सऊदी सैन्य गठबंधन यमन में अपनी हार पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है
यमन के मामलों में संयुक्त राष्ट्र संघ के दूत मार्टिन ग्रीफ़िथ्स के नेतृत्व में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में होने वाली यमन शांति वार्ता एक बयान जारी करके समाप्त हो गई है।
यह वार्ता ऐसी स्थिति में समाप्त हुई है कि जब सऊदी गठबंधन ने यमन के ख़िलाफ़ अपने हमलों में वृद्धि कर दी है।
यमनी पक्षों ने विशेष रूप से अल-हुदैदा बंदरगाह में युद्ध विराम पर सहमति जताई थी, लेकिन इसके बावजूद सऊदी गठबंधन ने यमन के ख़िलाफ़ अपने हमलों में वृद्धि कर दी। युद्ध विराम की घोषणा और वार्ता के जारी रहने के दौरान भी सऊदी सैन्य गठबंधन यमन पर हमले करता रहा, इसका मुख्य कारण अमरीका द्वारा उसे इसके लिए हरी झंडी देना था।
अमरीकी विदेश मंत्रालय ने स्टॉकहोम वार्ता के बारे में एक बयान जारी करके कहा था कि वार्ता के दौरान जिन मुद्दों पर सहमति बनी है, अभी उनकी अधिक समीक्षा की ज़रूरत है। वास्तव में इस तरह का बयान देकर वाशिंगटन सऊदी सैन्य गठबंधन को यमन के ख़िलाफ़ हमले जारी रखने के लिए उकसा रहा था।
अमरीका और सऊदी सैन्य गठबंधन के रवैये से साफ़ ज़ाहिर है कि अतिक्रमणकारी शक्तियां यमन में शांति की स्थापना के ख़िलाफ़ हैं। इसलिए कि वर्तमान स्थिति में अगर यमन में शांति की स्थापना होती है तो इससे भयानक मानव त्रासदी को समाप्त करने में मदद मिलेगी और इसे अंसारुल्लाह आंदोलन की एक बड़ी उपलब्धि माना जाएगा।
हालांकि क़रीब 4 साल तक प्रतिरोध करके और एक सप्ताह तक वार्ता करके यमनी जनता ने सऊदी सैन्य गठबंधन और विश्व समुदाय को इस वास्तविकता को स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया कि यमन संकट का एकमात्र समाधान राजनीतिक प्रक्रिया है न कि युद्ध और हमले।
दुनिया के सामने यह हक़ीक़त अब स्पष्ट हो गई है कि सऊदी अरब जिस युद्ध को एक महीने में समेटने की बात कर रहा था वह क़रीब चार साल गुज़रने के बाद भी जारी है और भीषण हमलों के बावजूद यमन की लाइफ़ लाइन समझे जाने वाले अल-हुदैदा बंदरगाह पर क़ब्ज़ा नहीं किया जा सका।
अब सऊदी अरब यमन युद्ध की दलदल से निकलने के लिए वार्ता की मेज़ पर बैठने के लिए मजबूर हुआ है, ताकि यमन में मिली पराजय पर किसी तरह पर्दा डाल सके।