मैक्रां को डराने लगी पश्चिम की ढलती ताक़त
फ़्रांस के राष्ट्रपति पेरिस में कूटनयिकों के सम्मेलन में बड़ा महत्वपूर्ण बयान देते हुए कहा कि पश्चिमी दुनिया की ताक़त ढल रही है और यूरोप के कमज़ोर होने का ख़तरा है।
उन्होंने कहा कि मेरा यह मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय मामले जटिल होते जा रहे हैं और इसके नतीजे में पश्चिम विशेष रूप से यूरोप के कमज़ोर होने का ख़तरा पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि इस विषय में हमें खुलकर बात करनी चाहिए।
पश्चिम के पतन के बारे में मैक्रां का बयान दुनिया की अर्थ व्यवस्था और व्यापार में पूर्वी दुनिया की ताक़तों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। यूरोप की भागीदारी हालिया समय में घटी है। मैक्रां ने पश्चिम के पतन के संदर्भ में कुछ बिंदुओं का उल्लेख करते हुए कहा कि एक चीज़ यह है कि जनसंख्या घट रही है और दुनिया के व्यापार और संपत्ति सृजन में हमारी भागीदारी कम हुई है। वर्ष 2008 से 2010 के बीच जो आर्थिक मंदी आई थी उसकी तुलना यदि आज के दौर से की जाए तो यह सच्चाई और भी स्पष्ट नज़र आती है।
दूसरी चीज़ यह है कि यूक्रेन की जंग और इस जंग में अमरीका की इच्छा के अनुसार यूक्रेन के लिए यूरोप का सामरिक सहयोग, रूस पर व्यापक पाबंदियां और रूस से यूरोप के लिए गैस का निर्यात रुक जाना वह कारक हैं जिनके चलते यूरोपीय देशों में आर्थिक और सामाजिक संकट खड़े हो गए हैं। अगर यह युद्ध जारी रहता है तो संकट और भी बढ़ जाएगा।
शीत युद्ध के बाद पश्चिम के मुखिय के रूप में अमरीका ने बड़ी कोशिश की कि दुनिया पर पश्चिम के वर्चस्व का एकध्रुवी सिस्टम क़ायम रहे लेकिन अंतर्राष्ट्रीय हालात अलग अलग पहलुओं से राजनैतिक और सैनिक ताक़तों के उभरने के कारण बने और रूस, चीन और भारत जैसे देश अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बड़ी शक्ति के रूप में उभरे। अब यह ताक़तें ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंच बनाकर राजनीति, अर्थ व्यवस्था और व्यापार के मंचों पर नया सिस्टम बनाने की कोशिश कर रही हैं।
इस समय पश्चिम के सामने चीन और रूस जैसे प्रतिवादी खड़े हैं। चीन इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है मगर अनुमानों के अनुसार 2030 तक वह दुनिया की पहली अर्थ व्यवस्था बन जाएगा और यह चीज़ पश्चिम विशेष रूप से अमरीका की व्यापारिक और आर्थिक बढ़त पर संदेह खड़े करती है। 1990 का देश रूस के लिए कठिनाइयों और पतन का समय था मगर 2000 के बाद से व्लादमीर पुतीन के शासनकाल में इस देश ने अपनी खोई हुई ताक़त वापस ली है और इस समय पश्चिम का एक गंभीर प्रतिद्वंद्वी माना जाता है।
इस समय पश्चिम की विस्तारवादी ताक़तों और उनके प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक रस्साकशी जारी है। पश्चिम ने कई शताब्दियों तक दुनिया पर अपना वर्चस्व बनाए रखा और दूसरे राष्ट्रों का ख़ूब शोषण किया। शीत युद्ध के दौर में और उसके बाद अमरीका ने पश्चिम का नेतृत्व किया और दुनिया में अपना वर्चस्व फैलाने के लिए बड़ी कोशिशें कीं। मगर इसके बावजूद दुनिया के हालात बदलते गए और अब पश्चिम के नेता ख़ुद अपनी ज़बान से इक़रार कर रहे हैं कि पश्चिम के वर्चस्व का दौर समाप्त हो गया।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया में पश्चिम के पतन की बड़ी बुनियादी वजह उनका ग़लत रवैया और ख़राब कार्यशैली रही। मैक्रां ने अगस्त 2019 में कहा था कि हम इस समय दुनिया पर पश्चिम के वर्चस्व के आख़िरी दौर में हैं और यह पश्चिम की ग़लतियों का परिणाम है।
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