मूसिल की आज़ादी पर अरब संचार माध्यमों की उत्साहहीन प्रतिक्रियाएं
आतंकवादी गुट दाइश को इराक़ के मूसिल नगर से बाहर निकालकर उसे दाइश रहित बनाने की ख़बर को इन दिनों संचार माध्यमों में प्रमुखता दी जा रही है। इसके बावजूद अरब जगत के संचार माध्यम इसपर बहुत ही उत्साहीन प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।
लेबनान के अलमयादीन टीवी चैनेल ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की कड़ी आलोचना की है कि मूसिल को दाइश से मुक्त कराने जैसी महत्वपूर्ण ख़बर पर अरब जगत के संचार माध्यमों में बहुत ही उत्साहहीन प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जा रही हैं। अलमयादीन के अनुसार इराक़ी सैनिकों द्वारा मूसिल को दाइश से मुक्त कराने की ख़बर, हालिया दिनों की सबसे महत्वपूर्ण ख़बर है जिसकी चर्चा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही है।
यहां पर सवाल यह पैदा होता है कि इस उत्साहहीन प्रतिक्रिया का मुख्य कारण क्या है? पहली बात तो यह है कि अरब जगत के अधिकांश संचार माध्यम, अपने देश की सरकारों पर निर्भर होते हैं। दूसरे शब्दों में वे अपने शासकों के प्रवक्ता होते हैं। जिन देशों के यह संचार माध्यम होते हैं वहां की गुप्तचर एजेन्सियां उनपर गहरी नज़र रखती हैं। दूसरी बात यह है कि आर्थिक दृष्टि से यह संचार माध्यम सरकारों पर निर्भर होते हैं। यदि वे सरकार की नीतियों के विरुद्ध कुछ कहना चाहते हैं तो उनको आर्थिक संकट और क़ानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है।
दाइश के आतंकवादियों के हाथों मूसिल की आज़ादी के लिए चलाए जाने वाले अभियान के बारे में सऊदी अरब, संयुक्त अरब इमारात, बहरैन और जार्डन जैसे कुछ अरब देशों की नीति यह थी कि इसमें इराक़ी सरकार को सफलता न मिले तो बेहतर है। यही कारण है कि इन देशों के संचार माध्यमों ने इराक़ी सैनिकों के हाथों मूसिल को दाइश से स्वतंत्र कराने की ख़बरों पर प्रसन्नता व्यक्त करने के स्थान पर यह दर्शाने का प्रयास किया कि दाइश विरोधी इस अभियान में मूसिल वासियों को क्षति पहुंची है।
इस प्रकार की एेसी बहुत सी बाते हैं जिनके कारण कुछ अरब देशों के संचार माध्यम अपने शासकों की नीतियों का अनुसरण करते हुए सही बात को भी छिपाने या फिर उसे दूसरा रूप देने के प्रयास कर रहे हैं।यह वह विषय है जो पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों से खुना विरोधाभास रखता है।