर्ण समर्थन है और अगर जायोनी शासन के प्रति इन देशों का समर्थन व आशीर्वाद न होता तो फिलिस्तीनियों के खिलाफ जायोनी शासन की आतंकवादी कार्यवाहियों पर बहुत पहले नकेल लग चुका होता। MM

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