पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवादी हमले क्यों होते रहते हैं? आतंकवाद पर नकेल कसने का बेहतरीन तरीक़ा क्या है?
गुरूवार को अफगानिस्तान में शीयों की मस्जिद में भीषण धमाका हुआ जिसमें अब तक 50 व्यक्ति शहीद हो चुके हैं जबकि दर्जनों घायल हुए हैं और घायलों में कई की स्थिति चिंताजनक है।
यह भीषण विस्फोट अफगानिस्तान के बल्ख़ प्रांत के केन्द्रीय नगर मज़ार शरीफ में शियों की सबसे पुरानी मस्जिद में उस समय हुआ जब लोग दोपहर की नमाज़ कर रहे थे।
ईरान, पाकिस्तान और लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह और तालेबान ने भी इस आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है।
काबुल में ईरान के दूतावास ने हमले को आतंकी हमला क़रार दिया और इसकी कड़े शब्दों में निंदा की है। काबुल में ईरानी दूतावास की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि एक बार फिर अपराधी तकफ़ीरी आतंकियों के नापाक हाथ पवित्र रमज़ान के महीने में रोज़ेदार और मुस्लिम अफ़ग़ान जनता के ख़ून से रंगीन हो गये हैं, ईरान इस आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा करता है।
पाकिस्तान ने भी शियों की मस्जिद में होने वाले आतंकवादी हमले की भर्त्सना की है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने एक विज्ञप्ति जारी करके इस हमले की भर्त्सना की और शहीद होने वालों के प्रति दुःख जताया। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि वह पड़ोसी अफगानिस्तान में शांति व सुरक्षा चाहते हैं।
तुर्की ने भी इस आतंकवादी हमले की भर्त्सना की है और इस देश के विदेशमंत्री ने शीयों की मस्जिद में होने वाले आतंकवादी हमले को मानवता विरोधी बताया और शहीद होने वालों के परिजनों के प्रति सहानुभूति जताई और घायलों के स्वस्थ होने की काम की है।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध संगठन हिज़्बुल्लाह ने आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए बल दिया है कि इस घटना ने अपराधी तत्वों की पाश्विकता को सिद्ध कर दिया है।
सवाल यह पैदा होता है कि इस प्रकार के आतंकवादी हमले अफगानिस्तान और पाकिस्तान में ही क्यों सबसे ज़्यादा होते हैं? इसका सबसे स्पष्ट जवाब यह है कि आतंकवाद और आतंकवादियों ने जिस तरह इन दोनों देशों में अपने पंजे गाड़ रखे हैं उतना किसी अन्य देश में नहीं और इसके जवाब में दूसरी बात यह कही जा सकती है कि आतंकवादी जिस तरह से अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सुरक्षित हैं उतना कहीं और नहीं क्योंकि आतंकवादियों को गिरफ्तार करके उन्हें उनके अपराधों की सज़ा नहीं दी जाती है और अगर आतंकवादियों के साथ कड़ा व्यवहार किया जाता है और गिरफ्तार करके उन्हें सज़ा दी जाती तो दूसरे आतंकवादी के अंदर भय उत्पन्न होता कि वह जो कुछ कर रहा है या करने जा रहा है इसके बाद उसे दंडित किया जायेगा तो वह आतंकवादी कार्यवाही न करता या करने से पहले कई बार ज़रूर सोचता मगर आतंकवादी इस बारे में कभी सोचता भी नहीं कि उसे गिरफ्तार किया जायेगा।
दूसरे शब्दों में आतंकवादी इस बात से पूरी तरह निश्चिंत हैं कि उन्हें न गिरफ्तार किया जायेगा और न ही सज़ा मिलेगी और आतंकवादियों में यही एहसास आतंकवादी हमलों के जारी रहने का एक महत्वपूर्ण कारण है और जब तक आतंकवादियों के अंदर यह एहसास रहेगा यानी उनके साथ कड़ा बर्ताव नहीं किया जाता तब तक न तो आतंकवादी हमले खत्म होंगे और न ही उन पर विराम लगेगा।
नोटः यह व्यक्तिगत विचार हैं। पार्सटूडे का इनसे सहमत होना ज़रूरी नहीं है। MM
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