दाइश के क़ब्ज़े में रह चुकी एक इराक़ी महिला ने सुनाई आपबीती, कांप उठता है दिल
(last modified Sat, 14 Oct 2017 11:25:25 GMT )
Oct १४, २०१७ १६:५५ Asia/Kolkata
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इराक़ी महिला ने सुरक्षा कारणों से अपना नाम ज़ाहिर नहीं किया लेकिन बीबीसी से बातचीत में बताया कि उत्तरी इराक़ के करकूक नगर में आतंकी संगठन दाइश ने महिलाओं के साथ कैसी दरिंदगी की।

महिला ने बताया कि मैं तुर्कमन शीया हूं, और मेरे पति सुन्नी हैं हम तिकरीत शहर में रहते थे जिस पर दाइश ने क़ब्ज़ा कर लिया। महिला का कहना था कि मेरे पति मस्जिद के इमाम थे जो हमारे घर के क़रीब ही थी। हमें शीया सुन्नी विवाद से कोई लेना देना नहीं था और कोई इस बारे में बात भी नहीं करता था। मेरी एक बेटी और एक बेटा था। जब दाइशी आतंकी तिकरीत में घुसे तो उन्होंने स्पाइकर छावनी में सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों का नरसंहार किया और लाशे फ़ुरात नदी में डाल दी। इस नरसंहार में 1500 रंगरूट मार दिए गए थे।

इस नरसंहार से बच कर कुछ सुरक्षाकर्मी हमारे इलाक़े में भाग आए थे जिनका पीछा करते हुए दाइशी आतंकी भी हमारे इलाक़े में आ गए।  कुछ ने मेरे घर में शरण ली और हमने महिलाओं  के लिबास देकर उन्हें भाग निकलने में मदद दी।

मेरे पति ने तीन शीया कैडिट्स को मस्जिद में छिपा दिया, वह बसरा शहर के रहने वाले थे।

उसी रात तीन बजे दाइशी आतंकी हमारे घर आ पहुंचे क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि हम रंगरूटों की मदद कर रहे हैं। उन्होंने मस्जिद में छिपे बसरा के रंगरूटों को खोज लिया और तत्काल उन्हें मौत के घाट उतार दिया। वह मेरे पति को अपने साथ ले गए जिसके बाद से आज तक उनका कुछ पता नहीं है। आतंकी पुनः हमारे घर आए और उन्होंने हमारे बाहर निकाल कर घर को धमाके से उड़ा दिया। हमारा घर काफ़ी बड़ा था उसमें कुछ कमरों को हमने तुर्कमन शिक्षिकाओं को किराए पर दे रखा था। मैं अपने छोटे बच्चे और तुर्कमन शिक्षिकाओं के साथ घर से निकली। हम जा रहे थे कि अचानक आतंकियों ने हमें रोक लिया और हमें एक गैरेज में ले गए।  हमारे साथ कुछ दूसरी लड़कियां और महिलाएं भी उन्होंने पकड़ रखी थीं। हम कुल मिलकर 22 महिलाएं थीं और मेरी गोद में मेरा बच्चा था। दाइशी आतंकियों ने पहले तो विवाहित महिलाओं और लड़कियों को एक दूसरे से अलग किया। हमारे साथ पांच लड़कियां थीं। उन्होंने हमारी आंखों के सामने इन लड़कियों का रेप किया। मैंने इन लड़कियों को बचाने की कोशिश की लेकिन एक आतंकी ने मुझे थप्पड़ मारा और दूसरे ने मेरे कंधे पर इतनी तेज़ दांत काटा कि खून बहने लगा।

चार मर्द थे जो इन लड़कियों का बारी बारी बलात्कार कर रहे थे। उन्होंने मेरे पति की 18 साल की बेटी का भी रेप किया जिसने वहीं दम तोड़ दिया। मैंने इस लड़की को पाल कर बड़ा किया था। वह मेरे पति की पहली पत्नी की बेटी थी।

बाक़ी महिलाएं बीस से तीस साल के बीच की थीं। यह आतंकी सब को बुरी तरह पीटते थे और बलात्कार करते थे। एक लड़की बहुत ख़ूबसूरत थी जिसका उन्होंने इतना बलात्कार किया कि उसने भी दम तोड़ दिया। एक और लड़की कुछ ही देर बाद बहुत अधिक ख़ून बह जाने के कारण अचानक गिर पड़ी और मर गई। थोड़ी ही देर में सारी लड़कियां मृत पड़ी थीं।  

मैंने इन आतंकियों के चेहरे को ग़ौर से देखा तो उनमें से दो के चेहरे मेरि लिए परिचित थे। वह दोनों हमारे पड़ोस के गांव के रहने वाले थे जो दाइश में शामिल हो गए थे। वह सुन्नी गांव के थे। इस गांव के बहुत से लोग दाइश में शामिल हो गए थे जबकि दूसरे बहुत से सुन्नियों ने दाइश का विरोध भी किया था।

गैरेज के अंदर आतंकियों ने हमें बंद करके छोड़ दिया। हमारे पास न खाने के लिए कुछ था और न पीने के लिए पानी था। मेरी यह हालत हो गई कि त्वचा कई जगहों से फट गई। मुझे वहीं पर बिच्छू ने डंक मारा लेकिन मुझे दर्द महसूस ही नहीं हुआ। कुछ दिन बाद हमारे दिमाग़ में सोचने समझने की सकत ही नहीं रह गई। गैरेज में हमने 21 दिन गुज़ारे। इसके बाद आतंकियों ने एक व्यक्ति को हमारी निगरानी पर लगा दिया। वह अच्छ आदमी था। जब आतंकी हमारा रेप करके चले जाते थे तो वह हमें पानी लेकर दे देता था। एक दिन उसने हमारे लिए दूख का भी बंदोबस्त किया जो बहुत स्वादिष्ट लगा।

एक दिन आतंकी आए और उन्होंने हमें दो भागों में बांट दिया। एक गुट को वह लेकर चले गए और मैं गैरेज में ही रह गई मेरे साथ मेरा छोटा बच्चा और एक तुर्कमन शिक्षिका का बच्चा था। शिक्षिका बार बार बलात्कार के कारण मर गई थी। निगरानी करने वाले व्यक्ति ने हमसे कहा कि यह आतंकी तुम लोगों को भी अपने साथ ले जाएंगे अतः तुम लोग फ़ौरन यहां से भाग जाओ। उसने हमें उस इलाक़े से बाहर तक पहुंचाया और फिर लौट गया। बाद में मुझे पता चला कि आतंकियों ने उस व्यक्ति को मारा डाला था क्योंकि उसने भागने में हमारी मदद की थी। वह बहुत अच्छा आदमी था।

हम रेगिस्तान में चलते रहे। पानी बरसने लगा ज़मीन पर कीचड़ फैल गया। हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं था अतः हम रास्ते में मिलने वाली घास से पेट भर रहे थे।

तुर्कमन शिक्षिका का बच्चा रास्ते में मर गया। पांच दिन बाद हम लोग करकूक पहुंचे। मैं अपनी फुफी के घर चली गई जो करकूक में रहती थीं। मेरे साथ भागने वाली एक लड़की की इतनी बुरी हालत हो गई  और वह मानसिक रूप से इतनी प्रताड़ित हुई कि इस समय ईरान में उसका इलाज चल रहा है।

मैंने क़बरिस्तानों में बहुत खोजा लेकिन मुझे अपने पति का कुछ सुराग़ नहीं मिल पाया। मैंने अपने पति की बेटी और उस अच्छे आदमी की क़बरें भी खोजने की बड़ी कोशिश की लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला।

हर जगह क़ुरबानी चढ़ने वालों के पीड़ित ख़ानदान हैं और सब दुख में डूबे हुए हैं। बच्चों की भी अजीब मानसिक स्थिति हो गई है। मेरे बच्चा तो हमेशा चुप रहता है कुछ बोलता नहीं। मुझ पर बुढ़ापा आ गया है, मैं जो थोड़े से पैसे मिल जाते हैं उसी से अपनी ज़िंदगी जी रही हूं।

दाइश के हाथों हमें बड़ी दरिंदगी झेलनी पड़ी है, हमें बहुत दुख उठाना पड़ा है। जो इस चरण से गुज़रा है वही समझ सकता है यह किस स्तर की दरिंदगी थी।

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