आतंकवाद से मुक़ाबले के नाम पर आतंक के सबसे बड़े समर्थक बने अमेरिका और यूरोपीय देश! हमास और इस्राईल युद्ध में बिकाऊ मीडिया की भी खुली पोल
(last modified Mon, 16 Oct 2023 13:33:06 GMT )
Oct १६, २०२३ १९:०३ Asia/Kolkata
  • आतंकवाद से मुक़ाबले के नाम पर आतंक के सबसे बड़े समर्थक बने अमेरिका और यूरोपीय देश! हमास और इस्राईल युद्ध में बिकाऊ मीडिया की भी खुली पोल

हमास और इस्राईल के बीच भयानक युद्ध चल रहा है। इस युद्ध के नुक़सान का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता। नुक़सान दोनों तरफ हो रहा है। फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि इस्राईल के पास नवीनतम हथियार, लाखों प्रशिक्षित सैनिक, एक रक्षा प्रणाली के साथ-साथ विश्व शक्तियां उसका समर्थन कर रही हैं। दूसरी तरफ, केवल हमास है, जिसके पास हज़ारों सैनिक हैं। कोई नई तकनीक नहीं, कोई नए हथियार नहीं, कोई रक्षा प्रणाली नहीं।

फ़िलिस्तीन के लोगों के पास अगर कुछ है तो वह है प्रतिरोध की भावना और शहादत का जज़्बा। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हमेशा फ़िलिस्तीन के पक्ष में अन्याय के साथ काम किया है। अधिकांश देशों का कहना है कि फ़िलिस्तीन समस्या का समाधान एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना है, लेकिन इसके लिए कभी भी ईमानदारी से प्रयास नहीं किया गया। इसका परिणाम आज निर्दोष नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है। समस्या यह है कि यदि अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों और मानवाधिकार संगठनों ने फ़िलिस्तीन के समाधान के लिए गंभीरता से संघर्ष किया होता, तो आज स्थिति अलग होती। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी अवैध इस्राईल का समर्थन करते रहे और फ़िलिस्तीनी अधिकारों के उल्लंघन पर चुप्पी साधे रहते हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने 'एग्रीमेंट ऑफ द सेंचुरी' के ज़रिए फ़िलिस्तीन के बुनियादी अधिकारों को ख़त्म करने की योजना प्रस्तावित की थी। इस समझौते के तहत बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में मान्यता दी गई, जिसने दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल दिया। एकतरफा फ़ैसलों के कारण आज हमास और इस्राईल के बीच ख़ूनी युद्ध शुरू हो गया है, जिसके ख़त्म होने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। मौजूदा दुनिया में युद्ध शुरू करना तो बहुत आसान है, लेकिन उसको किसी तार्किक नतीजे तक पहुंचाना आसान नहीं है।

7 अक्टूबर को इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के जियाले पैराग्लाइडर के ज़रिए अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की सीमा में दाखिल हुए। बीस मिनट की अवधि में इस्राईल पर पांच हज़ार रॉकेट दाग़े गए, जिससे इस्राईल की रक्षा प्रणाली निष्क्रिय हो गई और उसकी सैन्य शक्ति की भी पोल खुल गई। इसके बाद दुनिया भर में हमास को आतंकवादी कहा जाने लगा। क्या यह पहला मामला है कि जब दुनिया ने एक देश की सेना को दूसरे राज्य, वह भी अवैध, पर हमला करते देखा है?  ऐसा हर बार होता है और हर शक्तिशाली देश अपनी रक्षा और बदला लेने के लिए दूसरे राज्य की सीमाओं पर आक्रमण करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका और इस्राईल की ख़ुफिया एजेंसियां ​​इसमें विशेषज्ञ हैं। आख़िर उन पर आतंकवाद का आरोप क्यों नहीं लगता है? शांति की बात करने वाले देश, अमेरिका और इस्राईल के अपराधों पर क्यों गूंगे हो जाते हैं?  सवाल यह है कि जब आतंकी इस्राईली सेना बेगुनाह फिलिस्तीनियों का ख़ून बहा रही होती है तो, उस समय यह तथाकथित शांति दूत कहां ग़ायब हो जाते हैं? क्या फ़िलिस्तीनी बच्चों और युवाओं को हमेशा बंदूक की नोक पर नहीं रखा जाता? क्या फ़िलिस्तीनी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं नहीं होती हैं? ग़ाज़ा के लोगों का जीवन, जिसे आज ख़त्म किया जा रहा है। फ़िलिस्तीनियों की ज़मीनों पर लगातार अवैध रूप से क़ब्ज़ा किया जा है। इन सभी मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और और अपने आपको मानवाधिकारों का ध्वजवाहक कहने वालों द्वारा कभी चर्चा नहीं की जाती है। इसकी वजह भी साफ़ है क्योंकि इस्राईल उपनिवेशवाद की नजाएज़ औलाद है और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया उसका 'तोता'।

इस्राईल वैश्विक स्तर पर ख़ुद को उत्पीड़ित दिखाने की कोशिश कर रहा है। चूंकि मीडिया उसके प्रभाव में है, इसलिए वह उत्पीड़न के प्रचार का समर्थन कर रहा है। ग़ाज़ा पर प्रतिबंधित बमों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन दुनिया चुप है। जब ग़ाजा से पत्थर फेंके जाते थे तो ऐसा पेश किया जाता था कि जैसे परमाणु बम फेंका गया हो। यह वही फ़िलिस्तीनी हैं जिन्होंने गुलेल से लेकर रॉकेट तक का सफ़र तय किया है। यही वजह है कि आज यह इस्राईल के सामने सीसे की दीवार की तरह खड़े हैं। जब फ़िलिस्तीनी ईंट-पत्थर फेंककर अपनी जान की बाज़ी लगाकर नवीनतम हथियारों का सामना कर रहे थे, अपनी और अपने परिवार वलों की जान की रक्षा कर रहे थे, तब भी दुनिया में इस्राईल को आतंकवादी कहने की हिम्मत नहीं थी, आज स्थिति बहुत अलग है। इस मानसिकता के पीछे भी इस्लामोफोबिया है। दुनिया में आतंक का प्रसार भी आतंकवाद को लेकर इसी दोहरी और पाखंडी नीति का परिणाम है। जिस दिन दुनिया अत्याचारी के विरुध और उत्पीड़ितों के समर्थन में खड़ी हो जायेगी, उस दिन आतंकवाद समाप्त हो जायेगा।

हमास के जियाले अपनी ही ज़मीन पर हैं और उनसे संघर्ष कर रहे हैं जो उनकी ज़मीनों पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा किए हुए है। लेकिन उसके बावजूद उन पर निर्दोष नागरिकों की हत्या का आरोप लगाया जा रहा है, जबकि इस्राईली जनता द्वारा जारी किए गए वीडियो और व्हाइट हाउस के बयान में इसका खंडन किया गया है। हमास ने भी कहा है कि उन्होंने कभी महिलाओं और बच्चों की हत्या नहीं की है। इसके बावजूद, इसका इस तरह से प्रचार किया जा रहा है कि जैसे हमास के जिलायों ने महिलाओं और बच्चों पर ज़ुल्म किया हो। मीडिया का कहना है कि हमास आईएसआईएस आतंकवादियों की शैली में महिलाओं और बच्चों को मार रहा है। लेकिन इसके विपरीत, ग़ाज़ा पर इस्राईल द्वारा किए जा रहे अंधाधुंध पाश्विक हमले, निर्दोष नागरिकों की मौत, बच्चों की क्रूर हत्याएं और आवश्यक सुविधाओं पर प्रतिबंध, इस बारे में एक भी शब्द बोलने पर तथाकथित शांति दूतों की ज़बान पर ताला लगा हुआ है। विश्व शक्तियों ने अपने प्रभुत्व के जुनून और तेल भंडार की लालसा में इराक़ को नष्ट कर दिया। उन्होंने खूंख़ार आतंकवादी गुट दाइश, अलक़ाएदा और अन्नुस्रा फ्रंट को जन्म देकर सीरिया पर हावी होने की कोशिश की। उन्होंने यमन जैसे पश्चिमी एशिया के सबसे ग़रीब देश को पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर दिया। लेकिन फिर भी वे शांति दूत हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे फ़िलिस्तीनी आतंकवादी!

सवाल यही उठता है कि आख़िर आतंकवाद पर यह दोहरा रवैया कब ख़त्म होगा? फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के साथ इंसाफ़ कब होगा? फ़िलिस्तीन पर हमले को सही ठहराने और आतंकी इस्राईली शासन के मुक़ाबले में प्रतिरोधक बलों को आतंकवादी कब तक कहा जाता रहेगा? अगर जल्द ही इस युद्ध को नहीं रोका गया तो दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है। यहां सबसे ज़्यादा अफ़सोस की बात यह है कि अमेरिका समेत कुछ यूरोपीय देश खुलकर इस्राईली आतंकवाद का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन दुनिया भर के न्याय प्रेमी देश और विशेषकर अरब देशों के पास यह साहस नहीं है कि वह फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन में आगे आएंष अरब देशों का अहंकार अभी तक नहीं जागा है। यह समय निंदा का बयान जारी करने का नहीं है। यह समय इंसानियत के लिए पूरी ताक़त के साथ खड़े होने का है। फ़िलिस्तीन की समस्या का एकमात्र समाधान फ़िलिस्तीनियों को उनका अधिकार उन्हें वापस देना है। इसके बिना युद्ध का यह सिलसिला ख़त्म होने वाला नहीं है। (RZ)

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