Jun ३०, २०२३ १३:०७ Asia/Kolkata
  • पुलिस के हाथों 17 साल के लड़के की हत्या के बाद, फ़्रांस के कई शहरों में सड़कों पर युद्ध जैसे हालात

गुरुवार को लगातार तीसरे दिन राजधानी पेरिस समेत फ़्रांस के कई शहरों में सड़कों पर युद्ध जैसे हालात रहे और हिंसा का सिलसिला जारी रहा।

मंगलवार को पुलिस के हाथों 17 साल के एक लड़के की हत्या के बाद भड़की हिंसा का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर हैं और प्रशासन और पुलिस की बर्बरता के ख़िलाफ़ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं।

दर असल, मंगलवार को पुलिस ने अलजीरियाई मूल के नाहेल एम नाम के लड़के को गाड़ी नहीं रोकने के आरोप में क़रीब से गोली मार दी थी, जिसके बाद लड़के की मौत हो गई।

नाहेल की मां मॉनिया ने सोशल मीडिया पर अपनी एक पोस्ट में पुलिस बर्बरता के ख़िलाफ़ लोगों से सड़कों पर निकलने की अपील की थी।

वीडियो फ़ुटेज में मॉनिया को रोते हुए सुना जा सकता है कि नाहेल अभी बच्चा ही था। उसे मां के साए की ज़रूरत थी। सुबह घर से निकलते वक़्त उसने मुझे चूमा और कहा थाः आई लव यू मॉम। लेकिन इसके एक घंटे के बाद ही मुझे बताया गया कि मेरे लाडले बेटे को गोली मार दी गई है। अब मैं क्या करूं? वह मेरी ज़िंदगी था। वह मेरा सबकुछ था।

इस दुखद घटना ने मानवाधिकार संगठनों से लेकर क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों तक यूरोपीय देशों में कम आय वाले और अरब मूल या काले नागरिकों के प्रति पुलिसिया बर्बरता, हिंसा और प्रणालीगत नस्लवाद की गहरी धारणा को जन्म दिया है।

2017 में फ़्रांस में एक क़ानून पारित किया गया था, जिसमें पुलिस को गोली चलाने के अधिकार में ढील दी गई थी। मानवाधिकार संगठन इस क़ानून का विरोध करते रहे हैं। ली मोंडे अख़बार के अनुसार, जबसे यह क़ानून बना है, चलती कार पर पुलिस द्वारा गोली चलाने की घटनाएं बढ़ गई हैं।

नवंबर 2005 में इसी तरह की एक घटना में दो युवकों की मौत के बाद, फ़्रांस में हफ़्तों तक हिंसा और आगज़नी होती रही थी। यह दोनों बच्चे पुलिस द्वारा पीछा किये जाने पर एक बिजली सब स्टेशन में छिप गए थे।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स का कहना है कि 2017 से अब तक फ़्रांसीसी पुलिस के हाथों मारे जाने वालों में अधिकांश काले या अरब मूल के नागरिक हैं। पिछले साल ट्रैफ़िक नियमों का पालन नहीं करने वाले 13 लोगों को पुलिस ने गोली मार दी थी।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रां की सरकार पहले ही येलो वेस्ट प्रोटेस्ट से लेकर पेंशन सुधारों के ख़िलाफ़ लोगों के ग़ुस्से का सामना कर रही है। ऐसी स्थिति में पुलिस के हाथों आम नागरिकों की हत्याओं ने माहौल को और ज़्यादा ख़राब कर दिया है।

दुनिया भर के लोगों को तीसरी और चौथी दुनिया में बांटने वाले पश्चिमी देश अब ख़ुद जहां आर्थिक बदहाली का सामना करना रहे हैं, वहीं इन देशों को सामाजिक और नैतिक पतन का भी अनुभव करना पड़ रहा हैं, हालांकि आज भी इन देशों के राजनेताओं का अंहकार कम नहीं हुआ है और यह तथाकथित तीसरी और चौथी दुनिया के देशों की सरकारों को मानवाधिकारों पर लेक्चर देने से बाज़ नहीं आते हैं।

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